बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

शब्दों का खेल


शब्दों से क्या क्या खेल
खेलते हैं लोग
शब्दों को तोड़ मरोड़ कर
पेश करते हैं लोग।

दिल में रखते हैं जो जहर
शहद टपकाते हैं लोग
शब्दों के तीर चला चला कर
घायल करते हैं लोग।

शब्दों से ही शब्द के मायने
बदल देते हैं लोग
राजनीति हो या चौपाल गाँव की
शब्दों के ही जाल बुनते हैं लोग।

पाने के लिए कुछ भी
शब्दों का साथ लेते हैं लोग
मतलब पर आम शब्द को भी
खास बना देते हैं लोग ।

शब्द न मिलने पर कोई
बगले झांकते हैं लोग
क्यों की बिना शब्द के
गूंगे हो जाते हैं लोग।
००००००००००००००
पूनम

8 टिप्‍पणियां:

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

अच्छी कविता की प्रस्तुति के लिये साधुवाद स्वीकारें...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

शब्दों के इस खेल में लोग कोई भी शब्द उठा लेते हैं और घायल कर जाते हैं,....शब्दों का चयन सही हो तो सुकून मिलता है,रिश्तों में गहराई आती है .........बहुत अच्छी,सार्थक रचना

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर व बढिया रचना लिखी है।सच है शब्द की चोट गोली की चोट से भी गहरी होती है।

दिल में रखते हैं जो जहर
शहद टपकाते हैं लोग
शब्दों के तीर चला चला कर
घायल करते हैं लोग।

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

पूनम जी ,
बहुत सुंदर ..बहुत भावनात्मक कविता
बधाई.

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

शब्दों को लेकर आपके शब्दों ने निशब्द कर दिया. यंहा खेल तो शब्दों का ही है. शब्द ही जीवन होते है. अगर पूरी इमानदारी से उन्हें रचा जाए तो दिल तक छूते है.
अच्छा लगा आपका शब्द नामा. लिखती बहुत सुंदर है. मुझे तो पढ़ने में आनद आया.
धन्यवाद

Saleem Khan ने कहा…

पूनम जी, आपने जो कविता लिखी, उसमे वाकई शब्दों का अच्छा ताना बुना है, शब्द के जो अर्थ आप ने इस यहाँ ज़ाहिर किए वो वाकई अच्छे हैं. अच्छे लफ्ज़ों का इस्तेमाल है खास कर के:

//दिल में रखते हैं जो जहर
शहद टपकाते हैं लोग
शब्दों के तीर चला चला कर
घायल करते हैं लोग।

कुछ हमारी तरफ़ से भी,

ऐ काश प्यार का ख़त हम भी लिख पाते,
शब्दों के खेल को हम भी खेल पाते.
खुदा ने दिल पर चोट कुछ ऐसी दी,
आंसुओं को छुपाके काश हम भी मुस्कुरा पाते !

आंखों की ज़ुबां वो समझ नही पाते,
होंठ मगर कुछ कह ही नही पाते,
अपनी बेबसी किस तरह कहे,
शब्दों के तीर हम चला नही पाते !

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१. ज़िन्दगी की आरज़ू
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