वक्त थम जाओ जरा
आइना तो निहार लूं।
घटाओं घूम के आओ जरा
जुल्फ़ों को संवार लूं।
हवाओं रुख बदल दो जरा
आंचल तो संभाल लूं।
फ़िजाओं इस तरह गमको जरा
सांसों में इनको भर तो लूं।
चमन फ़ैलो हर इक दिशा जरा
फ़ूलों सी मुस्कुरा तो लूँ।
बारिश झूम के बरसो जरा
संग तुम्हारे झूम तो लूं।
स्वप्न सतरंगी इन्द्रधनुषी ज़रा
खुशी से इतरा तो लूँ।
आलम हो इस कदर रंग भरा तो
क्यों ना इस पल को आगोश में समेट लूं।
000
पूनम
39 टिप्पणियां:
पाकृतिक उपालम्भों का सटीक और सुन्दर प्रयोग
सुन्दर रचना
वक्त, घटाओं की शिकायत रही..
हवाएं, फिजायें भी साथ रहीं....
उफ़...ये औरतें तैयार होने में कितना समय लगाती है..
हा हा हा ..
खैर मजाक छोडिये...
बहुत ही सुन्दर कविता..अच्छा चित्रण है...
प्रकृति को उपालम्भ देती हुई नायिका का अद्भुत चित्रण , पढ़ के आनंदित हुआ . आभार
अति सुंदर कविता,धन्यवाद
वंदना जी.....बशीर बद्र साहब की एक शेर की याद दिला दी...आप की इस कविता ने...
:कभी आसमा की नुमाइश से, मुझे जो इज्ने-कयाम* हो,
तो मैं मोतियों की दूकान से तेरी बालियाँ तेरे हाल लूँ.
* रुकने का आमन्त्रण
किस खूबी से आप ने प्रक्रति की ख़ूबसूरती से अपने आप को संवारा है......वाह.....एरी .... मैं तो प्रेम दीवानी....
रीतिकालीन कवियों की नायिकाओं के लिए ‘ब्यूटीशियन‘ का कार्य प्रकृति ही करती रही हैं।
आपकी कविता उसी अंदाज़ में बेहद खूबसूरत बन पड़ी है।...इस अद्भुत रचना के लिए आभार।
ruk ja aye hawa
tham ja ghata
ruko ruko...
aaina niharne ka dil hona bahut badee baat hai
बहुत खूबसूरत पल हैं..ज़रूर आगोश में भरिये ...
बहुत ही सुन्दर कविता..अच्छा,अद्भुत चित्रण है...धन्यवाद.
बेहद उम्दा और खूबसूरत रचना.
रामराम.
बहुत सुन्दर!
आलम हो इस कदर रंग भरा तो क्यों ना इस पल को आगोश में समेट लूं।
ज़रूर आगोश में भरिये .....
हर पल को जीने का आनन्द ही जीवन है।
लेकिन इतना ख़्याल रहे पूनम जी!
देखती ही रहो आज दर्पण न तुम,
प्यार का ये महुरत निकल जाएगा!
बहुत सुन्दर रचना .... वाह
bahut sunder rachna...sath me me bhi gunguna to lun...
आपकी भाषिक संवेदना पाठक को आत्मीय दुनिया की सैर कराने में सक्षम है ।
सुंदर प्राकृतिक बिम्ब लेकर किया गया मनभावन चित्रण ....... बेहद सुंदर
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
बहुत सुन्दर रचना .... वाह !
अजी इतने खूबसूरत पलों को कोई जाने देता है भला आपके साथ ही लगे हाथ मैंने भी समेट लिए हैं ये पल
आभार
आलम हो इस कदर रंग भरा तो
क्यों ना इस पल को आगोश में समेट लूं ..
ऐसे हसीन पलों को समेत लेना चाहिए ... ताज़ा रखती हैं उम्र भर .....
हवाओं रुख बदल दो जरा
आंचल तो संभाल लूं।
... bahut khoob ... behatreen !!!
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 14 -12 -2010
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
अति सुंदर........
बहुत ही सुन्दर और भावभीनी भावाव्यक्ति।
आलम हो इस कदर रंग भरा तो
क्यों ना इस पल को आगोश में समेट लूं
बहुत सुन्दर भावभीनी प्रवाहपूर्ण प्रस्तुति...आभार
बहुत ही खूबसूरत रचना है ! अपने साथ मुझे भी इन सुन्दर फिजाओं की सैर के लिये ले चली ! आपको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं !
बहुत ही सुन्दर भावों का संगम है ....।
पूनम जी....... बहुत ही प्यारे एहसाह भरे है कविता में... सुंदर प्रस्तुति .
dev ji aapne hamesha hi mujhe protsahit kiya hai par aapk koi link nahi milta hai jisse aapko dhanyvaad de sakun.fir bhi dil se aapko hardik badhai.
poonam
अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
पहली बार आया आपके झरोखे में /
ठंढी हवा से हृदय प्रफुल्लित हो गया //
बेहद मर्मस्पर्शी /
कोमल भावनाओ को बांधना आसान नहीं होता
मेरे ब्लॉग पर भी एक बार पधारे /
इंतज़ार है पूनम जी /
http://babanpandey.blogspot.com
बहुत ही सुन्दर कविता..अच्छा चित्रण है|
पूनम जी , अत्यन्त सरस रचना है ।
waqt ko rukna to hoga...
बहुत सुन्दर भावभीनी प्रवाहपूर्ण प्रस्तुति...आभार
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
आलम हो इस कदर रंग भरा तो
क्यों ना इस पल को आगोश में समेट लूं।
जीवन में हर पल खुलकर जीना चाहिए...अपने को संवारकर, समेटकर आने वाले पलों का स्वागत करना चाहिए...बहुत सुंदर
अपने गीत तो सुन्दर लिखा ही है मुझे पसंद भी है लेकिन जो चित्र लगाया है वह तो कबिता को और सुन्दर बना देती है
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