उम्र की क्या बात दोस्तों , उम्र बडी चीज़ है ,
कुछ रोकर गुजर जाती है , कुछ हंसकर गुजारी जाती है ।
कभी सपनों को संजोते , कभी खुशियों को बिखराते ,
कभी औरों पे लुटाते , ये यूँ ही गुजर जाती है ।
कभी बीते हुए लम्हे , कभी बीते हुए दिन को ,
अपने अंदर ही समेटे , ये सिमटती ही चली जाती है .
कभी अपनों को बेगानी , तो बेगानों का अपनापन ,
के बीच त्रिशंकु सी , झूलती रह जाती है ।
कभी बचपन के हिंडोले को , झुलाती हुई उम्र ,
कभी डगमगाते हुए कदमों को , सम्भालती हुई उम्र ।
कभी जिन्दगी से खेल , खिलाती हुई उम्र ,
बस बीत जाती है , या बिता दी जाती है ।
कुछ रोकर गुजर जाती है , कुछ हंसकर गुजारी जाती है ।
कभी सपनों को संजोते , कभी खुशियों को बिखराते ,
कभी औरों पे लुटाते , ये यूँ ही गुजर जाती है ।
कभी बीते हुए लम्हे , कभी बीते हुए दिन को ,
अपने अंदर ही समेटे , ये सिमटती ही चली जाती है .
कभी अपनों को बेगानी , तो बेगानों का अपनापन ,
के बीच त्रिशंकु सी , झूलती रह जाती है ।
कभी बचपन के हिंडोले को , झुलाती हुई उम्र ,
कभी डगमगाते हुए कदमों को , सम्भालती हुई उम्र ।
कभी जिन्दगी से खेल , खिलाती हुई उम्र ,
बस बीत जाती है , या बिता दी जाती है ।
पूनम
11 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर यथार्थ को कहती रचना आपकी हलकी फुलकी कविता बहुत गहराई समेटे हैं
प्रदीप मानोरिया
०९४२५१ ३२०६०
GOOD ONE
सच को आइना दिखती है यह रचना
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http://prajapativinay.blogspot.com/
उम्र का कारवां तो हर दिन चलता है
नए सपने,ख्वाब,आंसू,मजबूती.........
सिलसिला है एक,रुकता नहीं,
बहुत सुन्दर
सही कहा आपने. उम्र कि बात क्या पूछनी. बस बीत ही तो जाती है.
dear poonam mam,
bilkul sahi kaha apne...kabhirokar gujar jati hai to kabhi has kar gujari jati hai.................yahi to zindagi hai....hasna rona to laga hi rehta hai...ab ye app pe dpnd krta hai ki ap kaise ise jeete hai..umra hai..to beete ge hi........use has ke ya ro ke bitana hamare hat me hai..
vaise bot hi marm sparshi kavita thi ye...
best wishes....
उम्र की क्या बात दोस्तों , उम्र बडी चीज़ है ,
कुछ रोकर गुजर जाती है , कुछ हंसकर गुजारी जाती है ।
***FANTASTIC
PLEASE VISIT MY BLOG...........
नया साल आपको मंगलमय हो
Poonam ji, bahut hee sadhe shabdon men ..bahut hee sundar rachna...Badhai.
कभी बचपन के हिंडोले को , झुलाती हुई उम्र ,
कभी डगमगाते हुए कदमों को , सम्भालती हुई उम्र ।
कभी जिन्दगी से खेल , खिलाती हुई उम्र ,
बस बीत जाती है , या बिता दी जाती है ।
क्या हकीक़त दर्शाईएक अलग अंदाज़ में है बहुत ही अच्छा लिखा है उम्र के बारे मैं मैं पहली रचना पढ़ रहा हूं इस विषय पर आपने बहुत ही अच्छी तरहां से लिखा है.......
अक्षय-मन
कभी जिन्दगी से खेल , खिलाती हुई उम्र ,
बस बीत जाती है , या बिता दी जाती है ।
ye to aapne theek kaha.... acha laga...!!
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