तो सब्र का मानों सैलाब बह गया।
पर दूसरी साथी लहरों ने उसका साथ दे दिया।
हंसी बिखेरती रही झूठी मुस्कान ओढ़ कर
पर वो बेमुरौव्वत हाले दिल बयां कर गया।
सोचा था महफ़िल में झूठ की पहने रहूं नकाब
पर सच के आगे वो भी बेनकाब हो गया।
इन आंसुओं का भरोसा क्या कब बरस जायें
खुशी हो गम दोनों में रिश्ते निभाता गया।
अजब का इनका रिश्ता भी है न साथियों
किस बात पर ये छलक पड़े किसको गुमां हो पाया।
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पूनम