जिन्दगी इक बोझ सी
लगने लगती है जब
जिन्दगी का रुख अपनी
तरफ़ नहीं होता
व्यर्थ और निरर्थक
पर तभी अचानक से
रुख पलट जाता है
खुशियों के कुछ
संकेतों से
और फ़िर
हम जिन्दगी से
प्रेम करने लगते हैं
और चल पड़ती है
जिन्दगी
खुशियों का निमन्त्रण पाकर
आगे मंजिल की तरफ़
एक अन्तहीन यात्रा पर
उल्लास से भरी।
000
पूनम श्रीवास्तव
9 टिप्पणियां:
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 31/05/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
सच लिखा, बधाई
आशावाद का संचार करती खूबसूरत कविता। अति सुन्दर।
निरर्थक और सार्थक का मनोविज्ञान समझाती हुई एक वेहतरीन रचना। मुझे अच्छी लगी।
ख़ुशी और गम सिक्के के दो पहलु के तरह है। ..
निराशा के बाहर निकालती हैं आशा , वही जिन्दा रखती हैं हम इंसानों को। .
बहुत सुन्दर
आशा ही है जो प्रेरित करती है जीने के लिए .... बहुत सुन्दर सकारात्मक रचना ...
जिन्दगी के दोनों पलो से इन्सान बहुत कुछ पता है । पर सुख के पल हमे जीना शिखा देते है । बहुत सुंदर ।
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