शनिवार, 30 जनवरी 2010

गजल


जो बात लगी दिल में उसे याद दिलाया न करो

बार बार वो वाकया यूं दुहराया न करो।

तुम कह के चले जाते हो अपने रस्ते

मैं सोचती ही रह जाऊं यूं परेशां किया न करो।

अपने कीमती समय से चन्द लमहे निकालते हो तुम

फ़िर सब्र से बैठो जरा यूं खड़े ही चले जाया न करो।

हर आहट पर लगता है कि आये हो तुम्हीं तुम

पल पल खयालों में आकर यूं भरमाया न करो।

दिल के दरवाजे मेरे खुले हैं सिर्फ़ तुम्हारे लिये ही

हर दरवाजे पर जाकर दस्तक तो यूं दिया न करो।

गर तुम हो आफ़ताब तो मैं जमीं की धूल हूं

पर पांवों से ठोकर मारकर धूल को यूं उड़ाया न करो।

चिरागे रोशनी में लिखती हूं मैं तुम्हारे लिये कुछ लफ़्ज

पढ़कर उसे मेरा मजाक तो यूं बनाया न करो।

***

पूनम

21 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

चिरागे रोशनी में लिखती हूं मैं तुम्हारे लिये कुछ लफ़्ज पढ़कर उसे मेरा मजाक तो यूं बनाया न करो।
बिल्कुल दिल से लिखी गई ग़ज़ल! हर शेर शानदार।

Himanshu Pandey ने कहा…

हर एक शेर खूबसूरत है । अंतिम दो तो पूछिये मत !
शानदार । आभार ।

Udan Tashtari ने कहा…

बढ़िया है.

M VERMA ने कहा…

चिरागे रोशनी में लिखती हूं मैं तुम्हारे लिये कुछ लफ़्ज

पढ़कर उसे मेरा मजाक तो यूं बनाया न करो।
सुन्दर इल्तज़ा है खूबसूरत रचना है
बहुत खूब

Apanatva ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Apanatva ने कहा…

bahut sunder bhavo keeppp prastuti pratyek panktee
bhav se ot prot hai.......

हास्यफुहार ने कहा…

बेहतरीन। लाजवाब।

रानीविशाल ने कहा…

हर आहट पर लगता है कि आये हो तुम्हीं तुम

पल पल खयालों में आकर यूं भरमाया न करो।
bahut sundar....Badhai!!

निर्मला कपिला ने कहा…

चिरागे रोशनी में लिखती हूं मैं तुम्हारे लिये कुछ लफ़्ज पढ़कर उसे मेरा मजाक तो यूं बनाया न करो।
बहुत बडिया जी---- लिखें सभी गम्भीरता से पढ रहे हैं ----सुन्दर लिखा है शुभकामनायें

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हर आहट पर लगता है कि आये हो तुम्हीं तुम
पल पल खयालों में आकर यूं भरमाया न करो ...

कितना भोला है अंदाज़ इस शिकायत का ........ बहुत खूब है आपकी ग़ज़ल .... हर शेर मासूमियत से लिखा .........

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut sunder....

Mithilesh dubey ने कहा…

आपके शब्दो का चयन लाजवाब रहा ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरती से लिखी ये ग़ज़ल....बहुत खूब.

कविता रावत ने कहा…

Bade bhalepan likha gajal bahut achhi lagi
Badhi

रंजना ने कहा…

वाह..वाह...वाह... बहुत सुन्दर....

बेनामी ने कहा…

भावों का समंदर - बहुत खूब, अति सुंदर. शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई.
"गर तुम हो आफ़ताब तो मैं जमीं की धूल हूं"
इतना सम्मान
"पर पांवों से ठोकर मारकर धूल को यूं उड़ाया न करो"
उसका ये सिला
क्या ऐसा नहीं होना चाहिए
गर तुम हो आफ़ताब तो मैं जमीं की धूल हूं
सम्मान से इसे मस्तक पै लगाया करो

Parul kanani ने कहा…

wah-wah!!

Razi Shahab ने कहा…

दिल के दरवाजे मेरे खुले हैं सिर्फ़ तुम्हारे लिये ही

हर दरवाजे पर जाकर दस्तक तो यूं दिया न करो।
waah kya baat hai maan gai bahut achchi kavita hai

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
आभार...........................

ज्योति सिंह ने कहा…

चिरागे रोशनी में लिखती हूं मैं तुम्हारे लिये कुछ लफ़्ज पढ़कर उसे मेरा मजाक तो यूं बनाया न करो।
bahut hi badi baat kah gayi man ki .sach hi to hai ,sundar bahut hi .

Alpana Verma ने कहा…

गर तुम हो आफ़ताब तो मैं जमीं की धूल हूं पर पांवों से ठोकर मारकर धूल को यूं उड़ाया न करो।
waah ! waah!
kya baat hai Poonam ji...
behad khubsurat bhaavbhari gazal.

[der se aa pane ke maafi chahti hun.
bachchon ke exams ke chalte niymit nahin aa pa rahi hun.]