गुरुवार, 26 मार्च 2009

कहानी--- तेरे सपने मेरे सपने





“दिल्ली से इंजीनियरिंग करने के बाद अब अर्नव तुंरत ही चालीस हज़ार की नौकरी कर रहा है.”
“तो ठीक है , अपना रिशब भी चार-पांच साल में किसी न्यूज चैनल का प्रोड्यूसर बना बैठा होगा.”
“हाँ हाँ ,और पाएगा बीस पचीस हज़ार …संतुष्ट रहो उसी में.पहले खर्च करो लाखों और फ़िर हजारों पाओ.”

रिशब ये सारी बातें अपनी छोटी बहन मिश्टी के साथ बैठा सुन रहा था.माँ-पापा के इन रोज़ रोज़ के झगड़ों से वह ऊब चुका था और इसके लिए कहीं न कहीं ख़ुद को जिम्मेदार मानता था.कुछ सोच कर वह बाहर चला गया .

दरअसल रिशब ने इसी साल बारहवी की परीक्षा पचासी परसेंट के साथ साइंस में पास की है .उसकी मम्मी उसे इंजीनियर बनाना चाहती थी.रिशब का सपना मीडिया से जुडकर अपना एक एन जी ओ चलाने का था .पर उसके सपनों के आगे है एक दीवार,माँ के सपनों की- – बड़ा बंगला ,लक्जरी कार…..इसीलिये माँ ने उसकी इच्छा के विरुद्ध इंजीनियरिंग के सारे फार्म भरवाए.उसका पुणे के कालेज में सेलेक्शन भी हो गया.अब वे उसे अपने सपने पूरे करने के लिए जबरदस्ती पुणे भेजना चाहती हैं.
सुबह का निकला रिशब रात दस बजे घर लौटा .”माँ मेरा कल रात का रिजर्वेशन हो गया है,आप मेरी तैयारी करवा दीजिये .”कहकर वह सोने चला गया.
मुम्मी ने खुशी में पूरी कालोनी में लड्डू बटवा दिया .पर पापा को अंदाजा था की खुशी का भूत उतरने तक शायद…….

“पापा प्लीज़, अपना आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रखियेगा .”कहते हुए रिशब फफक पड़ा था. पापा ने भरे गले से कुछ कहना चाहा..पर शब्द कहीं अटक कर रह गए थे .वे बस दूर तक जाते हुए आटो को देखते रहे …रिशब के अब तक छपे आर्टिकल्स और मम्मी के ताने ….लक्जरी कार ,सब कुछ उनके आंसुओं में गड्ड-मड्ड होता चला गया.

पुणे पहुँचते ही रिशब एकदम बदल गया. चंचल ,हँसमुख रिशब कहीं खो गया .उसकी जगह ले ली थी गुमसुम किताबों के पीछे छिपे रहने वाले रिशब ने.इस अकेलेपन में बस प्रशांत ही तो था ,जिससे वह सारे दुःख बाँट लेता था .
प्रशांत ने ही तो सबसे पहले रिशब के पापा को ख़बर दी थी की वह ड्रग एडिक्ट हो गया है. प्रशांत ने ही फोन पर उन्हें बताया कि पहले और दूसरे सेमेस्टर्स में बहुत कम नंबर आने के बाद से ही रिशब ड्रग्स लेने लगा था. फाइनल एक्जाम के बाद तो वह पूरी तरह टूट गया.एक तरफ़ माँ के सपने न पूरे कर पाने का दुःख ,दूसरी तरफ़ अपने सपनों के बिखरने का दर्द,सब कुछ सुनने के बाद जब तक रिशब के पापा पुणे पहुंचते तब तक …रिशब ने ख़ुद को सारे दुखों से एक झटके में मुक्त कर लिया था.मम्मी को भी जब तक समझ में आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
आज ….बीस साल बाद ,रिशब के जन्मदिन पर एक पुराने फोटो एल्बम के पन्ने पलटते पलटते मिश्टी की ऑंखें डबडबा आयी.वह आज भारती चैनल में इंग्लिश न्यूज की हेड है.
“माँ, मेरे एन जी ओ का ये प्रोजेक्ट यूनिसेफ वालों को जरूर पसंद आयेगा.”
“हा ,बेटी जा…भाई का सपना पूरा कर .”माँ ने ऑसू पोछते हुए कहा.
और पापा --यही सोच रहे थे कि काश ये आशीर्वाद बीस साल पहले निकला होता तो…………..
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लेखिका--नेहा शेफाली की कहानी झरोखा पर

पूनम--- द्वारा प्रकाशित




14 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

झरोखा पर प्रकाशित कहानी- ‘तेरे मेरे सपने’ अपने पीछे प्रश्नचिह्न छोड़ गयी है। कहानी मन पर अंकित हो गयी है। आप निरन्तर लिखतीं रहें।
नव सम्वत्सर पर मेरी बधाई स्वीकार करें।

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

वाह! इतनी छोटी उम्र में इतनी परिपक्व कहानी। इसी तरह लिखती रहो नेहा। बहुत ही सच्ची बात कही है तुमने अपनी कहानी के माध्यम से।

तुम्हारी और भी कहानियों के इंतज़ार में-

मानोशी आंटी

Shikha Deepak ने कहा…

बहुत अच्छी कहानी लिखी है। पढ़ कर हम भी विचारों में डूब से गए हैं।

sanjay vyas ने कहा…

कहानी बहुत सुंदर है.पुनम जी आपका शुक्रिया कि नेहा की कहानी को आपने हम तक पहुंचाया.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आँखें नाम हो आईं......एक प्रेरणादायी कहानी....

अभिषेक मिश्र ने कहा…

कुछ अनकही हकीकतों से रूबरू कराती है यह कहानी. बधाई.

ρяєєтii ने कहा…

bahot hi maarmik aur apni si lagi... ma-pa ke liye ek bodh katha samaan hai yeh kahani...

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

पुनम जी आपका शुक्रिया कि नेहा की कहानी को आपने हम तक पहुंचाया.

कहानी बहुत सुंदर है,मन पर अंकित हो गयी.

पढ़ कर हम भी विचारों में डूब से गए हैं।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

choti pr prabhavi khani...aisi ek ghtana maine bhi suni thi ...mata pita ka iklouta beta jo hamesa pratham aata raha... hostel jane ke bad kis kadar drugs ke chakkar me apne jivan se hath dho baitha ...bhot hi dardnak ghatna thi yah....kuch kuch isi kahani ki tarah....!!

Harshvardhan ने कहा…

bahut achchi kahani lagi

कडुवासच ने कहा…

... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

Unknown ने कहा…

आज के समाज में बच्चों खासकर किशोरों और युवाओं के ऊपर बढ़ते जा रहे दबावों और उसके दुष्परिणामों की सच्ची गाथा .इस कहानी को हर अभिभावक को अवश्य पढना चाहिए .नेहा को ढेर सारी शुभकामनायें.
काकू

बाल भवन जबलपुर ने कहा…

Mera sneh soochit keejiye
or badhai bhee

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अच्छी कहानी है।बधाई।