शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

उलझन


घिस घिस कर कलम
भर गए सब पन्ने
पर लिखनी थी जो बात
वो ही न लिख सके।

सुन सुन कर औरों की
कान जब्त हो गए
जब कहने की बारी आई
तो ख़ुद कुछ न कह सके।

मन का दिया बना कर
सोचों की आहुति डाली
सूरज की रोशनी में भी
पर वो न जल सके।

तारों को अपने आँचल में
चाहा था उतारना
पर क्या करें जब पाँव
जमीं पर ही न टिक सके।
………….
पूनम

11 टिप्‍पणियां:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

पूनम जी ,
बहुत ही सुंदर शब्द लिखे हैं आपने.......
मन का दिया बना कर ,
सोचों की आहुति डाली
सूरज की रोशनी में
पर वो न जल सके .
अच्छी रचना के लिए बधाई.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

इस उलझन में पूरी ज़िन्दगी निकल जाती है,वक्त आने पर खामोशी ही हिस्से आती है....
बहुत अच्छी रचना..

ilesh ने कहा…

खूबसूरत एहसास...

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

शुक्रिया पूनम मेरे ब्लाग पर आने का। हमेशा ही स्वागत है। अच्छा लिख ररही हैं आप और मैं देख रही हूँ कि निखार आ रहा है हर अबर आपकी लेखनी में पहले से ज़्यादा।

निर्मला कपिला ने कहा…

sochon ki aahutise chahe dya na jala ho magar aapke shabdon ki ahuti ne sunder kavita to rach di hai bdhaai

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) ने कहा…

bahut sundar likha hai aapne.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Bahut sundar ...

जब कहने की बारी आई
तो ख़ुद कुछ न कह सके।
Bahut ache bhav han aapki is rachna ke ...बधाई.

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

सुंदर शब्द लिखे हैं आपने..
बधाई.

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

very impressive poem.

आपका शब्द संसार भाव, विचार, भाषा और प्रखर अभिव्यक्ति के स्तर पर ह्रदय को गहराई से प्रभावित करता है । अच्छा लिखा है आपने । विषय के साथ न्याय किया है ।

मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-

http://www.ashokvichar.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

सुंदर रचना. साधुवाद.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

soch ki uljhano ko sahi shabdon men racha hai.

ek achchhi rachna ...