सोमवार, 30 मई 2011

दिल के जज्बात

दिल के जज्बात जब आंखों में उतर आये

तो सब्र का मानों सैलाब बह गया।

एक लहर आई और पलकों पर ठहरी

पर दूसरी साथी लहरों ने उसका साथ दे दिया।

हंसी बिखेरती रही झूठी मुस्कान ओढ़ कर

पर वो बेमुरौव्वत हाले दिल बयां कर गया।

सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब

पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।

इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें

खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।

अजब का इनका रिश्ता भी है न साथियों

किस बात पर ये छलक पड़े किसको गुमां हो पाया।

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पूनम


गुरुवार, 19 मई 2011

शऽऽऽऽऽऽचुप।


शऽऽऽऽऽऽ चुप

दीवारें भी करती हैं

सरगोशियां

यह बात महसूस

होती है सही।

आपने जुबां घर पे

खोली

और बात दरो दीवारों

से गुजर कर

हवाओं में फ़ैल गयी

शायद आपने सुना नहीं?

आपने कहा था क्या

और दीवारें आपकी

बाहर क्या क्या

गुल खिला गईं।

दिमाग सोचने को

मजबूर और

जुबां है अब बंद

इसी लिये दिल की बात

को चुपके से

पन्नों पर उतार गई।

000

पूनम

रविवार, 8 मई 2011

माँ तेरी याद में……









माँ तेरी कोख में जनम लिया

कोई इससे बड़ा वरदान नहीं

तेरे दिल से निकले आशीर्वचन

मुझसे बड़ा धनवान नही

तूने जो सन्स्कार दिये मुझको

उससे बड़ा कोई रत्न नही

हर पग-पग पर जो सीख मिली तुझसे

उससे बड़ा कोई ज्ञान नही

मुश्किलों में भी चट्टानो से टकराकर

मेरे लिये हरदम मुस्कान बनी

स्नेह,त्याग,ममता की जननी

तुझसे बड़ा कोई मान नही

माँ-माँ तू केवल माँ है मेरी

मेरे लिये तुझसे बड़ा भगवान नही

तुझसे ही तो जाना हमने होते हैं भगवान भी

तुझमें पाते सारे वो रूप,तुझ सम कोई और नहीं

माँ मेरा हर जीवन

हर पल है तुझपे क़ुर्बान

ॠण तेरा कभी ना चुक सकता माँ

पर ये मेरा तुझपर उपकार नही

शत-शत नमन तुझे ओ मेरी माँ

तू मिले मुझे हर जनम-जनम

यादों मे बसी,साँसों मे समाई

ओ माँ,

कैसे कहूँ कि तू अब मेरे पास नहीं…॥

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पूनम

सोमवार, 2 मई 2011

सर्प – दंश


सच्चाई की झलक भी न हो जिसमें

मुझपे ऐसी तोहमत तो लगाया न करो।

सामने आती है सच्चाई थोड़ी देर से ही

पर सच को झूठ का आईना तो दिखाया न करो।

मैंने चाहा है सराहा है भरोसा भी किया तुम्हीं पर

मेरी चाहत पे यूं इल्जाम तो लगाया न करो।

शक वो मर्ज है जिसकी तो कोई दवा ही नहीं

गैर की बातों में आकर यूं तो बहका न करो।

हक है तुम्हें दिल की बात मुझसे तो कहो

पर सर्प सा दंश दे देकर मुझे यूं घायल तो न करो।

जलती हूं मोम की लौ की तरह गल गल कर

यूं शब्दों के तीर हर पल तो चलाया न करो।

वफ़ा तो वफ़ा से ही होती है बेवफ़ाई से नहीं

फ़िर मेरी मुहब्बत को यूं रुसवा तो सरे आम न करो।

मेरा दर्पण मेरा शृंगार मेरा जीवन हो तुम्हीं तुम

यूं मुझे ना समझ पाने की तो नासमझी न करो।

वो भी वक्त आएगा जब हकीकत से रूबरू होगे तुम

पर वक्त निकल जाये तो फ़िर पछताया न करो।

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पूनम