नींद यूँ उडी ज्यों हवा हो गयी
जैसे पिंजरे से चिडिया रिहा हो गयी ।
चाहर दीवारी के अंदर हुई जो बात
आज हर जुबान-ए दास्ताँ बन गयी ।
होंठ जो खुले फ़िर बंद हो गये
आंख हर हाल -ए -दिल को बयाँ कर गयी ।
दुश्मनी का पैगाम जहाँ भेजते थे रोज़
आज वहीं दोस्ती अजीब बन गयी ।
नफरत की आग जब खत्म हुई दिल से
दूरियां भी आज करीब बन गईं ।
शब्द शब्द जोड़ कर लिखते थे कई
जैसे पिंजरे से चिडिया रिहा हो गयी ।
चाहर दीवारी के अंदर हुई जो बात
आज हर जुबान-ए दास्ताँ बन गयी ।
होंठ जो खुले फ़िर बंद हो गये
आंख हर हाल -ए -दिल को बयाँ कर गयी ।
दुश्मनी का पैगाम जहाँ भेजते थे रोज़
आज वहीं दोस्ती अजीब बन गयी ।
नफरत की आग जब खत्म हुई दिल से
दूरियां भी आज करीब बन गईं ।
शब्द शब्द जोड़ कर लिखते थे कई
आज वो इक मोटी किताब बन गयी।
पूनम
5 टिप्पणियां:
bahut khoob dil ke jazbaat likh diye hain .badhai
भावनाओं को कितनी सरलता से बताया है,
आम ज़िन्दगी को चितरी कर दिया....सुन्दर
aapko bhi naye varsh ki bahut bahut badhaiyee aour meri subhkaamnaaye.
aapki blog bahut hi sunder aour bhav purn hai.
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
wah ji , kya baat kahi hai aapne , nafrat ki aag khatma hui to dooriyan bhi nazdikhiyan ban gayi hai ...
poori gazal ,bhavnao ka mishran hai ..
badhai ..
vijay
Pls visit my blog for new poems:
http://poemsofvijay.blogspot.com/
एक टिप्पणी भेजें