सोमवार, 10 अगस्त 2009

बालगीत


आज मैं अपना एक बालगीत प्रकाशित कर रही हूं।

वैसे आप लोग मेरे अन्य बालगीत फ़ुलबगिया ब्लाग

पर पढ़ सकते हैं।

नाना जी की मूँछ

नाना जी की मूँछ
जैसे गिलहरी जी की पूंछ
अकड़ी रहती हरदम ऐसे
जैसे कोई रस्सी गयी हो सूख।
नाना जी मूँछों पर अपनी
हरदम देते ताव
पहलवान जी जैसे कोई
जीत गए हों दाँव।
कभी दाई मूँछ तो कभी बांई फ़ड़कती
कभी ऊपर उठती कभी नीचे गिरती
दरोगा की मूँछ भी
उनके आगे पानी भरती ।
नाना जी की मूँछ हरदम
ऐंठन में ही रहती
शान न गिरने पाए कभी
हरदम कोशिश करती ।
नाना जी की मूँछ की
गली गाँव में पूछ
फ़ेल हो गई उनके आगे
नत्थू राम की मूँछ ।
0000
पूनम


15 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

पूमन जी।
शानदार है यह बाल-गीत।
दादा जी की मूँछें बढ़िया रहीं।

Unknown ने कहा…

Bahut Barhia... kuchh naya sa laga...

http://hellomithilaa.blogspot.com
Mithilak Gap...Maithili Me

http://muskuraahat.blogspot.com
Aapke Bheje Photo

http://mastgaane.blogspot.com
Manpasand Gaane

Arshia Ali ने कहा…

बहुत प्यारी मूंछ है.
{ Treasurer-T & S }

दिगम्बर नासवा ने कहा…

NAANA JI KI MOONCH TO BHAI GAZAB KI NIKLI.... SUNDAR BAAL RACHNA HAI

shivraj gujar ने कहा…

अले आपने तो बहुत ही बदिया गीत लिखा है. तसम से मेला मन बाद-बाद हो गया.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बालगीत लिखना भी सब के बस की बात नहीं ....मन को कहीं बाल मन से जोड़ कर ही लिखे जा सकते हैं ऐसे गीत ....बहुत बढ़िया ....!!

sandhyagupta ने कहा…

Bal sahitya ek upekshit si vidha hai aise main koi bhi prayas khushi deta hai.

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर बालगीत बधाई

vallabh ने कहा…

मैं तो सोच रहा हूँ कैसे मेंटेन करते होंगे ?
अच्छा बालगीत .... बधाई....

Vinay ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना है, अति सुन्दर
---
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। जय श्री कृष्ण!!
----
INDIAN DEITIES

vikram7 ने कहा…

स्‍वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

दर्पण साह ने कहा…

एक बीज,
ऊपर आने के लिए,
कुछ नीचे गया ,
ज़मीन के .


कस के पकड़ ली मिटटी ,
ताकि मिट्टी छोड़ उड़ सके .

६३ बरसा हुए आज उसे ….

…मिट्टी से कट के कौन उड़ा ,
देर तक ?

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

BrijmohanShrivastava ने कहा…

पहली बात आपको पुरानी फिल्म शराबी का डायलोग याद रहा "मूंछे हो तो नत्थू लाल जैसे हों वरना न हों "नानाजी की मूंछो वावत उपमा भी बहुत शानदार दी है जैसे गिलहरी की पूँछ ,सूखी रस्सी ,पहलबान का दाव जीतना ,दरोगा की मूंछ (यहाँ एक बिनम्र निवेदन करना चाहूंगा सही शब्द "दारोगा " होता है दरोगा नहीं ) उर्दू में दरोगा को चालक बेईमान धूर्त कहा जाता है |मुंशी प्रेमचंद ने जो कहानी लिखी है वह है "नमक का दारोगा "") खैर टोटल मिला के बहुत सुंदर बाल कविता है बच्चा भी खुश और नानाजी भी खुश |आज कल आवश्यकता है ऐसी रचनाओं की |आनंद दायक |

Riya Sharma ने कहा…

bachchon ke liye likha mazedaar baal geet !!

Meri rachna sarahne kaa bhee
abhaar !!

Urmi ने कहा…

वाह बहुत ही सुंदर और प्यारा बाल गीत लिखा है आपने! मूंछे का तो जवाब नहीं!