दो बहनें थीं।बड़ी मेहाली छोटी शेफ़ाली।दोनों बहनें बड़ी ही सभ्य व सुसंस्कृत परिवार की थीं।दोनों बहुत ही समझदार तथा पढ़ाई लिखाई में भी बहुत ही अच्छी थीं।पर दोनों के स्वभाव में बहुत ही अंतर था। जहां बड़ी नम्र स्वभाव की व मृदुभाशी थी वहीं छोटी स्वभाव की तो बहुत ही अच्छी पर थोड़ा उग्र स्वभाव की थी। बचपन से ही छोटी पढ़ने लिखने में बहुत ही तेज थी। उसने छोटी उम्र में ही अपने आप पढ़ना लिखना सीख लिया था। कोई बात एक बार बताने के बाद उसे दुबारा बताना नहीं पड़ता था।धीरे-धीरे दोनों बहनें बड़ी होती गयीं। अब बड़ी बहन मेहाली बी ए और छोटी 10वीं में आ गयी थी।
इसके पहले जब शेफ़ाली 5वीं
कक्षा में आई तो उसे दो बार टायफ़ाइड हो गया।वह बहुत जल्द ही ठीक भी हो गयी पर इससे
उसकी सेहत और पढ़ाई पर बहुत ही खराब असर पड़ा।फ़िर उसने अगली कक्षा में अपनी मेहनत के
बल पर अच्छे अंक लाये।सभी विषयों में तो उसे बहुत अच्छे अंक मिले पर गणित में बहुत
ही कम।
इधर शेफ़ाली की मां की
तबीयत अक्सर खराब रहती।जिससे घर के माहौल व बच्चों की पढ़ाई पर भी असर पड़ा।अब दोनों
बच्चों पर अपनी तबीयत की वजह से शेफ़ाली की मां ज्यादा ध्यान दे नहीं पाती थीं। बड़ी
बहन मेहाली अपनी पढ़ाई के साथ ही साथ पूरे घर का भी बहुत खयाल रखती थी। साथ ही छोटी
बहन शेफ़ाली को भी वह पढ़ाती थी।मां की अस्वस्थता से घर का सारा भार मेहाली के
कन्धों पर आ गया था।मां उससे कहती कि बेटा छोटी बहन की मदद भी ले लिया करो लेकिन
वो बड़े प्यार से मां से कहती मां अभी वो बहुत छोटी है। मै तो कर रही हूं न। आप
परेशान न हुआ करिये मैं सब सम्हाल लूंगी।मां अचानक ही मेहाली के कन्धों पर इतना
बोझ आ जाने से और भी चिन्तित रहती थीं।
खैर 10वीं की छःमाही परीक्षा
का परिणाम घोषित हुआ फ़िर शेफ़ाली पिछले साल की तरह गणित में कम नम्बर ले आई। जाने
क्यों उसे गणित से इतना डर लगने लगा कि वो उससे दूर भागती। जब-जब टेस्ट या इम्तहान
होता गणित वाले दिन उसे बुखार जरूर हो जाता था। ऐसा नहीं था कि वो घर पर अभ्यास
नहीं करती थी।मां के समझाने पर वो बार बार सवाल लगाती और हल भी कर लेती लेकिन गणित
के पेपर वाले दिन कक्षा में वो पेपर देखते ही इतनी नर्वस हो जाती थी कि आते हुये
सारे सवाल उल्टे-सीधे कर आती।उसकी टीचर को भी बड़ा आश्चर्य होता।वो उसे डांटते भी
नहीं थे और बड़े प्यार से बुला कर समझाते थे कि बेटा गणित में तुम्हें क्या हो जाता
है तुम तो इतनी अच्छी हो पढ़ने में।फ़िर वो रोने लगती। घर आकर भी वो खूब रोती कि मैं
कभी भी गणित में पास नहीं हो पाऊंगी। मैं आगे कुछ नहीं कर पाऊंगी।
फ़िर मम्मी पापा ने विचार करके
उसका दाखिला कोचिंग में करा दिया।उसकी कोचिंग के सारे शिक्षक भी बहुत ही अच्छे थे
और सभी बच्चों पर बहुत ध्यान देते थे। जो बच्चा जिस विषय में कमजोर था ये पता करके
उस पर विशेष ध्यान देते।
कोचिंग ज्वाइन करने पर मेहनत तो उस पर
ज्यादा पड़ने लगी लेकिन फ़िर से पढ़ाई में खासकर गणित में भी उसका ध्यान लगने लगा।कोचिंग
में वो हर सवाल हल कर लेती।उसकी टीचर भी उससे कहतीं कि शेफ़ाली तुम बहुत ही अच्छी
विद्यार्थी हो। थोड़ी मेहनत और करो और अपना आत्म विश्वास मत खोओ।देखो तुम्हारी
पोजीशन कितनी अच्छी हो जाएगी।बस अपनी लगन इसी तरह बनाये रखो।
एक दिन शेफ़ाली पढ़ाई से
थोड़ा खाली होकर अपने घर के बाहर बैठी चिड़ियों को देख रही थी। वह इस उधेड़बुन में भी
थी कि कैसे अपनी पढ़ाई को और आगे बढ़ाए। अपना आत्म विश्वास बढ़ाए।तभी उसकी निगाह लान
में जा रहे एक गुबरैले पर पड़ी जो एक मिट्टी का बड़ा टुकड़ा आगे ढकेलने की कोशिश कर
रहा था। पर बार-बार नाकाम हो जाता था। लेकिन उसने हार नहीं मानी।वह लगातार उसे आगे
बढ़ाने की कोशिश करता रहा—करता रहा। और अन्ततः वह मिट्टी के उस टुकड़े को आगे धकेलने
में सफ़ल हो गया।---उसे आगे जाते देख शेफ़ाली खुशी से चिल्ला पड़ी---हुर्रे----। बगल
में खड़ी उसकी सहेली भी चौंक गयी---क्या हुआ है इसे। पर शेफ़ाली ने उसे समझा दिया कि
चिड़ियों का उड़ना देख वो चीखी थी।
बस उसी दिन शेफ़ाली ने तय कर
लिया कि उसे परीक्षा होने तक वही गुबरैला बन जाना है। और वह जुट गयी मेहनत से पढ़ने
में।इस बार कोचिंग के सभी टेस्ट में उसके अच्छे नम्बर आए। उसकी शिक्षिकाओं ने भी
उसे बहुत सराहा।
अब उसका खोया अत्म विश्वास
लौट आया था। और वह दुगनी लगन से अगली परीक्षा की तैयारी में जुट गयी।मां भी जो
उसकी पढ़ाई देख कर काफ़ी चिन्तित रहती थीं अब काफ़ी निश्चिन्त हो गयीं।उन्हें लगने
लगा कि उन्हें बचपन वाली जिम्मेदार शेफ़ाली बेटी वापस मिल गयी है। और वह अच्छी तरह से इस बात को समझ गयी है कि मेहनत लगन और आत्मविश्वास ही जीवन में आगे बढ़ने की कुंजी है।
0000
पूनम श्रीवास्तव
17 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (27-10-2013)
जिंदगी : चर्चा अंक -1411 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेहनत का फल मिलता ही है -बहुत अच्छी कहानी है !
नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
सुंदर बाल कथा ....
सुन्दर प्रस्तुति-
शुभकामनायें आदरणीया-
सुन्दर कहानी के जरिये आपने मेहनत ओर लगन का पाठ पढ़ा दिया ... अती उत्तम ...
बहुत सुंदर बाल कहानी,,,
RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
बहुत सुन्दर बाल कथा.
नई पोस्ट : कोई बात कहो तुम
बाल कथा या कहानी लिखने सरल नहीं ..मेरे भी ब्लॉग पर आये
सच कहा आपने, लगन से खोया आत्मविश्वास लौट आता है।
मेहनत बेकार नहीं जाती। जय हिन्द
मेहनत बेकार नहीं जाती। जय हिन्द
बहुत सुन्दर बाल कहानी...
punam bahut badiya....kya ye meri hi mehali va sefali hain ? ytarth.
जीतनी अछहि आप कबिता करती हैं उतनी ही अछहि कहानी .
बहुत सुन्दर--------.
सुन्दर कहानी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
बहुत सुन्दर ...बहेतरिन कहानियो की साईट
harshad30.wordpress.com
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