जी हां,आज मुझे एक रोमांचक मैच देखने को मिला। जिसे पढ़कर शायद आप भी हंसते हंसते लोट पोट हो जायेंगे। अब आप ये सोचेंगे कि जब मैच रोमांचक है तो फ़िर इसमें हंसने वाली बात कौन सी है?तो मैं आपको बताती हूं कि जो घटना मेरे साथ हुयी वह शायद किसी के साथ भी हो सकती है। ऐसा मैं भी महसूस कर रही हूं।
क्रिकेट मैच होने वाला था।पर अभी स्थान तय नहीं हो पाया था। एक दिन अचानक ही बैठे बैठे मेरी बेटी बोली-----मां मेढक।बस इतना सुनने के बाद मैं भी बैठे बैठे उछल पड़ी। अरे इतनी जल्दी मैच के स्थान का चुनाव कैसे हो गया। पर जब विपक्षी अचानक ही मैच फ़िक्सिंग करके मैदान में सामने आ गया हो तो फ़िर भला मैं कैसे पीछे रहती । अब जवाब तो देना ही था।
मैच शुरू हो गया। अम्पायर बेटी ने सीटी बजायी। और मैं हाथ में झाड़ू ले कर सामने आ गयी। पर ये क्या सामने वाला तो मुझसे भी तेज निकला। और वह और तेजी के साथ फ़टाफ़ट दौड़ा। मैं उसको आउट करने की कोशिश में झाड़ू लिये ----अरे अरे ये तो अंदर ही आ गया। झाड़ू इधर से उधर हिलाती रही। पर जनाब--- विपक्षी दल बहुत ही मजबूत था। जाने किस खतरनाक क्रिकेटर को फ़ील्ड में उतार दिया था।
पर मैं भी कहां हार मानने वाली थी। वो आगे कभी तो कभी मैं आगे---कभी वो बाल की तरह चौका मारकर और आगे बढ जाता जब तक मेरा झाड़ू रूपी बैट इधर उधर नाचता ही रह जाता।लगता था अब ये जीत कर ही रहेगा। मेरा भी दम फ़ूलने लगा। पर कहते हैं न कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। यही विचार कर पुनः दुगने जोश के साथ मैदाने जंग में पुनः हाजिर हो गयी।
फ़िर मैने चारों तरफ़ नज़र घुमाई कि बाल् को किस तरह से किक किया जा सकता है कि सीधे कैच आउट हो जाय। मैने अम्पायर बनी बेटी को इशारा किया –बाल्टी लाओ!,वह भी फ़ाउल गेम कि तरह बाल्टी लेकर हाज़िर हो गयी।मैने जिधर जिधर से जनाबे आली का बाहर निकलने का रास्ता था उधर उधर से उनको झाडू रुपी बैट से धीरे –धीरे भगाना शुरु किया।
कभी मेंढक जी बाल्टी के बिल्कुल पास आ जाते पर जैसे ही अम्पायर चिल्लाती वैसे ही जम्प लगाकर बैरंग लिफ़ाफ़े की तरह वापस हो जाते।मैं भी अरे-इधर गया लो उधर फ़िर चला गया,हटो वहां से ,जल्दी से दरवज़ा बन्द करो चिल्लाती हुई पूरी तरह प्रयास रत रही। और मेरे बच्चे दर्शक बन कर हंसते- हंसते बेदम हो रहे थे।आज़ मम्मी और एक मेंढक में जम कर जंग हो रही थी । उनकी खुद की सिट्टी-पिट्टी गुम थी पर इस रोमांचक मैच ने उनका हौसला बढा दिया था।
मेरा भी उत्साह बढा अब मेंढक महोदय को घर से बाहर निकालना जरुरी हो गया थ।आखिर मेरी भी इज्जत का सवाल जो था बच्चों के सामने। अपनी इमेज बरकरार रखनी थी।मैंने बाल्टी को उठा कर सीधे बाउन्ड्री वाल यानी अपने घर के इन्ट्रेंस पर रख दिया।।और फ़िर मेंढक महाशय को जो भगाना शुरु किया कि वो भी बेचारे उछ्ल –उछ्ल कर शायद पस्त हो चले थे।उसके उछ्लने की गति धीमी पड गयी थी। उसमें फ़ुदकने की हिम्मत अब नहीं थी। वो भी उलटते पलटते नजर आने लगे। बच्चे चिल्लाये मम्मी जोर से-----अब इस तरफ़ से। मैनें भी उधर दृष्टिपात किया और एक जोर का सिक्सर मारा। बच्चों के मुंह से निकला---मम्मी,मेढक बाल्टी के अंदर आ गया। और मैं भी एक लम्बी सांस लेने को रुक गयी। आखिर लंच ब्रेक के बाद से बराबर मैच हो रहा था। अब तो उसका द एण्ड होना ही चाहिये।
बच्चे बाल्टी को हाथ लगाने से अभी भी कतरा रहे थे। क्योंकि जनाबे आली मेढक अभी भी उड़ान भरने की कोशिश कर रहे थे।कि शायद सीमा रेखा पार कर मैच जीत जायें। पर अब तो मैच का खात्मा लगभग हो ही चला था।पर असली रोमांच भरा दृश्य अभी बाकी था। मेढक को बाहर ले कैसे जाया जाय? वो तो अपना रंग बार बार दिखा रहे थे।
पर फ़िर मैंने लम्बी सांस लेने के बाद झाड़ू हाथ में लिया और बाल्टी को डरते डरते झाड़ू से ही बाहर करने लगी।बच्चे बोले मम्मी देख के---वो उछल कर बाहर आ जायेगा।पर मैंने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थीं। ड़रते-डरते भी मैं अन्ततः उसको घर से बाहर मैदान में ले जाकर फ़ेंकने में कामयाब हो गयी। और बच्चे ताली बजाकर हंसते हंसते पेट को हाथ से दबाये बोले---मम्मी दि ग्रेट---।
तो था न ये रोमांचक मैच जो रोमांच के साथ भरपूर मनोरंजन भी कर गया। आपको कैसा लगा ये तो जरूर बताइयेगा---पर सच मानिये ये मैच फ़िक्सिंग नहीं था।एक हक़ीकत ये भी है कि आपका भी इनसे सामना यदा कदा जरुर पड़ता होगा।
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पूनम