हालांकि यह विषय ऐसा नहीं है जिस पर गौर ना फ़रमाया गया हो। या पहले कभी इस विषय पर बात न हुयी हो। पर सोचने और लिखने का सबका अपना अपना नजरिया व अन्दाज होता है। हमारा ही यह देश है जिसमें हमें खुलकर कहने व लिखने की स्वतंत्रता है---हर सच्चाई और हर यथार्थ के लिये।
यहां एक अरब से ज्यादा की आबादी में विभिन्न भाषाओं और जाति धर्म के लोग भी मिल जुल कर रहते हैं। सबको अपनी अपनी भाषा में खुद को अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता है। तो फ़िर बात आकर हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम के बीच में क्यों त्रिशंकु की तरह लटक जाती है? फ़िर वही चर्चाये आम होकर सब को खास लगती है। वैसे बात हम अंग्रेजी व हिन्दी भाषा की कर रहे हैं तो उसी पर आते हैं। हम सोचने पर मजबूर हो गये हैं कि क्या हम हिन्दी को खुद ही अपने से दूर नहीं कर रहे हैं। कहीं दूर न जाकर अपने को ही लेती हूं----।
हमारे जैसे हजारों परिवार ऐसे हैं जो बच्चे के जन्म के साथ ही उसे लेकर भविष्य का ताना बाना बुनने लगते हैं। वह बड़ा होकर क्या बनेगा-----हम उसे क्या बनायेंगे----किस माध्यम से पढ़ायेंगे? इत्यादि।
उस समय हम यह नहीं सोचते कि बच्चा जब बड़ा हो जायेगा तो उसे भी कुछ स्वाधिकार देने होंगे। जिससे वह अपने नजरिये से अपने आप को व दुनिया को देखे व समझे।
लेकिन नहीं जैसे ही बच्चा थोड़ा बड़ा होता है हम उसे मां पिता की जगह माम डैड का पाठ पढ़ाना शुरू कर देते हैं। बच्चा अभी तक शू शु का मतलब शायद समझ न पाया हो पर हम उससे टायलेट और पोटी की बातें करते हैं। क्योंकि आज के समय सबके सामने हिन्दी की आम भाषा बोलने में हमे खुद जो शरम आती है।
तो कहने का मतलब यहां पर यही है कि बच्चे को हम स्वयं ही शुरू से हिन्दी भाषा से दूर करने लगते हैं। अगर उसने किसी के प्रश्न का उत्तर अंग्रेजी में नहीं दिया तो हमे लगता है कि हमारे मुंह पर किसी ने थप्पड़ मार दिया हो। अपने आप को हम अपमानित महसूस करते हैं।
स्कूल भेजने के पहले हम उसे क ख ग से बाद में परिचित करवाते हैं। पहले ए बी सी डी और अंग्रेजी की पोएम्स सिखाने का अभ्यास करवाते हैं ।ताकि उसका एक अच्छे व बड़े नाम वाले अंग्रेजी स्कूल में दाखिला हो जाये।बच्चा हिन्दी बोलना भले ही न सीख पाये पर अंग्रेजी में हम उसे पारंगत बना देते हैं। अगर कहीं गलती से टीचर ने अंग्रेजी के बजाय हिन्दी में रंगों के नाम पूछ लिया तो बहुत हद तक संभव है कि बच्चे के साथ हम भी एक बार रंगों के नाम सोचने पर मजबूर हो जायं। तब हमें यह अफ़सोस भी होगा कि हमने तो अपने बच्चे को अंग्रेजी के चक्कर में हिन्दी नाम तो बताया ही नहीं ---यह सोचकर कि ये सब तो बच्चा बाद में आसानी से सीख लेगा।
फ़िर कहीं बच्चे का एडमिशन आपके चाहने के अनुसार उस स्कूल में नहीं हुआ तो फ़िर तो संभव है कि बच्चे की शामत ही आ जाय। और फ़िर हम यूं मायूस हो जाते हैं कि उस स्कूल में अगर एडमिशन नहीं हुआ तो जैसे बहुत बड़ा खजाना आपके हाथ से निकल गया हो। हालांकि ज्यादातर मां बाप इस मामले में अपनी भी गलती मानते हैं। हर जगह ही लोग बच्चे पर अपना गुस्सा उतारे ये समझदारी मां बाप पर आधारित होती है।
कालेज में आने पर वही बच्चे के भविष्य का सबसे बड़ा चुनाव केन्द्र होता है। उसको खुद का आत्मविश्वास और उसकी मेहनत चाहे वह हिन्दी मीडियम में पढ़ा हो अंग्रेजी माध्यम से।
अगर हम अंग्रेजी को एक विषय के रूप में रखकर बाकी सारे विषयों को हिन्दी में पढ़ायें – बजाय हिन्दी को एक आम विषय समझ कर बाकी सभी विषयों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ायें तो शायद हमारी हिन्दी भाषा फ़िर धीरे धीरे हमारी अपनी होती जायेगी।
हम यह नहीं कहते कि अंग्रेजी पढना गलत है,बिल्कुल गलत नहीं है क्योंकि आज का जो समय बदल गया है उससे ज्यादातर देशों में अंग्रेजी का बोलबाला है। और हिन्दी का कम्। क्योंकि हमारा भारत देश ही एक ऐसा देश है जहां हर भाषा जाति, धर्म ,सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। और जिन्हें अपनी अपनी भाषा बोलने की पूर्ण स्वतन्त्रता है।
ऐसे में भी यदि कोई हिन्दी भाषी बाहर नौकरी के लिये जाना चाहता है तो उसे थोड़ी हिचकिचाहट महसूस होती है क्योंकि ज्यादातर राज्यों में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होने से काफ़ी सहूलियत होती है। क्योंकि महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश आदि जैसे कई ऐसे प्रदेश हैं जहां आप अगर जरा भी अंग्रेजी जानते हैं तो आपकी परेशानी थोड़ी कम होगी । औरों की भाषा को न समझ कर अपनी बात को अंग्रेजी के टूटे फ़ूटे शब्दों में भी समझ सकते हैं।
समय परिस्थितियां और बदलाव आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत है। जिसके अनुसार हमें कहीं न कहीं समझौता करना पड़ता है और दूसरों को भी।
लेकिन हम अगर अंग्रेजी के साथ साथ अपनी हिन्दी भाषा को भी साथ लेकर चलें तो ज्यादा बेहतर होगा। ऐसा नहीं कि हिन्दी बोलकर हम या आप अपमानित होंगे। बल्कि इससे और भी भाषाओं का ज्ञान बढ़ेगा हिन्दी के साथ साथ।
तो क्यों न हम सब मिलकर आगे बढ़ें और अपने राज्य को गले लगाते हुये दूसरी भाषा से भी उतना ही प्यार करें। पर अपनी हिन्दी भाषा का बहिष्कार करके नहीं। अपितु बड़े गर्व के साथ कहें कि हां हम हिन्दी भाषी हैं। और अपनी भाषा कहीं भी हम बोलने को स्वतन्त्र हैं।
जो राज्य भाषा हमारी मातृ भाषा भी हो तो हम अपनी मां को अपमानित कैसे कर सकते हैं? उनके साथ नाइंसाफ़ी को हम कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? जैसे हमारी मां कभी हमें नहीं सिखाती कि फ़लां आदमी बुरा है तो उसका साथ छोड़ दें------बल्कि यह कहती हैं कि अगर तुम उसकी सच्ची दोस्त हो तो उसकी बुराइयों को मत देखो । उसे दूर करने की कोशिश करो। उसकी अच्छाइयों को दिल से अपनाओ।
वैसे ही हमारा भी मानना है कि हर भाषा का अपना मान सम्मान है। सभी अपनी अपनी जगह पर ठीक हैं। पर जैसे हमें वक्त पर अंगरेजी बोलना है तो हम बोलेंगे । यदि उसके बिना काम नहीं चलता है (जैसे कि आज का समय चाहता है)।पर बाकी वक्त हमें अपनी ही भाषा का प्रयोग करना चाहिये जो कि उचित है और अपनी मांग भी।
अतः हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हमारी भाषा पहले हिन्दी है फ़िर अंग्रेजी या और। यूं ही अपनी भाषा को विदेशी नहीं बना सकते।
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पूनम
33 टिप्पणियां:
अच्छा सार्थक संदेश दिया है. भाषा का सम्मान और उचित स्थान देना ही होगा.
bahut sunder sahee aur spasht lekh .mai spashtvadita se prabhavit huee .har bhasha apaneee jagah shresht hai.kai bhashao kee jananee sanskrut hai.
south me Tamil telugu kannada aur maliyalee charo hee khoob bolee jatee hai north me to kisee bhee language ko madrasee samajh liya jata hai .
hum log salo se Bangalore me hai dheere dheere hindi baccho ke jeevan se fisalane lagee padana likhana band ho gaya vapas mai unhe louta layee hoo mere blog ka maksad bhee ye hee tha.mamma likhe aur betiya na padhe aisa to ho hee nahee sakata .hum to Hindi hee pad likh kar bade hue par aaj kee paristhitee aur hai....
sahity doosree bhashao ka bhee dhanvan hai.
hindi me anuvadit kary se pata chal hee jata hai.
E mail I D dena Poonam fir chat kar sakte hai .
jaisa aap chah rahee thee .
maine bhee aaj ek post dalee hai.pichale bhee aapse chootee hai.:).........
हमारे हिंदी फिल्म से जुड़े लोग जो हिंदी का ही खाते हैं , हिंदी बोलने से कतराते हैं ।
हिंदी चैनलों का सारा काम अंग्रेजी में होता है ।
आपकी चिंता जायज़ है .... अच्छा लेख है आपका ... हम सबको इस विषय में सोचना चाहिए ...
इतनी जल्दी यह साथ नही छूटने वाला । उम्मेद बनाये रखिये ।
bilkul sahi tathya .... per jab jage hain to disha milegi hi
"पूनम जी बच्चों को यह अनिवार्य कर देना चाहिये कि घर पर वे केवल अपनी मातृभाषा में ही बात करें न कि किसी अन्य भाषा में दूसरे यह कि हिन्दी भाषा को दूसरी भाषाओं से भी शब्दों अपनाना चाहिये ताकि वो भी समृद्ध हो सके....... सार्थक लेख आपका..."
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
Aapka chinta vajib hai, aaj jis tarah se hindi ke swaroop ko bigadkar parosa ja raha wah chintniya hai... aur iske saath hi hindi jis tarah se bigadkar boli jaa rahi hai wah bhi kam kashtprad nahi hai..... iske liye hum sabhi ko nirantar prayas karni ko jarurat hai..
बहुत ही सार्थक उम्दा विचार संदेश.... विचारणीय पोस्ट...आभार...
अंग्रजी धंधे की भाषा है (इसमें बुरा भी कुछ नहीं है) हिन्दी अपनी जगह है.
बहुत ही अच्छी पोस्ट लिखी है आपने.
हमें हिंदी और हिंदी के साथ-साथ अपनी देशज भाषा का भी खुलकर प्रयोग करना चाहिए. अंग्रेजी का ज्ञान हो मगर अपनी भाषा की शर्मिंदगी की शर्त पर नहीं.
...बधाई.
nice
बहुत अच्छी और सार्थक पोस्ट.... बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
बहुत अच्छे विचार हैं आप के मगर अंग्रेजी से मोह छूटना इतना आसान नहीं है पूनम जी ..बस आज तो सब का अपनी भाषा से जुड़ाव बना रहे यह बहुत ज़रूरी है.
बहुत ही अच्छे विचार के साथ आपने बिल्कुल सही बात और सार्थक सन्देश दिया है! इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई!
बहुत सुन्दर सार्थक आलेख है। शुभकामनायें
आपकी बात से पूर्ण सहमति है |आपने यथार्थ लिखा है कि अगर आवश्यक है तो हम अंग्रेजी भी बोलेंगे और सही भी है पोटी और बाथरूम की हिन्दी बोलने में थोड़ी दिक्कत तो होती है दूसरी बात यह कि रुमाल को रुमाल कहने से काम चलता है तो मुख मार्जन वस्त्र खंड नहीं कहना ही ठीक है |जो भाषा प्रचलन में है उसे बोलना सुविधा जनक होता है आखिर सामने वाले का भी ध्यान रखना पढता है कि वह समझता भी है या नहीं |""मेरे द्विचक्र बाहन के प्रष्ट चक्र से पवन प्रसारित हो गया है को अंगरेजी मिश्रित सुबोध भाषा में कहना ही मुनासिब है | अपनी माँ की जरूर सेवा करना चाहिए किन्तु दूसरे की माँ को भी इज्जत तो देना चाहिए एक दम ठुकराना ठीक नहीं होता
Bahut Sarthak Alekh hai Punamji....Dhanywad!
Mahila Divas Ki Shubhkaamnaae!!
पूनम जी
भारत मुस्लिम लुटेरों का लंबे समय तक गुलाम रहा और इस काल में हमारी भाषा विकृत कर डी गयी. हम अँग्रेज़ी का विरोध करते हैं जिसकी हमें आवश्यकता होती है. किंतु उर्दू का विरोध नहीं करते जिसने हमारी भाषा और संस्कृति को विकृत किया है. आज हमें अपनी भाषा का शुद्धीकरण करना चाहिए, शुद्ध बोलकर और लिखकर.
बहुत सुंदर धन्यवाद
बहुत सार्थक लेख....हिंदी के उत्थान में ऐसे विचार और कृत्य निश्चय ही सराहनीय हैं....
vakai ham hindi se dur ho rahe hai
आपकी टिप्पणी के लिए आपका आभार....आपने एक सामान्य हो चुका गंभीर मुद्दा उठाया हैं...जिस पर पर्याप्त बहस हो चुकी हैं......पर बेतानिजा बहस...जिसका कोई सर पैर नहीं.....जब हम खुद में बदलाव नहीं ला सकते तो देश को ऐसा करने के कहना तो दूर कि बात सोच भी नही सकते....जब तक हिंदी के लिए हमारे दिल में सम्मान और अपनेपन कि भावना नही पैदा हो जाती...तब तक कुछ भी कहना बैमानी होगा....डिम्पल
अच्छा लेख है आपका ... हम सबको इस विषय में सोचना चाहिए !विचारणीय पोस्ट...आभार...
mahatapoorn aalekh ,aap ke vichaar uchit hai ,mahila divas ki badhai .
आपने बहुत साल पहले कही मेरी बात मुझे याद दिला दी. भाषा माँ की तरह है और किसी की माँ का अपमान कर हम अपनी माँ की शान नहीं बढा सकते. मैं तो अंगरेज़ी भाषा का एहसानमंद हूँ कि इस भाषा के प्राध्यापकों ने भारतीय साहित्य को ऊँचाइयाँ दी है. डा. हरिवंश राय बच्चन, रघुपति सहाय फिराक़ और कृष्ण्देव प्रसाद गौड बेढब. फिल्म चुपके चुपके का एक सम्वाद उद्धृत करना चाहुंगा कि भाषा अपने आप में इतनी महान होती है कि कोई उसका अपमान कर ही नहीं सकता.
पूनम जी आपके विचारों से शत प्रतिशत सहमत हूँ मैं.
saarthak lekh bhasha ka samman jaruri hai...par bachchon ko angrezi padhana bharteey mata pita ki majboori..durbhagyvash.
bhasha seedhe taur par economics se judi hai poonam ji... abhi jo media me hindi ka badhta prabhav dekh rahe hain wo apni arth vyavastha ke kaarna hai... desh ko samarth banaye.. apni bhasha swayam hi sthan paa legi... desh hi nahi videshon me bhi
बहुत सुन्दर लिखा...हम तो हिंदी वाले हैं.
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"पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".
पूनम जी,
सत्य है, लोग अच्छी हिंदी बोलने से अच्छा टूटी-फूटी अंग्रेजी बोलना समझते हैं! एक किस्सा सुनिए-कुछ वर्ष पूर्व मेरे एक रिश्तेदार ट्रेनिंग के लिए जापान गए थे,वे एक दिन बस से ऑफिस से लौटते वक़्त अपने एक भारतीय सहकर्मी से अंग्रेजी में बातें कर रहे थे, उनके साथ वाली सीट पे एक
बुज़ुर्ग जापानी महिला बैठी थीं, उन्होंने उन लोगों से अंग्रेजी में पूछा,"क्या आप लोगों कि मात्र-भाषा इंग्लिश है?यदि नहीं तो आप दोनो अपनी
मात्रभाषा में क्यों नहीं बात कर रहे??"
पूनम जी, इस वाकये में छुपे सन्देश को देखिये, वो विदेशी बुज़ुर्ग महिला भी चाहती थीं कि वे दोनों अपनी मात्रभाषा का उपयोग करें!
उन्नति, प्रगति, तरक्की आदि के लिए विदेशी भाषा का ज्ञान आवश्यक है परन्तु अपने देश में तो कदाचित नहीं!
हमे सब भाषाऎ सिखनी चाहिये....
लेकिन एक गुलाम की तरह से नही, ओर हम अभी तक दिमागी तॊर पर गुलाम है, कोई माने या ना माने, क्योकि हम दुसरे के बाप को अपना बाप बनाने पर तुले है
चिंता न करें, यदि हम हिन्दी का उपयोग करते हैं तो आने वाली पीढ़ी भी निश्चित रूप से आपसी बातचीत के लिए हिन्दी का ही उपयोग करेगी।
मधुरा मनोहरा पुनीता है हिन्दी
शैशव की गीता संगीता है हिन्दी
हिन्दी है माटी की प्राकट्य प्रतिबिम्ब
देव भूमि संस्कृति की परिणीता है हिन्दी
सुनती है भारत वसुंधरा की धड़कन
सुख दुःख की अंतःकरण की है भाषा
आशा है राष्ट्र- उत्थान के कंटक पथ की
सजग सत्य पथ की अभिलाषा है हिन्दी
हिन्दी जो माता - सहोदर- सहपाठी है
सहचरी है पगपग पर प्रेरक हमारी
हमारी मुंह बोली सहेली अलबेली
अपने ही घर में परित्यक्ता - अकेली है
अंग्रेजी हरजाई के मद में सब डूबे है
हिंगलिश की घुटनों में सिसकती है हिन्दी
....... अरुण
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