मत दिखाओ मुझे वो आईना जिससे हो गई नफ़रत मुझे
जिसमे अपना ही अक्स अब बदला नजर आता है।
सोचती हूं खोती जा रही हूं अपनी ही पहचान
मगर नहीं ,यहां तो हर शख्स ही गंदला नजर आता है।
बेखुदी में जाने क्या कह गये हम उसे
हैरान सा खड़ा उसे मुझमें पगला नज़र आता है।
किससे करुं सवाल और किससे मांगू जवाब
यहां तो हर शख्स ही मुंह छुपाये निकला नज़र आता है।
किसी मंज़िल तक पहुंचने की जब जब करती हूं कोशिश
क्या करुं वहां भी मुझसे खड़ा कोई पहला नज़र आता है।
कभी फुर्सत में बैठ के करती हूं बीते वक्त का हिसाब
पर वो कल का वक्त भी धुंधला नज़र आता है।
लगी हुई बाज़ी को जीतती गई बार बार
पर हर बार इनाम की पंक्ति में कोई अगला नज़र आता है।
जारी हैं कोशिशें फ़िर भी, चलता रहेगा ये कारवां
पर जो आप मुस्कुराएं,तो सब कुछ खिला नजर आता है।
0000
पूनम
22 टिप्पणियां:
वाह , पूनम जी,
बहुत सही आईना दिखाया है....बहुत खूब
बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना
कभी फुर्सत में बैठ के करती हूं बीते वक्त का हिसाब
पर वो कल का वक्त भी धुंधला नज़र आता है।
-बहुत बढ़िया.
सोचती हूं खोती जा रही हूं अपनी ही पहचान...
bahrupiyon ki is duniya me apni pahchan bachaye rakhna wastav me ek chunauti hai.
bahut hi marmsparsi rachna.
Bhavnao se sarabor dil ko chhuti rachana hai....!!
sunder abhivyktee!
पर हर बार इनाम की पंक्ति में कोई अगला नज़र आता है।
बेशक कोई दो राय नहीं - लेकिन कब तक मुहं छुपायेंगे और हमें भी खेल तो खेलना ही होगा बाजी जीतने की कोशिश तो करती रहनी होगी - बेहद सटीक और सार्थक मनोभावों से संजोयी रचना के लिए हार्दिक बधाई.
किससे करुं सवाल और किससे मांगू जवाब
यहां तो हर शख्स ही मुंह छुपाये निकला नज़र आता है।
aur
कभी फुर्सत में बैठ के करती हूं बीते वक्त का हिसाब
पर वो कल का वक्त भी धुंधला नज़र आता है।
isi dhundhlake se bahar nikalne ka naam jadodayat hai...
Bahut achhi gajal.
Badhai
क्या करुं वहां भी मुझसे खड़ा कोई पहला नज़र आता है।
क्या बात है..आगे भी हताशा!
bahut achchhi gazal padhne ko mili
लगी हुई बाज़ी को जीतती गई बार बार
पर हर बार इनाम की पंक्ति में कोई अगला नज़र आता है।
सच। ... ऐसा ही होता है।
bahut badhiya koshish hai poonam ji. badhayi.
कभी फुरसत मे ----- पँक्तियाँ बहुत अच्छी लगी। शुभकामनायें
सोचती हूं खोती जा रही हूं अपनी ही पहचान
मगर नहीं ,यहां तो हर शख्स ही गंदला नजर आता है ....
सच कहा कुछ ऐसा ही आई आज का माहॉल .......... समाज का यथार्थ की धरातल पर किया चित्रन .....
ये नकारात्मक्ता आपकी अगली रचना मे समाप्त हो उसके इंतजार मे ।
प्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com
बेखुदी में जाने क्या कह गये हम उसे
हैरान सा खड़ा उसे मुझमें पगला नज़र आता है।
किससे करुं सवाल और किससे मांगू जवाब
यहां तो हर शख्स ही मुंह छुपाये निकला नज़र आता है।
वाह बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
आइना की कोई गलती नही , चाहे सोने के फ़्रेम में जड़ दो आइना झूंठ बोलता ही नही ,यह मै नही कहरहा यह कहा था श्री क्रष्ण बिहारी नूर ने ""।हैरान सा खड़ा उसे मुझमें पगला नज़र आता है।"" लाइन पर पुनर्विचार करने का कष्ट करे
आपको और आपके परिवार को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!
bahut dino se link dhoondh rahi thi aane ko yahan aaj kisi blog se mil gaya ,vande maatram .
hridyasparshi rachna komal bhav liye .
आपने आइना देखा नही , दिखाया है समाज को
कैसे हैं आप? काफी दिन हो गए आप मेरे ब्लॉग पर नहीं आये! वक़्त मिलने से मेरी नयी कविता और शायरी ज़रूर पढ़िएगा!
कभी फुर्सत में बैठ के करती हूं बीते वक्त का हिसाब
पर वो कल का वक्त भी धुंधला नज़र आता है।
In panktion ne dil chu liya.shubkamnayen.
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