घिस घिस कर कलम
भर गए सब पन्ने
पर लिखनी थी जो बात
वो ही न लिख सके।
सुन सुन कर औरों की
कान जब्त हो गए
जब कहने की बारी आई
तो ख़ुद कुछ न कह सके।
मन का दिया बना कर
सोचों की आहुति डाली
सूरज की रोशनी में भी
पर वो न जल सके।
तारों को अपने आँचल में
चाहा था उतारना
पर क्या करें जब पाँव
जमीं पर ही न टिक सके।
………….
पूनम
भर गए सब पन्ने
पर लिखनी थी जो बात
वो ही न लिख सके।
सुन सुन कर औरों की
कान जब्त हो गए
जब कहने की बारी आई
तो ख़ुद कुछ न कह सके।
मन का दिया बना कर
सोचों की आहुति डाली
सूरज की रोशनी में भी
पर वो न जल सके।
तारों को अपने आँचल में
चाहा था उतारना
पर क्या करें जब पाँव
जमीं पर ही न टिक सके।
………….
पूनम
11 टिप्पणियां:
पूनम जी ,
बहुत ही सुंदर शब्द लिखे हैं आपने.......
मन का दिया बना कर ,
सोचों की आहुति डाली
सूरज की रोशनी में
पर वो न जल सके .
अच्छी रचना के लिए बधाई.
इस उलझन में पूरी ज़िन्दगी निकल जाती है,वक्त आने पर खामोशी ही हिस्से आती है....
बहुत अच्छी रचना..
खूबसूरत एहसास...
शुक्रिया पूनम मेरे ब्लाग पर आने का। हमेशा ही स्वागत है। अच्छा लिख ररही हैं आप और मैं देख रही हूँ कि निखार आ रहा है हर अबर आपकी लेखनी में पहले से ज़्यादा।
sochon ki aahutise chahe dya na jala ho magar aapke shabdon ki ahuti ne sunder kavita to rach di hai bdhaai
bahut sundar likha hai aapne.
Bahut sundar ...
जब कहने की बारी आई
तो ख़ुद कुछ न कह सके।
Bahut ache bhav han aapki is rachna ke ...बधाई.
सुंदर शब्द लिखे हैं आपने..
बधाई.
very impressive poem.
आपका शब्द संसार भाव, विचार, भाषा और प्रखर अभिव्यक्ति के स्तर पर ह्रदय को गहराई से प्रभावित करता है । अच्छा लिखा है आपने । विषय के साथ न्याय किया है ।
मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
सुंदर रचना. साधुवाद.
soch ki uljhano ko sahi shabdon men racha hai.
ek achchhi rachna ...
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