बुधवार, 3 दिसंबर 2008

तूफानों को .....


समुन्दर में तूफानों को उठते हुए देखा,
नदी तालों को भी उफनाते हुए देखा,
अश्क से दामन को भिगोते हुए देखा,
पर उस पर लगे दाग को मिटते नहीं देखा.

जिंदगी को जिन्दादिली से जीते देखा,
मौत को भी हंस कर गले लगाते देखा,
जिंदगी से मौत की टकराहट देखा,
पर जिंदगी व मौत को साथ निभाते नहीं देखा.

दोस्त को दुश्मन के गले लगते देखा,
पीठ में छुरा उन्हें भोंकते देखा,
गम के अंधेरों में दोनों को सिसकते देखा,
नदी के दो पाटों की तरह दिल को मिलते नहीं देखा.

चाँद तारों को जमीन पर उतरते देखा,
पंख परवाजों को आसमान को छूते देखा ,
धरती में ही स्वर्ग कहीं बनते हुए देखा,
अम्बर को धारा से मिलते नहीं देखा.

हमने बचपन भी देखा पचपन भी देखा,
बीती हुयी जिंदगानी देखा,
बहती हुयी रवानी देखा,
पर कहते हैं जिसे किस्मत उसको ही नहीं देखा.
……………….
पूनम

3 टिप्‍पणियां:

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

Poonamji,
apkee kavita bahoot sundar likhi gai hai.Apne toofan ko madhyam bana kar samaj men ban bigad rahe rishton,unmen paida ho rahee kadvahat,tatha panap rahee dooriyon ko bahut sundar shabdon men sanjoya hai.Badhai.

seema gupta ने कहा…

पर जिंदगी व मौत को साथ निभाते नहीं देखा.
पर कहते हैं जिसे किस्मत उसको ही नहीं देखा.
" एक खुबसुरत भावः और एहसास से सजी रचना, जिन्दगी के बहुत करीब जिन्दगी के सच को बयाँ करती..."

regards

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

हमने इन शब्दों में पता नहीं क्या-क्या देखा....
कुछ हवाओं को तूफ़ान में बरपा होते हुए देखा ....