शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

जीना इसी का नाम है


कुछ बूंदें ओस की
टपकीं टप से
बिखर गयीं
फ़ूलों की कोमल पंखुड़ियों पर
बिना विचारे कि
वहां उनका स्वागत करेंगे
नुकीले बेदर्द कांटे
जिनका काम ही है
दर्द बांटना।

पर क्या मतलब इससे
दीवानी बूंदों को
उन्होंने तो खुद को कुर्बान कर
चार चांद लगाया
फ़ूलों के सौन्दर्य में
जड़ दिये हीरे और ढेरों नग
फ़ूलों की पंखुड़ियों पर।

फ़ूलों ने भी किया
स्वागत
उन बूंदों का उन्हें गले लगाकर
तहे दिल से किया शुक्रिया अदा
क्योंकि
वो भी इस बात को जानते हैं कि
बूंदें तो क्षणभंगुर हैं
उनका रिश्ता है इस धरती से
सिर्फ़ सूरज की किरणों के आने तक।

पर बूंदों की कुर्बानी के आगे
फ़ूल भी हो गये नत मस्तक
क्योंकि
बूंदों ने अपने नन्हें से जीवन
को व्यर्थ नहीं गंवाया
फ़ूलों को क्षणिक खुशी ही देकर
पूरी दुनिया को अहसास कराया
कि सबका ही जीवन तो क्षणभंगुर है
किसी को छोटी सी खुशी देकर
कुर्बान होना ही
जीने का दूसरा नाम है।
0000
पूनम

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

लेख --- जिम्मेदार कौन--?

बचपन में देखा करती थी और देख देख के खुश भी होती थी कैसे चिड़ा चिड़िया का जोड़ा अपने घरौंदे को बनाने में मशगूल रहता था।दोनों ही खुशी खुशी ,बारी-बारी से एक एक तिनका तोड़ कर लाते और अपने घरौंदे को सजाते। अपने बच्चों को सुरक्षित रखने की पूरी कोशिश करते कि कहीं कोई शिकारी आ कर उनके घरौंदे व बच्चों को नुक्सान न पहुँचा दे।दोनों जोड़े जी तोड़ कोशिश करते,मीलों दूर तक जाते सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने बच्चों का पेट भरने की चिन्ता में,और फ़िर चोंच मे दाना दबाये व्याकुल से भागे आते अपने बच्चों को प्यार से निवाला खिलाने के लिये। और फ़िर अपनी छोटी सी दुनिया में बच्चों को छोटी छोटी बातें ज़िन्दगी की समझाते ताकि उनका भी जीवन सुखमय हो और वे भी आपस में प्रेम से रहें ।
आज अकस्मात ही बचपन की वो बात अर्थात उन चिड़ा चिड़ी की याद आ गयी।जब आज के समाज में हर माँ बाप को दिन रात अपने बच्चों की चिन्ता सताती रहती है शायद उनके जन्म के साथ ही।
सम्भवतः सभी माँ बाप अपने बच्चे के सुन्दर भविष्य की कल्पना लिये हुए अपनी यथाशक्ति से ज्यादा उन्हें वो सब कुछ देने की कोशिश करते हैं जो उनके बच्चों को चाहिये,शायद उन्हीं चिड़ा चिड़ी की तरह ।
बचपन से ही उनको अच्छे संस्कारों मे ढालकर एक आदर्श इन्सान बनाने की कोशिश में उन्हें छोटी छोटी बातों से समझाने की शुरुआत करते हैं। जहाँ तक मेरा मानना है कि अगर कोई गलत करता है तो हम अपने बच्चों को यही शिक्षा देते हैं कि तुम गलत मत करो।गलती करने वाले को खुद ही भूल का एह्सास एक दिन हो जायेगा।
जब बच्चा स्कूल जाने लगता है तो सारे मैनर्स घोल कर उसे पिलाने की कोशिश करते हैं, जो हमें हमारे माता पिता से मिले थे-ईमानदार बनो, झूठ मत बोलो(कहते है न…honesty is the best policy…)।पर धीरे धीरे वक्त बदलता जाता है।बच्चे भी घर के दिये संस्कार तथा बाहर समय व माहौल को देखकर उलझे से रहते हैं क्योंकि तब उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान तो थोड़ा थोड़ा होने लगता है।
फ़िर वो अपने संस्कारों के विपरीत कहीं कुछ अपने या किसी के साथ भी गलत होता देखते हैं तो फिर तनाव में आने लगते हैं।क्योंकि उनका मन उन्हें गलत का साथ देने की इजाजत नहीं देता। पर जब बाहर का माहौल मिलता है और चार अलग अलग लोगों की संगत मे बच्चा पड़ ज़ाता है तो थोड़ी देर के लिये ही सही उस पर बाहर का माहौल हाबी होने लगता है।इसका मतलब ये नहीं कि वो आपके दिए गये संस्कारों को भूल गया हो।लेकिन यही वो उम्र है कि जब बच्चे को लगता है कि क्यों हमको
इतना आदर्शवादी बनाया गया? क्यों हम दूसरों की गलत बातों को चुपचाप सहन
करें फिर या तो वो खुद में कसमसाते रहते हैं।या फिर बारी आती है आपसे
सवाल जवाब की------कि आपने हमें इतना सिद्धान्तवादी क्यों बनाया?आज का समय तो वो है कि कोई एक थप्पड़ मारे तो उसे दस थप्पड़ लगायें। कोई कुछ भी कह कर निकल जाये तो आप हमें यह समझाते रहें कि उसे अपनी गलती का अहसास जरूर होगा।कोई आकर गलत इल्जाम लगाये आप विनम्रता की मूर्ति बन कर खडी रहें
और कहें कि जाने दो बात को ना बढ़ाओ बावजूद इसके कि आप सच हों------
तभी एक झटका सा लगता है और याद आती है चिड़िया के उस जोड़े की जिन्हें हरदम अपने बच्चों की चिन्ता सताये रहती थी। कि कैसे जल्दी से उनके बच्चे बड़े हो जायें ताकि शिकारी के रुप मे आये किसी से भी अपनी रक्षा खुद ही कर सकें और किसी के बहकावे मे न आयें।
आज वही हश्र हमारे बच्चों का हो रहा है (जो कल का भविष्य बनेंगे) क्योंकि वो जब बेहद तनावग्रस्त हो जाते हैं। तब बाज रूपी शिकारी उनके दिलो-दिमाग पर हावी हो जाता है और बच्चे थोड़ी देर के लिये ही सही अपना आपा खो देते हैं। और गलत सही का फ़ैसला नही कर पाते।फ़िर माँ-बाप को ही लगने लगता है कि शायद उनकी परवरिश में ही कोई कमी रह गयी हो और वो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं –वास्तव में कौन जिम्मेदार है इन सब का?
हम ,हमारे संस्कार,हमारे बच्चे या हमारा आज का समाज --------ज़रा आप भी इसपर सोचिये।
000000
पूनम



शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

दीपावली


दीपावली के शुभ अवसर पर सभी पाठकों को मेरी हार्दिक मंगलकामनायें।

दीपावली


दीपों की अवली से सजी
दीवाली आई प्यारी
जगमग जगमग रोशन करती
घर आंगन और क्यारी।

दीपावली की तैयारी में
जुटे बड़े बूढ़े और बच्चे
खुशी से सबका मन भर दे
शुभ दीपावली न्यारी।

कहीं पे फ़ूटे बम बताशे
कहीं अनार कहीं फ़ुलझड़ी
उछल कूद कर नाचें बच्चे
जब नाचती घूम के चकरी।

चाहे छोटे हों या बड़े
या फ़िर गरीब अमीर
खुशियों से ये पर्व भरेगा
सबके मन की झोली।

चाहे झोपड़ी झुग्गी वाले
या फ़िर हों कोई किस्मत के मारे
खुशियों के दीप जले हर घर में
हे ईश यही है प्रार्थना मेरी।

सबको रोशनी देता दीपक
खुद उसके तले अंधेरा
एक दिये की बाती करती
दूर अमावस की रात घनेरी।

सच्चे मन से मांगू दुआ
खुशी खुशी त्यौहार मने
दीपों की माला से जुड़कर
हम देश के हर दुश्मन से लड़ें।
00000
पूनम

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

सिर्फ़ तुम्हारे लिए

दुनिया में जीवन मिलता नहीं बार बार
पर चाहती हूं जिन्दगी सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

लफ़्ज़ लबों तक आकर थिरकते रहे
पर सी लिया है उनको सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

लोग शब्दों से छलनी करते जिगर को
सीती हूं जख्मों को सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

हमदर्दी के मायने गलत लेते हैं लोग
इस दर्द को सहती हूं सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

जहां में होता नहीं हर कोई एक जैसा
समझाती हूं मन को सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

फ़ूलों के संग होते कांटे भी बहुत ही
बीनती हूं उनको सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

वक्त हर घाव को भरता नहीं
फ़िर भी मलहम लगाती हूं सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

राहों में आती हैं मुश्किलें बहुत सी
उनसे लड़ती हूं मैं बस तुम्हारे लिये।

अश्क आंखों से न गिरने पाये जमीं पे
समेटती हूं आंचल में पहले से ही सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

लहर गमों की जो आये तुम्हारी तरफ़
बन सागर समा लूंगी उन्हें सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

पीना पड़ेगा अगर ज़हर भी कभी
पी लूंगी अमृत समझ सिर्फ़ तुम्हारे लिये।

रहेगी जब तलक जिन्दगानी मेरी
जीऊंगी मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ तुम्हारे लिये।
0000पूनम

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

प्यारी बेटी नेहा के जन्मदिन दो अक्टूबर पर आशीष

2 अक्टूबर को मेरी प्यारी बेटी नेहा शेफ़ाली का जन्म दिवस था।उस दिन मैनें यह कविता लिखी थी । परन्तु नेट की गड़बड़ी के कारण इसे पोस्ट नहीं कर पायी।इसे आज पोस्ट कर रही हूं।

होठों पे हंसी तेरी नजर में खुशी
का समन्दर हरदम लहराता रहे।

दिल में उमंग चेहरे की दमक
देख देख चांद भी शरमाता रहे।

श्रावणी बयार सी तू झूमे सदा
पुरवईया भी देख के लजाती रहे।

यूं गुनगुनाना तेरा खनखनाती हंसी
सुर संगम भी सुन के मचलता रहे।

चांद सूरज सी तू हो सितारों जैसी
जिससे आंगन तेरा झिलमिलाता रहे।

जो है तेरी खुशी वही मेरी खुशी
तेरा जीवन मधुबन सा खिलता रहे।

हो निश्छल सा प्यार मिले ढेरों दुलार
आशीष तुझे देवों का मिलता रहे।

है तेरे लिये मेरी ये ही दुआ
मेरी बेटी जहां भी रहे तू सलामत रहे।

नजर न लगे किसी की तुझे
तुझ पर हमेशा खुदा की इनायत रहे।

हर चाहत हो पूरी सदा ही तेरी
दुआ सबके दिल से निकले तेरे लिये।
****
पूनम