बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

लेख --- जिम्मेदार कौन--?

बचपन में देखा करती थी और देख देख के खुश भी होती थी कैसे चिड़ा चिड़िया का जोड़ा अपने घरौंदे को बनाने में मशगूल रहता था।दोनों ही खुशी खुशी ,बारी-बारी से एक एक तिनका तोड़ कर लाते और अपने घरौंदे को सजाते। अपने बच्चों को सुरक्षित रखने की पूरी कोशिश करते कि कहीं कोई शिकारी आ कर उनके घरौंदे व बच्चों को नुक्सान न पहुँचा दे।दोनों जोड़े जी तोड़ कोशिश करते,मीलों दूर तक जाते सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बच्चों का पेट भरने की चिन्ता में,और फ़िर चोंच मे दाना दबाये व्याकुल से भागे आते अपने बच्चों को प्यार से निवाला खिलाने के लिये। और फ़िर अपनी छोटी सी दुनिया में बच्चों को छोटी छोटी बातें ज़िन्दगी की समझाते ताकि उनका भी जीवन सुखमय हो और वे भी आपस में प्रेम से रहें ।
आज अकस्मात ही बचपन की वो बात अर्थात उन चिड़ा चिड़ी की याद आ गयी।जब आज के समाज में हर माँ बाप को दिन रात अपने बच्चों की चिन्ता सताती रहती है शायद उनके जन्म के साथ ही।
सम्भवतः सभी माँ बाप अपने बच्चे के सुन्दर भविष्य की कल्पना लिये हुए अपनी यथाशक्ति से ज्यादा उन्हें वो सब कुछ देने की कोशिश करते हैं जो उनके बच्चों को चाहिये,शायद उन्हीं चिड़ा चिड़ी की तरह ।
बचपन से ही उनको अच्छे संस्कारों मे ढालकर एक आदर्श इन्सान बनाने की कोशिश में उन्हें छोटी छोटी बातों से समझाने की शुरुआत करते हैं। जहाँ तक मेरा मानना है कि अगर कोई गलत करता है तो हम अपने बच्चों को यही शिक्षा देते हैं कि तुम गलत मत करो।गलती करने वाले को खुद ही भूल का एह्सास एक दिन हो जायेगा।
जब बच्चा स्कूल जाने लगता है तो सारे मैनर्स घोल कर उसे पिलाने की कोशिश करते हैं, जो हमें हमारे माता पिता से मिले थे-ईमानदार बनो, झूठ मत बोलो(कहते है न…honesty is the best policy…)।पर धीरे धीरे वक्त बदलता जाता है।बच्चे भी घर के दिये संस्कार तथा बाहर समय व माहौल को देखकर उलझे से रहते हैं क्योंकि तब उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान तो थोड़ा थोड़ा होने लगता है।
फ़िर वो अपने संस्कारों के विपरीत कहीं कुछ अपने या किसी के साथ भी गलत होता देखते हैं तो फिर तनाव में आने लगते हैं।क्योंकि उनका मन उन्हें गलत का साथ देने की इजाजत नहीं देता। पर जब बाहर का माहौल मिलता है और चार अलग अलग लोगों की संगत मे बच्चा पड़ ज़ाता है तो थोड़ी देर के लिये ही सही उस पर बाहर का माहौल हाबी होने लगता है।इसका मतलब ये नहीं कि वो आपके दिए गये संस्कारों को भूल गया हो।लेकिन यही वो उम्र है कि जब बच्चे को लगता है कि क्यों हमको
इतना आदर्शवादी बनाया गया? क्यों हम दूसरों की गलत बातों को चुपचाप सहन
करें फिर या तो वो खुद में कसमसाते रहते हैं।या फिर बारी आती है आपसे
सवाल जवाब की------कि आपने हमें इतना सिद्धान्तवादी क्यों बनाया?आज का समय तो वो है कि कोई एक थप्पड़ मारे तो उसे दस थप्पड़ लगायें। कोई कुछ भी कह कर निकल जाये तो आप हमें यह समझाते रहें कि उसे अपनी गलती का अहसास जरूर होगा।कोई आकर गलत इल्जाम लगाये आप विनम्रता की मूर्ति बन कर खडी रहें
और कहें कि जाने दो बात को ना बढ़ाओ बावजूद इसके कि आप सच हों------
तभी एक झटका सा लगता है और याद आती है चिड़िया के उस जोड़े की जिन्हें हरदम अपने बच्चों की चिन्ता सताये रहती थी। कि कैसे जल्दी से उनके बच्चे बड़े हो जायें ताकि शिकारी के रुप मे आये किसी से भी अपनी रक्षा खुद ही कर सकें और किसी के बहकावे मे न आयें।
आज वही हश्र हमारे बच्चों का हो रहा है (जो कल का भविष्य बनेंगे) क्योंकि वो जब बेहद तनावग्रस्त हो जाते हैं। तब बाज रूपी शिकारी उनके दिलो-दिमाग पर हावी हो जाता है और बच्चे थोड़ी देर के लिये ही सही अपना आपा खो देते हैं। और गलत सही का फ़ैसला नही कर पाते।फ़िर माँ-बाप को ही लगने लगता है कि शायद उनकी परवरिश में ही कोई कमी रह गयी हो और वो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं –वास्तव में कौन जिम्मेदार है इन सब का?
हम ,हमारे संस्कार,हमारे बच्चे या हमारा आज का समाज --------ज़रा आप भी इसपर सोचिये।
000000
पूनम



19 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aaj ka mahaul

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आज जैसा स्वाभाव बच्चों मे पाया जाता है उस का मूल कारण हमारी अर्थप्रधान व्यवस्था है जो इन्हें निरन्तर आगे रहने की होड़ मे उग्र बना रही है।

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम मै से बहुत से मां बाप बच्चो को बहुत ज्यादा लाड प्यार दे देते है, जेसे ज्यादा चीनी, या ज्यादा नमक शरीर के लिये उचित नही वेसे ही बच्चो क प्यार ओर डांट भी जरुरी है, मेने अकसर देखा है कि चिडियां ओर चिडा भी अपने बच्चे को जब थोडा बडा हो जाये(बच्चा) तो उसे उडना सीखाते है.... लेकिन इंसान बस यही गलती कर बेठता है, वो खास कर मां बच्चे को बच्चा ही बनाये रखती है... अरे उसे खुद भी अपनी जिन्दगी के फ़ेंसले तो करने दो... वो क्या चाहत है, कोन सा स्बजेकट पढना चाहाता है, क्या बनाना चाहता है उस के सपने क्या है... कोई नही पूछता... तो फ़िर बच्चा बिद्रोही बन जाता है... अगर शुरु से ही बच्चे को दोस्त के रुप मै ले प्यारभी करे ओर गलती पर चपत भी लगाये... ओर उस की सलाह भी मांगे....
आप ने बहुत सुंदर ढंग से सारी बात समझाई है, बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद

मनोज कुमार ने कहा…

विचारोत्तेजक बात। संवेदनशील पहलुओं को दिखाता है।

Alpana Verma ने कहा…

यह सच में एक gambhir vishya है..
हम abhibhavakon ने wastav में bachchon पर apekshaon la pahaad laad दिया है...
जो सही नहीं है लेकिन आज के samaaj के badalte swaruup के anusaar unhen बेस्ट banane की hod में ही abhibhavak ऐसा vyavhaar कर रहे हैं.
.....आप की चिंता भी सही है..

Udan Tashtari ने कहा…

विचारणीय तथ्य है..

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

khoobsurati se ek samasya ko uthaya hai....aaj har koi aage nikalne ko hod men bhaag raha hai...bachchon ko dosh dete hain par swayam ke muly bhi patan ki taraf ja rahe hain...ek saargarbhit lekh....badhai

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये एक बेहद गंभीर समस्या है आज के मशीनी युग में ........... आपने बहुत ही संवेदनशील मुद्दे पर बहस छेडी है .......... मुझे लगता है पैसा, दिखावा, तेजी की रफ्तार ........... और भी ऐसी ही बहुत सी बाते जिम्मेवार हैं इन सब के लिए .........

ओम आर्य ने कहा…

सम्वेदनाओ को झकझोरती हुई और जगाती हुई रचना .......

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

चिड़ा-चिड़िया के माध्यम से बहुत गम्भीर विषय
आपने रख दिया है।

निर्मला कपिला ने कहा…

दिगम्बर नास्वा जी की बात से सहमत हूँ। बहुत अच्छा विश्य है ब्च्चों को संतुलनातमक व्यवहार से ही सही राह दिखाई जा सकती है बहुत अधिक सखती और बहुत अधिक नर्मी भी सही नहीं बाकी बाज़ार्वाद का प्रभाव है जो बच्चों के विनाश का कारन बन रहा है। अच्छा विश्य धन्यवाद्

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

पूनम जी ,

हमारा फ़र्ज़ है हम बच्चों को उचित तालीम दें पर बच्चा जब विद्रोही बन जाये तो दर्द होता है ...बस एक बात का ध्यान रखें उन पर हक जताने की कोशिश न करें ....न ही अपने फैंसले उन पर थोंपे ....!!

Urmi ने कहा…

आपने बहुत ही सुंदर रूप से सही मुद्दे को लेकर प्रस्तुत किया है जो गंभीर समस्या है और सोचने पर मजबूर कर देती है ! माँ पिताजी हमेशा कोशिश करते हैं की बच्चों को ऊँची शिक्षा मिले पर कुछ बच्चे बिगड़ जाते - बुरी संगती के कारण या दोस्तों के कारण और इस बात का असर माँ पिताजी पर पड़ता है जो समझते हैं की वो असफल रहे अपने बच्चों को पालने में ! बच्चों को अपना भविष्य ज़रूर चुनने देने का हक़ होना चाहिए पर वो कभी ग़लत राह पर न चले इस बात पर ध्यान देना चाहिए !

Apanatva ने कहा…

bachche hote hai man ke sacche .aur samay ke sath dalane kee shaktee uname apar hotee hai.aaj ka vatavaran unhe pakka bhee kar deta hai . pakke banenge to tanav bhee door hee bhagega .

Apanatva ने कहा…

bachche hote hai man ke sacche .aur samay ke sath dalane kee shaktee uname apar hotee hai.aaj ka vatavaran unhe pakka bhee kar deta hai . pakke banenge to tanav bhee door hee bhagega .

बेनामी ने कहा…

Samay ke anusar sab thik hota hai .Good work.

KAVITA ने कहा…

चिड़ा चिड़िया दोनों ही खुशी खुशी ,बारी-बारी से एक एक तिनका तोड़ कर लाते और अपने घरौंदे को सजाते। उनके घरौंदे व बच्चों को नुक्सान न पहुँचा दे दोनों जोड़े जी तोड़ कोशिश करते,मीलों दूर तक जाते सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बच्चों का पेट भरने की चिन्ता में,और फ़िर चोंच मे दाना दबाये व्याकुल से भागे आते अपने बच्चों को प्यार से निवाला खिलाने के लिये।
Aapne to mujhe mere ghar mein money plant par 2 saal se lagatar gharonda banate or usmein ke bachho ki yaad dila di. Maine bhi un par likha hai or photo bhi le rakhi hai samay par published karongi.
Bahut achhi lagi aapki bhawana.
Suubhkamna.

शरद कोकास ने कहा…

मुझे अपनी एक पुरानी कविता "रिटायरमेंट के बाद बना मकान" की यह पंक्तियाँ याद आ गईं ...
बूढॆ पिता नहीं जानते थे
बच्चे दीवार और छत की तरह
एक जगह टिके नहीं रहते
बच्चे पंछियों की तरह बढ़ते हैं
पर फैलाते हैं
एक दिन उड़ जाते हैं
दाने-पानी की खोज में
--शरद कोकास

रानी पात्रिक ने कहा…

माता पिता निडर एवं संयमी हों जो आज की मारा मारी में ना फंसे, संवेदनशील हों-जो रिश्ते के तारतम्य को हर पल बनाये रख सकें तो बच्चों पर भी उसका असर आता है। फिर गलतियाँ करना तो मानव स्वभाव है उसी से व्यक्ति सीखता है। पर गलती करने वाले के सिर पर भी प्रेम का हाथ उठना चाहिए ताकि वह स्वयं को भूला बिसरा ना महसूस करे। चिड़िया के बच्चे भी उड़ना सीखते समय गिरते हैं और चिड़िया कुछ नहीं करती बस आस पास बनी रहती है। बच्चे का उत्साह बढ़ाती है और बच्चा उड़ना सीख जाता है।