शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

ख्वाब सुनहरे


जुगनू सी चमकती आँखों में
कई ख्वाब सुनहरे सजने लगे
अमर बेल से मन के अन्दर
धीरे धीरे पनपने लगे।

फ़िर चाहत पूरा करने की
उमंगें भी उडानें भरने लगीं
एक समय ऐसा आया
जब सच को हम भी समझने लगे।

सपने जो संजोये आँखों ने
वो बनने और बिखरने लगे
सपने और हकीकत में
अन्तर को बयां वो करने लगे।

ठानी हमने भी अपनी
किस्मत को अजमाने की
मेरा जुनूँ ज्यों बढ़ता गया
हकीकत में सपने बदलने लगे।

सपने तो सपने होते हैं
इस सच को हम झुठलाने लगे
पूरे होते हैं ख्वाब तभी
जब रंग मेहनत के भरने लगें।
०००००००००
पूनम

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ख्वाब सुनहरे पलकांे और आँखों में पलते हैं,
दीप खुशी के बिरलों के ही मन में जलते है।
काँटों की राहों पर चलने से मंजिल मिलती हैं
जो करते हैं श्रम उनके ही भाग्य बदलते है।।

कडुवासच ने कहा…

सपने तो सपने होते हैं
इस सच को हम झुठलाने लगे
पूरे होते हैं ख्वाब तभी
जब रंग मेहनत के भरने लगें।
... प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत भावपूर्ण सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ठानी हमने भी अपनी
किस्मत को अजमाने की
मेरा जुनूँ ज्यों बढ़ता गया
हकीकत में सपने बदलने लगे।....
ठान लेने पर सब संभव है ......सुन्दर

Alpana Verma ने कहा…

सच और हकीकत में अंतर को दूर करने के लिए सिर्फ इसी जज्बे और जुनून की जरुरत होती है.सुन्दर सन्देश देती हुई कविता

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

Bahut sundar kavita...badhai.

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

दैनिक हिंदुस्तान अख़बार में ब्लॉग वार्ता के अंतर्गत "डाकिया डाक लाया" ब्लॉग की चर्चा की गई है। रवीश कुमार जी ने इसे बेहद रोचक रूप में प्रस्तुत किया है. इसे मेरे ब्लॉग पर जाकर देखें !!

Vinay ने कहा…

मीठी-मीठी सुन्दर पोस्ट

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुंदर प्रेरक भाव हैं
कांटों की राहों पर चलने से मंज़िल मि्लती है
जो करते हैं श्रम उनके ही भग्य बदलते हैं

मोना परसाई ने कहा…

जुगनू सी चमकती आँखों में
कई ख्वाब सुनहरे सजने लगे
अमर बेल से मन के अन्दर
धीरे धीरे पनपने लगे।
sahaj aur sundr pgntiya poonm ji bhut achchhe.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति .
बधाई