मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

जीवन-- रथ


मेरे मन ने कही,मेरे मन ने सुनी

मेरे दिल की बात मेरे मन मे रही।

दो अजनबी मिले
नदी के दो पाट की तरह।

जानते थे वो एक होंगे नहीं

पर फ़िर भी संग संग चलते रहे।

पर विश्वास इसी में,प्रेम इसी में

लहरें एक दूजे को छूती रहीं।

एक वक्त ऐसा भी आया जब

साथी दोनों बिछड़ गये।

पर जितने दिन भी साथ रहा

वो जीवन में इक छाप छोड़ गये।

पर जीवन तो नदी का पाट नहीं
इक रथ के दो पहिये हैं।

इक बिगड़ा तो दूजे ने सम्भाला

पर साथ ना कभी छोड़ा अपना।

जीवन की यही तो रीति बनी

जिस बन्धन में बाँधा हमको।

रथ का पहिया यूँ ही चलता रहे

जीवन में बहुत है ये जीने के लिये।

000

पूनम

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

जरा ठहर जा


जब मैं बेसब्री से तुम्हारा

करता हूं इन्तजार

तब तुम आती नहीं।

जब मैं तुमको भुलाना चाहता हूं

तब तुम अकस्मात ही मेरे सामने

आकर खड़ी हो जाती हो।

यूं आकर पल में छलावे

की तरह चल देती हो

कि मेरे दिल की धड़कने

चंद लम्हों के लिये

जाती हैं ठहर।

इसलिये तुमसे करबद्ध विनती है मेरी

या तो तुम सदा के लिये

मुझे अपना लो

या फ़िर मुझे अपनी

दुनिया में जीने दो।

ताकि मैं अपने और

सपनों को तो

कम से कम

पूरा कर सकूं।

फ़िर मैं खुद ही तुम्हारे

आगोश में समाने के

तैयार हूं पर

प्लीज अभी नहीं

जरा ठहर कर आना

ऐ मौत।

000 पूनम

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

वक़्त अभी भी है


किसी का किया कहीं जाता नहीं

जो भी किया फ़ल मिलता यहीं।

अच्छा किया या किया बुरा

सबकी सजा है भुगतनी यहीं।

पिछ्ले जन्मों का तो पता नहीं

इस जनम मे जो किया भरना यहीं।

खुदा ने तो हमको सब कुछ दिया

हमने ही चुनी राह गलत कहीं।

उसने तो हमको इन्सां बनाया

पर कीमत हमने जानी नहीं।

हम इन्सां बने, हैवान बने, ज्यादा हद से गिरे

फ़ंसे जो भी दल-दल मे,उससे कोई निकलता ही नहीं।

इशारा है उसका अब भी यही

वक़्त अभी भी गुजरा नहीं

इस जीवन का कोई भरोसा नहीं

कर सकें नेकी कर लें सही।

000

पूनम

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

नन्हें सपने



गोबर से सने हाथों से

वो

फ़र्श को हैं लीपते

बड़ी तल्लीनता के साथ

नन्हें नन्हें हाथो को

वो चलाते

पर बीच बीच में

बेचैन हो उठते

पास के स्कूल से आती

बच्चों की आवाजें

घूमती हसरत भरी निगाहों से

उधर को वह देखते।

मन में नन्हें विचार पनपते

पर वह मन मसोस रह जाते

मन के सपनों मन में दबाये

फ़िर से अपने

काम में जुट जाते।

मां की आवाज पे दौड़े चले आते

मां की डांट

आंखों में आंसू है लाते

पर वो जुबान से न कुछ कह पाते

नन्हीं उंगलियों से फ़र्श को कुरेदते

मां की डांट कानों में पड़ती

पर उनके कानों में और

ही आवाजें हैं घूमती।

जो थीं बच्चों के पढ़ने की आवाजें

और फ़िर मन में

बस वो यही सोचते

क्या वह दिन कभी

उनके जीवन में आयेगा

जिससे वो अपने सपने साकार करेंगे।

0 000

पूनम