मंगलवार, 30 मार्च 2010

भोर की सुगबुगाहट


भोर की सुगबुगाहट

होती है शुरू

हल्के से उजाले के साथ

चिड़ियों की चूं चूं

कुछ अलसायी कुछ अधखुली आंखें

बाथरूम में तेज पानी की धार

हर हर की आवाज।

कहीं पर सूर्य देव को अर्ध्य

हरी ओम का जाप

घण्टे की आवाज

नमाज की अजान।

कहीं किचन में खटपट खटपट

कहीं तेजी से चलते हाथ

बच्चों को स्कूल भेजने की तैयारी

बिस्तर पर आराम फ़र्माते साहब

गरम चाय की चुस्की

अखबार की हेडलाइन।

अधूरी नींद में

बिना मुंह धोये

गोदी में बच्चे उठाये

तेज तेज कदमों से काम पर

पहुंचने की कोशिश करती

कुछ स्मार्ट कुछ भदभद

औरतें

पीठ पर बोरे लादे

सड़क नापने की

कोशिश करते बच्चे।

सभी की भोर

अलग अलग भोर

हां यही तो है

भोर की सुगबुगाहट।

0000

पूनम

गुरुवार, 25 मार्च 2010

दर्दे --जिन्दगी


दवा ही बन ग़यी है जिन्दगी जिनकी,

दुआ कीजिये वो जहर न बने।

लहू जो दौड़ रहा जिस्म में,

दुआ कीजिये बेअसर न बने।

पिये जा रहे हैं गमों के चिलम,

दुआ कीजिये वो कहर न बन॥

नहीं देख सकता जो औरों का चैन,

दुआ कीजिये वो नज़र न बने।

समझता नहीं जो दर्द जिन्दगी का,

दुआ कीजिये वो जिगर न बने।

आबाद है जहां नेक इन्सानों से ही,

दुआ कीजिये वो वीराना शहर न बने।

000

पूनम

शनिवार, 20 मार्च 2010

गौरैया दिवस के अवसर पर-------

उड़ते फ़िरते पक्षी सारे

ज्यों घूमा करते बंजारे

घूम घूम कर डाली डाली

ढूंढ़ रहे अपने घर सारे।

प्रेम की भाषा इनमें इतनी

काश कि इन्सानों में दिखती

इनमें आपस में विश्वास बड़ा

तभी तो रहते घर को संवारे।

देख रहे सूनी आंखों से

अपने संवरे घर को उजड़ते

सोच रहे मन ही मन में

रहें कहां अब हम बेचारे।

बिन इनके तो जंगल सूना

बगिया सूनी सूनी दिखती

चहका करती थी जो घर में

उनकी आवाज को तरसते सारे।

रोज बाग में आती थी गौरैया

इक इक दाना चुगती थी

दाने अपने मुख में भरकर

बच्चों का पेट वो भरती सारे।

अब गौरैया बैठी दीवारों पर

ले बच्चों को बिलख रही

जाऊं तो जाऊं कहां

छोड़ के बच्चे प्यारे प्यारे।

कोयल की कूक भी अब देखो

सुनने को कम ही मिलती है

ठौर ठिकाने ढूंढने में

भूल गयी वो भी सुर सारे।

तिनका तिनका ढूंढ के ये

मेहनत से अपना घर बार बनाते

पर बेदर्द मतलबी इन्सानों ने

इनके घर संसार उजाड़े।

पशु पक्षी से भी प्यार करो

इनसे प्यार के बदले मिलता प्यार

आओ इनका घर फ़िर से संवारें

गौरैया दिवस के अवसर पर आज।

000000

पूनम

मंगलवार, 16 मार्च 2010

यकीन



तुम्हारे यकीं का इंतजार करते करते

अब थक चुकी हूं मैं

फ़िर भी तुम्हें आया नहीं यकीं

मुझ पर अब तक

उससे तुम नहीं

मेरा आत्म सम्मान टूटता है

और मैं तुम्हें यकीन दिला के

रहूंगी तब तलक

जब तलक सांस में सांस रहेगी।

अन्तिम सांस अंतिम क्षण तक

तुम्हारे इंतजार में जाने

मैंने कितने अफ़साने

अपने ऊपर लिख डाले

यहां तक कि अब

लिखते लिखते

जज्बात रूपी लफ़्जों की

स्याही भी खत्म होने को

चली है और अब तक

कागजों का इतना बड़ा पुलिंदा

बन चुका है जो कि

खुद ही घुट घुट कर

जल चुकी हुई आधी शमा को

पूरी तरह जलने में

तुम्हारा साथ देगी

और तब तुम्हें लगे

कि हां मैनें तुम्हारे

यकीन को हां में बदलने

में शायद

काफ़ी देर कर दी

पर फ़िर भी मुझे खुशी होगी

कि चलो कम से कम

तब तो तुम्हें यकीन आया

और ये सब किसी

और के लिये भी एक

सबक होगा।

0000

पूनम

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

गीत जिन्दगी का


जहां को हंसाते हुये, खुद रोते हुए

फ़िर हंसती हुई, पलकें झपकाती हुई

जिन्दगी हूं मै आई,मै आई जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई,मै आई जिन्दगी ।

कुछ गुनगुनाती हुई, बुदबुदाती हुई

थोड़ी-थोड़ी करती शरारती हुई

नन्हीं सी कली सी मै आई जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई, मै आई जिन्दगी।

इठलाती हुई, बलखाती हुई

इतराती हुई ,लहराती हुई

इक बेल सी आगे बढी जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई,मै आई जिन्दगी।

कदम बढाती हुई,ख्वाब देखती हुई

झिलमिलाती हुई,खिलखिलाती हुई

धीरे-धीरे मै आगे बढी जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई,मै आई जिन्दगी।

गैरों को अपना बनाती हुई जिन्दगी

अपनों को गले लगाती हुई

साथ सबका निभाती बढी जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई, मै आई जिन्दगी।

सुख मे हंसती हुई,दुख को सहती हुई

अपने मे हिम्मत बढाती हुई

खुद-ब-खुद आगे चली जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई, मै आई जिन्दगी।

खुद लुटती हुई प्यार बांट्ती हुई

कभी रूठती हुई, कभी मनाती हुई

चुपके से समय गुजारती जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई,मै आई जिन्दगी।

डगमगाती हुई,लड्खडाती हुई

नैइया को पार लगाती हुई

मै पतवार से खेती, गयी जिन्दगी

जिन्दगी हूं मै आई, मै आई जिन्दगी

जाने किस पल मे सांस लगी टूट्ती

साथ सभी का मैं चली छोडती

फ़ि्र तो बाय- बाय मै करके चली

जिन्दगी मै चली, मै चली जिन्दगी।

ना----ना---ना----ना----ना

सबकी यादों मे,सबके खयालों मे

सबकी सांसो मे,सबकी बातों मे

नये रूपों मे नये बन्धन मे

फ़िर से लौट के मै आई जिन्दग॥

जिन्दगी हूं मै आई, मै आई जिन्दगी…

पूनम

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शनिवार, 6 मार्च 2010

संग छोड़ चले हम हिन्दी का


हालांकि यह विषय ऐसा नहीं है जिस पर गौर ना फ़रमाया गया हो। या पहले कभी इस विषय पर बात न हुयी हो। पर सोचने और लिखने का सबका अपना अपना नजरिया व अन्दाज होता है। हमारा ही यह देश है जिसमें हमें खुलकर कहने व लिखने की स्वतंत्रता है---हर सच्चाई और हर यथार्थ के लिये।

यहां एक अरब से ज्यादा की आबादी में विभिन्न भाषाओं और जाति धर्म के लोग भी मिल जुल कर रहते हैं। सबको अपनी अपनी भाषा में खुद को अभिव्यक्त करने की स्वतन्त्रता है। तो फ़िर बात आकर हिन्दी और अंग्रेजी माध्यम के बीच में क्यों त्रिशंकु की तरह लटक जाती है? फ़िर वही चर्चाये आम होकर सब को खास लगती है। वैसे बात हम अंग्रेजी व हिन्दी भाषा की कर रहे हैं तो उसी पर आते हैं। हम सोचने पर मजबूर हो गये हैं कि क्या हम हिन्दी को खुद ही अपने से दूर नहीं कर रहे हैं। कहीं दूर न जाकर अपने को ही लेती हूं----।

हमारे जैसे हजारों परिवार ऐसे हैं जो बच्चे के जन्म के साथ ही उसे लेकर भविष्य का ताना बाना बुनने लगते हैं। वह बड़ा होकर क्या बनेगा-----हम उसे क्या बनायेंगे----किस माध्यम से पढ़ायेंगे? इत्यादि।

उस समय हम यह नहीं सोचते कि बच्चा जब बड़ा हो जायेगा तो उसे भी कुछ स्वाधिकार देने होंगे। जिससे वह अपने नजरिये से अपने आप को व दुनिया को देखे व समझे।

लेकिन नहीं जैसे ही बच्चा थोड़ा बड़ा होता है हम उसे मां पिता की जगह माम डैड का पाठ पढ़ाना शुरू कर देते हैं। बच्चा अभी तक शू शु का मतलब शायद समझ न पाया हो पर हम उससे टायलेट और पोटी की बातें करते हैं। क्योंकि आज के समय सबके सामने हिन्दी की आम भाषा बोलने में हमे खुद जो शरम आती है।

तो कहने का मतलब यहां पर यही है कि बच्चे को हम स्वयं ही शुरू से हिन्दी भाषा से दूर करने लगते हैं। अगर उसने किसी के प्रश्न का उत्तर अंग्रेजी में नहीं दिया तो हमे लगता है कि हमारे मुंह पर किसी ने थप्पड़ मार दिया हो। अपने आप को हम अपमानित महसूस करते हैं।

स्कूल भेजने के पहले हम उसे क ख ग से बाद में परिचित करवाते हैं। पहले ए बी सी डी और अंग्रेजी की पोएम्स सिखाने का अभ्यास करवाते हैं ।ताकि उसका एक अच्छे व बड़े नाम वाले अंग्रेजी स्कूल में दाखिला हो जाये।बच्चा हिन्दी बोलना भले ही न सीख पाये पर अंग्रेजी में हम उसे पारंगत बना देते हैं। अगर कहीं गलती से टीचर ने अंग्रेजी के बजाय हिन्दी में रंगों के नाम पूछ लिया तो बहुत हद तक संभव है कि बच्चे के साथ हम भी एक बार रंगों के नाम सोचने पर मजबूर हो जायं। तब हमें यह अफ़सोस भी होगा कि हमने तो अपने बच्चे को अंग्रेजी के चक्कर में हिन्दी नाम तो बताया ही नहीं ---यह सोचकर कि ये सब तो बच्चा बाद में आसानी से सीख लेगा।

फ़िर कहीं बच्चे का एडमिशन आपके चाहने के अनुसार उस स्कूल में नहीं हुआ तो फ़िर तो संभव है कि बच्चे की शामत ही आ जाय। और फ़िर हम यूं मायूस हो जाते हैं कि उस स्कूल में अगर एडमिशन नहीं हुआ तो जैसे बहुत बड़ा खजाना आपके हाथ से निकल गया हो। हालांकि ज्यादातर मां बाप इस मामले में अपनी भी गलती मानते हैं। हर जगह ही लोग बच्चे पर अपना गुस्सा उतारे ये समझदारी मां बाप पर आधारित होती है।

कालेज में आने पर वही बच्चे के भविष्य का सबसे बड़ा चुनाव केन्द्र होता है। उसको खुद का आत्मविश्वास और उसकी मेहनत चाहे वह हिन्दी मीडियम में पढ़ा हो अंग्रेजी माध्यम से।

अगर हम अंग्रेजी को एक विषय के रूप में रखकर बाकी सारे विषयों को हिन्दी में पढ़ायें बजाय हिन्दी को एक आम विषय समझ कर बाकी सभी विषयों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ायें तो शायद हमारी हिन्दी भाषा फ़िर धीरे धीरे हमारी अपनी होती जायेगी।

हम यह नहीं कहते कि अंग्रेजी पढना गलत है,बिल्कुल गलत नहीं है क्योंकि आज का जो समय बदल गया है उससे ज्यादातर देशों में अंग्रेजी का बोलबाला है। और हिन्दी का कम्। क्योंकि हमारा भारत देश ही एक ऐसा देश है जहां हर भाषा जाति, धर्म ,सम्प्रदाय के लोग रहते हैं। और जिन्हें अपनी अपनी भाषा बोलने की पूर्ण स्वतन्त्रता है।

ऐसे में भी यदि कोई हिन्दी भाषी बाहर नौकरी के लिये जाना चाहता है तो उसे थोड़ी हिचकिचाहट महसूस होती है क्योंकि ज्यादातर राज्यों में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान होने से काफ़ी सहूलियत होती है। क्योंकि महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश आदि जैसे कई ऐसे प्रदेश हैं जहां आप अगर जरा भी अंग्रेजी जानते हैं तो आपकी परेशानी थोड़ी कम होगी । औरों की भाषा को न समझ कर अपनी बात को अंग्रेजी के टूटे फ़ूटे शब्दों में भी समझ सकते हैं।

समय परिस्थितियां और बदलाव आज के युग की सबसे बड़ी जरूरत है। जिसके अनुसार हमें कहीं न कहीं समझौता करना पड़ता है और दूसरों को भी।

लेकिन हम अगर अंग्रेजी के साथ साथ अपनी हिन्दी भाषा को भी साथ लेकर चलें तो ज्यादा बेहतर होगा। ऐसा नहीं कि हिन्दी बोलकर हम या आप अपमानित होंगे। बल्कि इससे और भी भाषाओं का ज्ञान बढ़ेगा हिन्दी के साथ साथ।

तो क्यों न हम सब मिलकर आगे बढ़ें और अपने राज्य को गले लगाते हुये दूसरी भाषा से भी उतना ही प्यार करें। पर अपनी हिन्दी भाषा का बहिष्कार करके नहीं। अपितु बड़े गर्व के साथ कहें कि हां हम हिन्दी भाषी हैं। और अपनी भाषा कहीं भी हम बोलने को स्वतन्त्र हैं।

जो राज्य भाषा हमारी मातृ भाषा भी हो तो हम अपनी मां को अपमानित कैसे कर सकते हैं? उनके साथ नाइंसाफ़ी को हम कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं? जैसे हमारी मां कभी हमें नहीं सिखाती कि फ़लां आदमी बुरा है तो उसका साथ छोड़ दें------बल्कि यह कहती हैं कि अगर तुम उसकी सच्ची दोस्त हो तो उसकी बुराइयों को मत देखो । उसे दूर करने की कोशिश करो। उसकी अच्छाइयों को दिल से अपनाओ।

वैसे ही हमारा भी मानना है कि हर भाषा का अपना मान सम्मान है। सभी अपनी अपनी जगह पर ठीक हैं। पर जैसे हमें वक्त पर अंगरेजी बोलना है तो हम बोलेंगे । यदि उसके बिना काम नहीं चलता है (जैसे कि आज का समय चाहता है)।पर बाकी वक्त हमें अपनी ही भाषा का प्रयोग करना चाहिये जो कि उचित है और अपनी मांग भी।

अतः हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि हमारी भाषा पहले हिन्दी है फ़िर अंग्रेजी या और। यूं ही अपनी भाषा को विदेशी नहीं बना सकते।

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पूनम