अपने अरमानों की अर्थी
खुद ही लिये फ़िरते हैं
कौन है जो अब
कांधा देने को मिले।
कोई मौत खुदी होती है
कोई बेमौत मारा जाता है
बाकी है कौन,किसी को
जो कफ़न ओढ़ाने को मिले।
पल दो पल का साथ
यारा हंस के बिता ले
जाने मिलने का वक़्त
फ़िर मिले ना मिले॥
अपने मिलते हैं गले
प्यार से अपने बन के
निकले जो बोल मधुर मुख से
पीठ पे चाहे छुरी ही मिले।
चन्द लम्हों की ये जिन्दगी
जो खुदा की दी अमानत है
कर ले थोडी बन्दगी,क्या पता
कौन सी गोली दिल चीर के निकले
अपना किसको कहें अब
ये दुनिया वालों
जब हाशिये पर ही है जिन्दगी
जाने कब किसको छले।
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पूनम
39 टिप्पणियां:
एक गहरी टीस छिपाये कविता।
क्य बात है जी.... बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना, धन्यवाद
bahut hi khubsutat rachna....
sunder prastuti.
पूनम जी...
छल, छूरी या प्यार है मिलता...
जितना जिसका हो नसीब...
उसका धोखा दिल पर लगता...
दिल के जो होता करीब....
जो भी मिलता, उससे मिलते...
हम तो दिल को खोल...
उसके गम को हम हरते हैं ...
मीठी बातें बोल...
भले किसी ने न हो समझा..
नहीं किसी ने अपना माना...
दुनिया को अपनाया दिल से ..
किसी ने न फिर भी पहचाना...
सुन्दर कविता....सुन्दर अभिव्यक्ति...
दीपक...
गहरे अर्थ लिए कविता।
मेरी तरफ से समर्थन.......
ये सच है ऐ मेरे रफीक, हमें आना और जाना है!
किसी को दफ्न होना है, किसी को अपनों ने जलाना है!
मगर जब तक हम और तुम हैं मतलबी इस दुनिया में!
मुझे बस इश्क करना है, तुम्हे उसको निभाना है!
पूनम जी बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना, धन्यवाद
अब ये दुनिया वालों जब हाशिये पर ही है जिन्दगी
जाने कब किसको छले।.
बहुत ही गहरे भाव छुपे हैं इस कविता में...
पूनम जी
नमस्ते
आपकी कबिता यथार्थ क़े बहुत नजदीक है भाव बुहत बढ़िया,लिखते वक्त आपका अहसास महसूस किया जा सकता है
वैसे मै कबिता नहीं करता एक सायरी याद है लिखता हू
जिनके लिए मारे थे ,
उनकी ये हल है,
ईटे चुरा रहे है ,
मेरी मजार से.
धन्यवाद
पल दो पल का साथ
यारा हंस के बिता ले
जाने मिलने का वक़्त
फ़िर मिले ना मिले॥
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ! जीवन की सच्चाई को बतलाती हुई आपने बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
बहुत खूबसूरती के साथ लिखी गयी रचना।
aapki kavita dil ko chu gayi.
दिल से जब कोई बात निकलती है संवेदनाओं को पार कर के तो सीधी दिल में ही उतर जाती है.
बहुत अच्छी रचना.
bahut hi gahree rachna
bahoot khoob punaam ji
अंदरुनी व्यथा को व्यक्त करते हुए सुन्दर शब्द!... सुन्दर कविता!
कर ले थोडी बन्दगी,क्या पता
कौन सी गोली दिल चीर के निकले
जी ....
मरने से पहले खिला जा
कुछ उदासी भरे चेहरों पे मुस्कान
कुछ न जायेगा ,सिवा कर्मों के
ये है गीता का ज्ञान .......
एक अच्छा सा सन्देश देती कविता ..
जिंदगी का सबक सिखाती रचना ...सुंदर !!!
bahut sundar rachna..
जीवन का कड़वा यथार्थ व्यक्त किया है आपने...मुझे बस दो बातें याद आ रही हैं..पहली तो ये कि आज कोई शाबाशी देने को भी पीठ थपथपाए तो डर जाता हूँ मैं कि शायद पीठ टटोल कर देखा रहा कि छुरा घोंपने की कौन सी जगह मुनासिब है..और दूसरी बात ये कि मुझेमारने के लिए किसी ख़ंजर की ज़रूरत नहीं..बस कोई दिल को छूने वाली कविता सुना दो या कोई संगीत..सलिल ख़ुद ब ख़ुद मर जाएगा...
पूनम जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!!
पूनम जी कमाल की कविता । आज जिंदगी सचमुच ऐसी ही छलिया हो गी है आज है कल होगी या नही कौन जाने ।
आपकी मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी बहुत ही उत्साहवर्धक लगी । औसी ही टिप्पणियां मेरे लिखने का हौसला बढाती हैं धन्यवाद । आगे भी स्नेह बनाया रखें ।
पूनम जी
नमस्कार !
एक बात कहूं ? बुरा मत मानें , प्लीज़ !
आप जैसी ख़ूबसूरत क़लमकार की लेखनी से दर्द भरे नग़्मे निकलते हैं , तो मैं बड़ी दुविधा में फंस जाता हूं ।
… उस दर्द के दरिया में डूब जाऊं या , उत्कृष्ट रचना की ता'रीफ़ करूं ?!
हाशिये पर ही है जिन्दगी जाने कब किसको छले
आपकी पिछली पोस्ट के गीत आया सावन से
मैं इतना आनन्दविभोर हो'कर लौटा था कि
कम से कम दो - तीन बार फिर आपके यहां आया था ।
सावन में बदरा बरसे
घनन घनन घन घन
बगिया में फ़ुलवा गमके
भीजे तन और मन
काले कजरों से भर गये
खंजन जैसे नयन
रंग बिरंगी चूड़ियों संग
सजे हाथ कंगन।
पूरा गीत कोट करने को मन करता है ।
और सच कहूं तो मैं अपनी मस्ती में इसे पढ़ते हुए अभी भी गुनगुना ही रहा हूं ।
रचनाएं आपकी सन्देशा … , सूरज और रजनी , तुम मिले भी बहुत अच्छीहैं ।
निवेदन इतना ही है ,
जीवन तो जटिल बोझिल है ही ,
कलम के माध्यम से तो … आनन्दवृद्धि के प्रयास अधिक हों !
आपका क्या कहना है ?
शस्वरं पर आपका हमेशा हार्दिक स्वागत है , आइए , और आते रहिएगा …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
khubsurat rachna
सही कहा न जाने जिंदगी कब किसे छल ले.....
एक ईमानदार प्रयास। सटीक यथार्थवादी चित्रण......सफलता आपके चरण चूमे।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
सुन्दर कविता....सुन्दर अभिव्यक्ति...
अति सुन्दर !
देवी !
इतना दूर तक मत सोचो देवी
poonam ji..vakai jindagi hashiye pe hai aur is ehsaas ko aapne shbdon mein sajeev kar diya hai..gud one!
बहुत गहरे भाव, बहुत२ बधाई...
अपना किसको कहें अब
ये दुनिया वालों
जब हाशिये पर ही है जिन्दगी
जाने कब किसको छले।
ज़िन्दगी के प्रति शिकवा लिये सुन्दर रचना। शुभकामनायें
आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .
गहन भाव लिए यह कविता उदास कर जाती है.
पल दो पल का साथ
यारा हंस के बिता ले
- सार्थक जीवन दर्शन
सुन्दर कविता....सुन्दर अभिव्यक्ति...
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
अपना किसको कहें अब
ये दुनिया वालों
जब हाशिये पर ही है जिन्दगी
जाने कब किसको छले।
टीस लिए है आपकी संवेदनशील रचना ....
Kavita dil ko choo jaati hai. Bahut sundar. Badhai
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