शनिवार, 10 मई 2014

मां

मां शब्द ही अवर्णनीय,अतुलनीय है।उनके बारे में लिखना किसी के लिये सम्भ्व नहीं है।दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उनके लिये लिखना सागर की एक बूंद की तरह होगा।
       आज मातृ दिवस पर मैं अपनी एक कविता पुनः प्रकाशित कर रही हूं।

मां

मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां
अंतरिक्ष के इस पार से
उस पार तक का अंतहीन विस्तार है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं--------------------।

शिशु की हर तकलीफ़ों को रोके
ऐसी इक दीवार है मां
शब्दकोश में नहीं मिलेगा
वो कोमल अहसास है मां।
 मां सिर्फ़ शब्द नहीं-------------------।

स्रिजनकर्ता सबकी है मां
प्रक्रिति का अनोखा उपहार है मां
ममता दया की प्रतिमूर्ति
ब्रह्म भी और नाद भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

स्वर लहरी की झंकार है मां
लहरों में भी प्रवाह है मां
बंशी की धुन है तो
रणचण्डी का अवतार भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां।
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पूनम




शुक्रवार, 2 मई 2014

मौसी की चालाकी

बिल्ली ने ये मन में ठाना
चूहों को है सबक सिखाना
खेल चुके घण्टी का खेल
अब मुझको है शंख बजाना।

बहुत विचार किया मौसी ने
शुरू किया फ़िर गाना गाना
जंगल के सारे जीवों को
लगी सिखाने ढोल बजाना।

चूहों को भी शौक लगा फ़िर
क्यूं ना सीखें हम भी गाना
भूल गये मौसी का गुस्सा
लगे सीखने ढोल बजाना।

मौसी मन ही मन मुस्काई
चूहों पर खुब प्यार लुटाई
जितने चूहे आते जाते
मौसी खाके गाती गाना।
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पूनम श्रीवास्तव