रविवार, 29 मई 2016

जिन्दगी

जिन्दगी इक बोझ सी
लगने लगती है जब
जिन्दगी का रुख अपनी
तरफ़ नहीं होता
व्यर्थ और निरर्थक
पर तभी अचानक से
रुख पलट जाता है
खुशियों के कुछ
संकेतों से
और फ़िर
हम जिन्दगी से
प्रेम करने लगते हैं
और चल पड़ती है
जिन्दगी
खुशियों का निमन्त्रण पाकर
आगे मंजिल की तरफ़
एक अन्तहीन यात्रा पर
उल्लास से भरी।
  000
पूनम श्रीवास्तव


बुधवार, 25 मई 2016

गीत

खिल रही कली कली
महक रही गली गली
चमन भी है खिला खिला
फ़िजा भी है महक रही।

दिल से दिल को जोड़ दो
सुरीली तान छेड़ दो
प्रेम से गले मिलो
हर जुबां ये कह रही।

कौन जाने कल कहां
हम यहां और तुम वहां
पल को इस समेट लो
वक्त मिलेगा फ़िर कहां।

मिलेगी सबको मंजिलें
नया बनेगा आशियां
कदम कदम से मिल रहे
कारवां भी चल पड़ा।
000

पूनम श्रीवास्तव

सोमवार, 16 मई 2016

गज़ल

कलम चल रही जरा धीरे धीरे
भाव बन रहे मगर धीरे धीरे।

उम्मीदों की जिद कायम है अब भी
शब्द बंध रहे हैं जरा धीरे धीरे।

कसक उठ रही मन में जरा धीरे धीरे
इक धुन बन रही है जरा धीरे धीरे।

सबने मिलकर तरन्नुम जो छेड़ा
कि गज़ल बन रही है जरा धीरे धीरे।

जिन्दगी के साज बज रहे धीरे धीरे
हुआ सफ़र का आगाज जरा धीरे धीरे।
000
पूनम श्रीवास्तव