अंधेरे में दिया जला दो जरा
मुझे कोई रास्ता सूझता नहीं।
जिंदगी बन गयी पहेली मेरी
मगर कोई उसको बूझता नहीं।
उठते हुए को पूजते हैं लोग
गिरते को कोई पूछता नहीं।
मन में पडी जो ऐसी दरार
लाख कोशिश से भी वो जुड़ता नहीं।
मोम सा दिल ऐसा पत्थर बना
जो पिघलाने से भी अब पिघलता नहीं।
दिल पर जख्म इतने गहरे हुए
जो मलहम लगाने से सूखता नहीं।
बता दो जहाँ में इन्सां कोई ऐसा
जो मुश्किलों से कभी जूझता नहीं।
०००००००००
पूनम
मुझे कोई रास्ता सूझता नहीं।
जिंदगी बन गयी पहेली मेरी
मगर कोई उसको बूझता नहीं।
उठते हुए को पूजते हैं लोग
गिरते को कोई पूछता नहीं।
मन में पडी जो ऐसी दरार
लाख कोशिश से भी वो जुड़ता नहीं।
मोम सा दिल ऐसा पत्थर बना
जो पिघलाने से भी अब पिघलता नहीं।
दिल पर जख्म इतने गहरे हुए
जो मलहम लगाने से सूखता नहीं।
बता दो जहाँ में इन्सां कोई ऐसा
जो मुश्किलों से कभी जूझता नहीं।
०००००००००
पूनम
8 टिप्पणियां:
माननीय महोदया,
सादर अभिवादन
आपक ेब्लाग पर साहित्यिक विधाओं से परिचय प्राप्त हुआ। यदि आप साहित्यिक पत्रिकाओं की समीक्षा पढ़ना चाहती है तो मेरे ब्लाग पर अवश्य पधारे आप रिनाश नहीं होंगी।
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथा चक्र
please visit us--
http://katha-chakra.blogspot.com
पूनम जी
मैं कोई बहुत बड़ा जानकार तो नहीं हूँ मगर आपकी इस रचना में मतला की कमी खटक रही है
जिंदगी बन गयी पहेली मेरी
मगर कोई उसको बूझता नहीं।
ये शेर ख़ास पसंद आया
वीनस केसरी
उठते हुए को पूजते हैं लोग
गिरते को कोई पूछता नहीं।
........बहुत बड़ी सच्चाई है,बहुत बढिया
शुभकामनाएं, बेहतरीन गीत-गज़ल के लिये…।
भावपूर्ण रचना ,तकनिकी रूप से ग़ज़ल किसी की भी पूर्ण नहीं होती लेकिन उसका भावः पक्ष ही उसे प्रबल बना देता है और आपकी ये रचना इस खूबी से भरपूर है ,कई शेर इतने अच्छे बन पड़े है की उन्हें सहेजने को दिल करता है .
नमन
भावः शब्दों का चयन ,लय सब कुछ उत्तम /मगर में निंदक हूँ ,विघ्नसंतोषी हूँ जब तक विघ्न पैदा न करून मुझे संतोष ही नहीं होता अत निवेदन है की =किस किस से दिया जलाने की मिन्नतें करें ""तुम्हारे पावं के छालों को कौन देखेगा ,ज़माना राह में कांटे बिछाने वाला है "" अत मुनासिव यही कि हम खुद दीपक जला कर औरों के अँधेरे दूर करें /हर जिंदगी एक पहेली है कौन किसको बूझेगा /यह बात नितांत सत्य है कि गिरते को कोई पूछता नहीं , धक्का देने अलबत्ता लोग तैयार रहते है ""डूब जाना ही तेरे हक में रहेगा बेहतर ,मश्बिरा मुझ को ये देते है बचाने वाले ""टूटे से फिर ये न जुड़े ,जुड़े तो गांठ पढ़ जाये इसी लिए रहीम ने कहा -धागा प्रेम का न तोड़ो चिटकाय-संसार में केवल मात्र मृत व्यक्ति के पास मुश्किलें नहीं होती वरना इस संसार में भगवान के पिता (दशरथ )को भी रो रो कर मरना पड़ा था और भगवान् की माँ (कौशल्या आदि ) को बैधव्य देखना पड़ा था /ग़ालिब साहिब ने कहा था "मुश्किलें मुझ पर पडी इतनी का आसाँ हो गईं / खैर = रचना आपकी अपनी जगह काफी श्रेष्ठ है /
पूनम जी ,
आज तो हर ब्लॉग पर गजल ही पढता आ रहा हूँ ...आपकी गजल भी पढ़ डाली ...बढ़िया गजल ...
अंधेरे में दिया जला दो जरा
मुझे कोई रास्ता सूझता नहीं|
सुन्दर है,
मेरे विचार में,
"एक शमा की सब वफ़ायें जब हवा से हो गयीं,
फ़िर बेचिरांगां रास्तों का लुत्फ़ ही जाता रहा।"
एक टिप्पणी भेजें