दरवाजे की झिरी से
देखने की कोशिश करती हूँ
आती पदचाप को
कानों से सुनने को आतुर
दिल की धड़कन द्वारा
उसको गिनने की कोशिश करती हूँ
हाथ बढ़ा कर
उसे पकड़ लेना चाहती हूँ
पर अपने को
पाती हूँ लाचार
क्योंकि वो समय है।
************************
पूनम
देखने की कोशिश करती हूँ
आती पदचाप को
कानों से सुनने को आतुर
दिल की धड़कन द्वारा
उसको गिनने की कोशिश करती हूँ
हाथ बढ़ा कर
उसे पकड़ लेना चाहती हूँ
पर अपने को
पाती हूँ लाचार
क्योंकि वो समय है।
************************
पूनम
7 टिप्पणियां:
रेत की तरह हाथों से फिसल जाता है,
पर कुछ मर्म दे जाता है........
जिसे आपने खूबसूरती से लिखा है.....
वक्त ही एक ऐसी चीज़ है इस कायनात में,
जो न रुक सका है न कभी रुकेगा
सुंदर अभिव्यक्ति...
सही है, वक्त को कौन थाम पाया है। बढ़िया रचना।
poonam
waqt sach hi kabhi pakad men nahi aata. bahut sahi kaha hai.
समय ! बिल्कुल सही अंदाज़ में पेश किया है.....u r not only a simple house wife . u r a good thinker...isi tarah apne soch ko hamare saath bante rahe....ham yuvao ko aaplogo ki bahut jarurat hai
Sahaj shabdon me arthpurna baat rakhi hai aapne.Badhai.
एक टिप्पणी भेजें