मेरे मन ने कही,मेरे मन ने सुनी
मेरे दिल की बात मेरे मन मे रही।
दो अजनबी मिले
नदी के दो पाट की तरह।
जानते थे वो एक होंगे नहीं
पर फ़िर भी संग संग चलते रहे।
पर विश्वास इसी में,प्रेम इसी में
लहरें एक दूजे को छूती रहीं।
एक वक्त ऐसा भी आया जब
साथी दोनों बिछड़ गये।
पर जितने दिन भी साथ रहा
वो जीवन में इक छाप छोड़ गये।
पर जीवन तो नदी का पाट नहीं
इक रथ के दो पहिये हैं।
इक बिगड़ा तो दूजे ने सम्भाला
पर साथ ना कभी छोड़ा अपना।
जीवन की यही तो रीति बनी
जिस बन्धन में बाँधा हमको।
रथ का पहिया यूँ ही चलता रहे
जीवन में बहुत है ये जीने के लिये।
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पूनम