गुरुवार, 5 अगस्त 2010

हाशिये पर जिन्दगी


अपने अरमानों की अर्थी

खुद ही लिये फ़िरते हैं

कौन है जो अब

कांधा देने को मिले।

कोई मौत खुदी होती है

कोई बेमौत मारा जाता है

बाकी है कौन,किसी को

जो कफ़न ओढ़ाने को मिले।

पल दो पल का साथ

यारा हंस के बिता ले

जाने मिलने का क़्त

फ़िर मिले ना मिले॥

अपने मिलते हैं गले

प्यार से अपने बन के

निकले जो बोल मधुर मुख से

पीठ पे चाहे छुरी ही मिले।

चन्द लम्हों की ये जिन्दगी

जो खुदा की दी अमानत है

कर ले थोडी बन्दगी,क्या पता

कौन सी गोली दिल चीर के निकले

अपना किसको कहें अब

ये दुनिया वालों

जब हाशिये पर ही है जिन्दगी

जाने कब किसको छले।

------------

पूनम

39 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक गहरी टीस छिपाये कविता।

राज भाटिय़ा ने कहा…

क्य बात है जी.... बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना, धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

bahut hi khubsutat rachna....

Apanatva ने कहा…

sunder prastuti.

Deepak Shukla ने कहा…

पूनम जी...

छल, छूरी या प्यार है मिलता...
जितना जिसका हो नसीब...
उसका धोखा दिल पर लगता...
दिल के जो होता करीब....

जो भी मिलता, उससे मिलते...
हम तो दिल को खोल...
उसके गम को हम हरते हैं ...
मीठी बातें बोल...

भले किसी ने न हो समझा..
नहीं किसी ने अपना माना...
दुनिया को अपनाया दिल से ..
किसी ने न फिर भी पहचाना...

सुन्दर कविता....सुन्दर अभिव्यक्ति...

दीपक...

हास्यफुहार ने कहा…

गहरे अर्थ लिए कविता।

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

मेरी तरफ से समर्थन.......
ये सच है ऐ मेरे रफीक, हमें आना और जाना है!
किसी को दफ्न होना है, किसी को अपनों ने जलाना है!
मगर जब तक हम और तुम हैं मतलबी इस दुनिया में!
मुझे बस इश्क करना है, तुम्हे उसको निभाना है!

रचना दीक्षित ने कहा…

पूनम जी बहुत अच्छी लगी आप की यह रचना, धन्यवाद

rashmi ravija ने कहा…

अब ये दुनिया वालों जब हाशिये पर ही है जिन्दगी
जाने कब किसको छले।.
बहुत ही गहरे भाव छुपे हैं इस कविता में...

सूबेदार ने कहा…

पूनम जी
नमस्ते
आपकी कबिता यथार्थ क़े बहुत नजदीक है भाव बुहत बढ़िया,लिखते वक्त आपका अहसास महसूस किया जा सकता है
वैसे मै कबिता नहीं करता एक सायरी याद है लिखता हू
जिनके लिए मारे थे ,
उनकी ये हल है,
ईटे चुरा रहे है ,
मेरी मजार से.
धन्यवाद

Urmi ने कहा…

पल दो पल का साथ
यारा हंस के बिता ले
जाने मिलने का वक़्त
फ़िर मिले ना मिले॥
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ! जीवन की सच्चाई को बतलाती हुई आपने बहुत खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

बहुत खूबसूरती के साथ लिखी गयी रचना।

sheetal ने कहा…

aapki kavita dil ko chu gayi.

अनामिका की सदायें ...... ने कहा…

दिल से जब कोई बात निकलती है संवेदनाओं को पार कर के तो सीधी दिल में ही उतर जाती है.

बहुत अच्छी रचना.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi gahree rachna

Akhilesh pal blog ने कहा…

bahoot khoob punaam ji

Aruna Kapoor ने कहा…

अंदरुनी व्यथा को व्यक्त करते हुए सुन्दर शब्द!... सुन्दर कविता!

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

कर ले थोडी बन्दगी,क्या पता
कौन सी गोली दिल चीर के निकले

जी ....
मरने से पहले खिला जा
कुछ उदासी भरे चेहरों पे मुस्कान
कुछ न जायेगा ,सिवा कर्मों के
ये है गीता का ज्ञान .......

Arvind Mishra ने कहा…

एक अच्छा सा सन्देश देती कविता ..

मनोज भारती ने कहा…

जिंदगी का सबक सिखाती रचना ...सुंदर !!!

gaurtalab ने कहा…

bahut sundar rachna..

सम्वेदना के स्वर ने कहा…

जीवन का कड़वा यथार्थ व्यक्त किया है आपने...मुझे बस दो बातें याद आ रही हैं..पहली तो ये कि आज कोई शाबाशी देने को भी पीठ थपथपाए तो डर जाता हूँ मैं कि शायद पीठ टटोल कर देखा रहा कि छुरा घोंपने की कौन सी जगह मुनासिब है..और दूसरी बात ये कि मुझेमारने के लिए किसी ख़ंजर की ज़रूरत नहीं..बस कोई दिल को छूने वाली कविता सुना दो या कोई संगीत..सलिल ख़ुद ब ख़ुद मर जाएगा...
पूनम जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति!!

Asha Joglekar ने कहा…

पूनम जी कमाल की कविता । आज जिंदगी सचमुच ऐसी ही छलिया हो गी है आज है कल होगी या नही कौन जाने ।

आपकी मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी बहुत ही उत्साहवर्धक लगी । औसी ही टिप्पणियां मेरे लिखने का हौसला बढाती हैं धन्यवाद । आगे भी स्नेह बनाया रखें ।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

पूनम जी
नमस्कार !
एक बात कहूं ? बुरा मत मानें , प्लीज़ !
आप जैसी ख़ूबसूरत क़लमकार की लेखनी से दर्द भरे नग़्मे निकलते हैं , तो मैं बड़ी दुविधा में फंस जाता हूं ।
… उस दर्द के दरिया में डूब जाऊं या , उत्कृष्ट रचना की ता'रीफ़ करूं ?!
हाशिये पर ही है जिन्दगी जाने कब किसको छले

आपकी पिछली पोस्ट के गीत आया सावन से
मैं इतना आनन्दविभोर हो'कर लौटा था कि
कम से कम दो - तीन बार फिर आपके यहां आया था ।
सावन में बदरा बरसे
घनन घनन घन घन
बगिया में फ़ुलवा गमके
भीजे तन और मन


काले कजरों से भर गये
खंजन जैसे नयन
रंग बिरंगी चूड़ियों संग
सजे हाथ कंगन।


पूरा गीत कोट करने को मन करता है ।
और सच कहूं तो मैं अपनी मस्ती में इसे पढ़ते हुए अभी भी गुनगुना ही रहा हूं ।
रचनाएं आपकी सन्देशा … , सूरज और रजनी , तुम मिले भी बहुत अच्छीहैं ।

निवेदन इतना ही है ,
जीवन तो जटिल बोझिल है ही ,
कलम के माध्यम से तो … आनन्दवृद्धि के प्रयास अधिक हों !
आपका क्या कहना है ?

शस्वरं पर आपका हमेशा हार्दिक स्वागत है , आइए , और आते रहिएगा …

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Shri"helping nature" ने कहा…

khubsurat rachna

लोकेन्द्र सिंह ने कहा…

सही कहा न जाने जिंदगी कब किसे छल ले.....

डॉ० डंडा लखनवी ने कहा…

एक ईमानदार प्रयास। सटीक यथार्थवादी चित्रण......सफलता आपके चरण चूमे।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी

Prem Farukhabadi ने कहा…

सुन्दर कविता....सुन्दर अभिव्यक्ति...

alka mishra ने कहा…

अति सुन्दर !
देवी !
इतना दूर तक मत सोचो देवी

Parul kanani ने कहा…

poonam ji..vakai jindagi hashiye pe hai aur is ehsaas ko aapne shbdon mein sajeev kar diya hai..gud one!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

बहुत गहरे भाव, बहुत२ बधाई...

निर्मला कपिला ने कहा…

अपना किसको कहें अब

ये दुनिया वालों

जब हाशिये पर ही है जिन्दगी

जाने कब किसको छले।
ज़िन्दगी के प्रति शिकवा लिये सुन्दर रचना। शुभकामनायें

Dimple Maheshwari ने कहा…

आपकी टिपण्णी के लिए आपका आभार ...अच्छी कविता हैं...बहुत अच्छी .

Alpana Verma ने कहा…

गहन भाव लिए यह कविता उदास कर जाती है.

hem pandey ने कहा…

पल दो पल का साथ
यारा हंस के बिता ले
- सार्थक जीवन दर्शन

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर कविता....सुन्दर अभिव्यक्ति...

संजय भास्‍कर ने कहा…

"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

अपना किसको कहें अब
ये दुनिया वालों
जब हाशिये पर ही है जिन्दगी
जाने कब किसको छले।

टीस लिए है आपकी संवेदनशील रचना ....

kailash c sharma ने कहा…

Kavita dil ko choo jaati hai. Bahut sundar. Badhai