रविवार, 17 मई 2009

मन पाखी


मन तुम तो पाखी बन कर
उड़ जाते हो दूर गगन तक
पल भर में ही हो आते हो
सात समुन्दर पार तक।

पल में यहां और पल में वहां
हर क्षण जगह बदलते हो
क्या कोई तुम्हारा एक ठिकाना
बना नहीं है अब तक।

हर पल तुम तो विचरा करते
चैन न लेने देते हो
जैसे भटकता कोई राही
मिले न मंजिल जब तक।

सोचूं तुमको बंधन में बांधूं
पर कैसे और कहां तक
तुम ऐसे परवाज़ हो जिसको
बांध सका ना कोई अब तक।
00000000
पूनम

रविवार, 10 मई 2009

मातृ दिवस

मां शब्द ही अवर्णनीय,अतुलनीय है।उनके बारे में लिखना किसी के लिये सम्भ्व नहीं है।
दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उनके लिये लिखना सागर की एक बूंद की तरह होगा।
आज मातृ दिवस पर मैं अपनी एक कविता प्रकाशित कर रही हूं।

मां
मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां
अंतरिक्ष के इस पार से
उस पार तक का अंतहीन विस्तार है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं--------------------।

शिशु की हर तकलीफ़ों को रोके
ऐसी इक दीवार है मां
शब्दकोश में नहीं मिलेगा
वो कोमल अहसास है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं-------------------।

सृजनकर्ता सबकी है मां
प्रकृति का अनोखा उपहार है मां
ममता दया की प्रतिमूर्ति
ब्रह्म भी और नाद भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

स्वर लहरी की झंकार है मां
लहरों में भी प्रवाह है मां
बंशी की धुन है तो
रणचण्डी का अवतार भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां।
000000000000
पूनम


मंगलवार, 5 मई 2009

जख्म


जख्म जाने कब के भर गए होते
यदि बार बार उनको कुरेदा न जाता।

बात बनती हुयी यूँ बिगड़ती नहीं
यदि बार बार उसको बढाया न जाता।

गैरों से अपनेपन का एहसास ही न होता
यदि बार बार अपनों ने ठुकराया न होता।

हंसती हुयी जिंदगी यूँ वीरान न होती
यदि बार बार उसको रुलाया न जाता।

विरहन की आस यूँ ही न टूटती
यदि बार बार उसको भरमाया न जाता।

कसौटी पर जिंदगी के खरा उतरता न कोई
यदि बार बार उसको आजमाया न जाता।
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पूनम