गुरुवार, 26 नवंबर 2009

वो भयानक दिन


आज वो खूनी मंजर फ़िर याद आ गया
सब की आंखों को फ़िर से वो बरसा गया।

मांएं इंतजार में बैठी बस नजरें बाट जोह रही
विधवायें सूनी मांग लिये हर कोने में सिसक रहीं।

बेबस अनाथ बच्चे जैसे अपनों को भीड़ में ढूंढ़ रहे
खो चुके जो अपनी पहचान खुद अपना परिचय पूछ रहे।

कहीं पथराई सी आंखें हैं जिनका सब कुछ लुटा हुआ
आज का खूनी दिन देखो फ़िर से उनको रुला रहा।

हम सब बेबस बन कर के कैसे हाथों को बांधे खड़े रहे
मूक दर्शक व श्रोता बन कर केवल मन में चीत्कार लिये।

भीगी पलकों से ही हमने श्रद्धांजलि अर्पित कर दी उनको
रस्म अदाई की अपनी फ़िर अगले पल ही भुला दिया।

ऐसी दिल दहलाने वाली घटना जिससे था जर्रा जर्रा कांपा
डर डर के लमहे बीते थे आगे अब जाने क्या होगा ।

खून सभी का एक ही है फ़िर क्यों करते हैं हम बटवारा
मिल करके दुआ करो रब से हादसा न हो फ़िर दोबारा।
00000000
पूनम




गुरुवार, 19 नवंबर 2009

टिक टिक घड़ी


जीवन की अविरल चलती घड़ी
कभी मुड़े ना पीछे बस आगे ही बढ़ी
कभी दुख की घड़ी तो कभी खुशियों की लड़ी
हर पल को सिलते बुनते हुये
सतरंगी सपने संजोते हुये
घावों पे मलहम लगाते हुये
सबसे हाथ मिलाते हुये
हर तरह से साथ निभाते बढ़ी
जीवन की अविरल चलती घड़ी।

कानों में ज्यों टिक टिक इसकी पड़ी
धड़कने भी सुइयों सी दौड़ पड़ी
जीवन में भागम भाग बढ़ी
ज्यों ज्यों इतनी आबादी बढ़ी
कर्तव्य बोध की मांग बढ़ी
आनन फ़ानन में फ़िर तो
पैसों की भी आन पड़ी
मन का सुख तो छिन ही गया
जब भौतिक सुखों की मांग बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।

जन्म से जो पहली स्वांस मिली
वो कदम दर कदम पर आगे बढ़ी
बचपन की हाथ से जब छूटी लड़ी
युवा कन्धों पर फ़िर आगे बढ़ी
कर्तव्य बोध और लक्ष्य प्राप्ति
के मध्य बनी संघर्ष की घड़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।

फ़िर हार जीत की आई घड़ी
कशमकश दोनों के बीच चली
हार भी हुयी फ़िर जीत भी हुयी
दोनों को गले लगाते हुये
फ़िर मुस्काती हुयी जिन्दगी बढ़ी
जीवन की चलती अविरल घड़ी।

जन्म से लेके मृत्यु तलक
बचपन से लेके बुढ़ापे तक
हर पल हर क्षण हर वक्त ये घड़ी
दिन महीनों सालों तक
जब तक दे सकती थी साथ हमें
पकड़ी रही वो स्वांस की डोरी
अविराम निरन्तर टिक टिक करती
बस बढ़ती रही और बढ़ती रही
और फ़िर अविरल ही बढ़ती रही ।
00000
पूनम


गुरुवार, 12 नवंबर 2009

गजल-- आख़िरी सलाम


खूने जिगर से लिख रहा हूं आखिरी सलाम
इल्तजा बस जरा सी कबूल इसको कर लेना।

इन्तजार करते करते हो गई इंतहा इंतजार की
दिले खयाल तब आया नहीं नसीब में तेरा दीदार होना।

जीते जी ना सही जब हो जाऊं सुपुर्दे खाक मैं
मजार पर आके मेरी अश्क दो बहा लेना।

तेरे दो अश्क ही मेरी मुहब्बत का ईनाम होंगे
मैं न सही मेरी कब्र के ही संग दो पल बिता लेना।

तेरी नफ़रत ही बनती गयी मेरी मुहब्बत का सबब
हो सके तो जरूर इसे अपनी कड़वी यादों बसा लेना।

खत्म हुये शिकवे गिले अब अलविदा तुझे कहता हूं
जब उठेगा जनाजा मेरा बस इक नजर डाल लेना।

चलो मैं हो गया रुखसत अब तेरे इस जहां से
जाकर कहूंगा ऐ खुदा मेरी मुहब्बत को आबाद रखना।
0000
पूनम