भोर की सुगबुगाहट
होती है शुरू
हल्के से उजाले के साथ
चिड़ियों की चूं चूं
कुछ अलसायी कुछ अधखुली आंखें
बाथरूम में तेज पानी की धार
हर हर की आवाज।
कहीं पर सूर्य देव को अर्ध्य
हरी ओम का जाप
घण्टे की आवाज
नमाज की अजान।
कहीं किचन में खटपट खटपट
कहीं तेजी से चलते हाथ
बच्चों को स्कूल भेजने की तैयारी
बिस्तर पर आराम फ़र्माते साहब
गरम चाय की चुस्की
अखबार की हेडलाइन।
अधूरी नींद में
बिना मुंह धोये
गोदी में बच्चे उठाये
तेज तेज कदमों से काम पर
पहुंचने की कोशिश करती
कुछ स्मार्ट कुछ भदभद
औरतें
पीठ पर बोरे लादे
सड़क नापने की
कोशिश करते बच्चे।
सभी की भोर
अलग अलग भोर
हां यही तो है
भोर की सुगबुगाहट।
0000
पूनम
58 टिप्पणियां:
"आपने भोर को एक रिदम दे दी............."
वाह! उम्दा प्रस्तुति!
बहुत सुन्दर
बेहतरीन
अच्छी लगी ये भोर कि सुगबुगाहट....बढ़िया प्रस्तुति
वाह...भोर का सजीव चित्रण
वाह जी, बहुत उम्दा प्रस्तुति रही
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
sunder rachana badhaai aur shubhakamanayen
कविता पर कुछ कमेन्ट लिखूं इससे पूर्व एक शेर याद आरहा है ""यह कभी नहीं हुआ कि मैं खुद कभी सो कर उठूं /घर के हंगामे ही हर रोज़ जगाते हैं मुझे "" आपने प्रभात ,उष:काल ,ब्रह्म मुहूर्त का जो चित्र खींचा है वह सचित्र वर्णन है .चिड़ियों की , पानी की , आवाज , आराधना के स्वर का बर्णन साथ ही जल्दी जल्दी काम का निवटाना और बिस्तर पर आराम करते और चाय का इंतज़ार करते कुछ जागे से कुछ सोये से साहब और बाद में काम पर जाती औरतों का वर्णन कुल मिला कर बहुत सुन्दर रचना है |शीर्षक भी अच्छा लगा भोर की सुगबुगाहट (यदि यह रचना मेरी होती तो मैं शीर्षक देता "अपना अपना भोर ")
bahoot khoob likha hi aap ne
बहुत सुन्दर,
अच्छी लगी ये भोर कि सुगबुगाहट....
बढ़िया प्रस्तुति
kunwar ji,
बहुत अच्छी है -
भोर की सुगबुगाहट!
bhor ka rupahla drishya .... chitratmak prastutikaran
वाह बड़े ही सुन्दरता से आपने भोर की सुगबुगाहट को प्रस्तुत किया है! हर एक शब्द हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है ! बहुत बढ़िया लगा!
BHOR kaa sundar chitran
भोर की सुगबुगाहट मधुर है ।
सभी की भोर
अलग अलग भोर
हां यही तो है
भोर की सुगबुगाहट।
Bhor ka sundar chitramak prastutikaran.......
Shubhkamnayne.
Kichen, bathroom, chai, akhbaar, bacche, shor, school, bhaari bag! Aur aapne kavita likh di!
Manna padega... Pata hai kyun? Isliye,ek to sajeev chitran karne mein safal rahee hai rachna aur dooja, ye ki subah ki khoobsoorti ko nahin balki usse judi rozmarrah ki kaarguzaariyon ko aapne kavita ki shaql dee!
Vadhiya! Changa!
bahut khub likha aapne......subah dhuli dhuli.
औरतें
पीठ पर बोरे लादे
सड़क नापने की
कोशिश करते बच्चे।
सभी की भोर
अलग अलग भोर
हां यही तो है
भोर की सुगबुगाहट।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
bhor si ujli rachna!
बहुत सुंदर कविता
इनमें से कुछ बातों को छोड़कर लगभग सभी हमें भी दिखाई देती हैं.
sunder chitran........adbhut prastuti........
पूनम जी ,भोर की इस सुगबुगाहट को पढ अच्छा लगा ।
बहुत सुन्दर अच्छी लगी ये भोर कि सुगबुगाहट....बढ़िया प्रस्तुति
bina namaj ki kabita puri ho sakti hai.
aap bahut acchha likhati hai.
bina namaj ki kabita puri ho sakti hai.
aap bahut acchha likhati hai.
poonam ..aapki bhasha v kavita ki lay baha le jati hai ...bhor ka chitran lajwab hai ......
सभी की भोर अलग अलग भोर ..wah
सुन्दर रचना।
Kitni vivdh tarange leke bhor kee shuruaat hoti hai..saare nazare aankhon ke aage se ghoom gaye!
nice
...अदभुत,बहुत सुन्दर,बेहद प्रसंशनीय रचना... बहुत बहुत बधाई!!!
bahut man ko bhayi ye bhor ki sugbugahat. badhayi.
bahut hi rochak aur romanchak drishya uttmpan kiya hai aapne... sunder rachna... pehli baar jharokha par aaya aur man mohit ho gaya !
sampoorn rachna sarahneey. dil se badhai!!
अतिउत्तम रचना .......
भावनाएं काव्य के माध्यम से
किस तरह प्रकट होती हैं यह
कहने कि बात नहीं है. आजकल
खड़ी बोली में ही ज्यादातर काव्य का
प्रचलन है. मगर काबिले तारीफ है
शब्दों का चयन और पंक्तिबद्धता
बहुत सुन्दर "भोर" का वर्णन
बधाई!
हल्के से उजाले,चिड़ियों की चूं चूं,बाथरूम में तेज पानी की धार,सूर्य देव को अर्ध्य ,घण्टे..अजान...किचन में खटपट..तेजी से चलते हाथ ...अखबार की हेडलाइन...अधूरी नींद ... बिना मुंह धोये गोदी में बच्चे उठाये तेज तेज कदमों से काम पर पहुंचने की कोशिश करती औरतें...पीठ पर बोरे लादे सड़क नापने की कोशिश करते बच्चे।
सभी की भोर अलग अलग भोर ...
बहुत सुन्दर!!
जिन्दगी के विविध चित्रों का बेहद विश्वसनीय कोलाज...
आपके हाथ में कलम न होती तो तूलिका होती....
बधाई
bahut achchi aur sahi bhor ki tasvir khinchi hai aapne
बहुत अच्छा लिखा है आपने
बहुत अच्छा लिखा है आपने
itnee jeevant prastuti.......samne aa gayee subah ki bela......dikh gaya........har pal albela...:)
Kitna jeevant drishya! Bahut khub.shubkamnayen.
बिलकुल सही कहा आपने..सबसे आराम पतिदेवो को ही हॆ..आराम से चाय की चुस्की लेते हुये...अखबार की हेडलाइन पढते हुये..
bahut marmik varnan...........
कितनी जीवंत भोर है । बहुत सुंदर ।
wah...
sbki bhor me aapki bhor kuchh is trha chspa hui ki vo bhor apni bhor lgne lgi ye kvita ykinn aapki sadgi ko samne lati hai bhut bhut bdhai
shukria,
bhor ki su...aahat acchi lagi.
बहुत अच्छी कविता पढ़ने से छूटी जा रही थी..
सभी की भोर
अलग अलग भोर
हां यही तो है
भोर की सुगबुगाहट
-वाह!
कहते हैं शाम-ए- अवध ,और सुबहे बनारस .वो एक सपने का सच है .
आपकी ' सुबह ' इन्सान और इंसानियत का .
एक आम आदमी की सुबह का सजीव चित्रण , एक सराहनीय प्रयास है
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें .
नई पुरानी हलचल से चल कर यहाँ आया
सुन्दर 'भोर की सुगबुगाहट'में मन को
मग्न पाया.
झरोखा मेरे ब्लॉग पर भी आये
इसी का इंतजार है ,पूनम जी.
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
बेहतरीन।
सादर
सुन्दर
सुन्दर सुगबुगाहट...
सादर...
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