कलम चल रही जरा
धीरे धीरे
भाव बन रहे मगर
धीरे धीरे।
उम्मीदों की जिद
कायम है अब भी
शब्द बंध रहे
हैं जरा धीरे धीरे।
कसक उठ रही मन
में जरा धीरे धीरे
इक धुन बन रही
है जरा धीरे धीरे।
सबने मिलकर
तरन्नुम जो छेड़ा
कि गज़ल बन रही
है जरा धीरे धीरे।
जिन्दगी के साज
बज रहे धीरे धीरे
हुआ सफ़र का आगाज
जरा धीरे धीरे।
000
पूनम श्रीवास्तव
4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 18 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
"हुआ सफ़र का आगाज जरा धीरे धीरे" - बधाई
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-05-2016) को "अबके बरस बरसात न बरसी" (चर्चा अंक-2345) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर गजल
भ्रमर ५
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