घिस घिस कर कलम
भर गए सब पन्ने
पर लिखनी थी जो बात
वो ही न लिख सके।
सुन सुन कर औरों की
कान जब्त हो गए
जब कहने की बारी आई
तो ख़ुद कुछ न कह सके।
मन का दिया बना कर
सोचों की आहुति डाली
सूरज की रोशनी में भी
पर वो न जल सके।
तारों को अपने आँचल में
चाहा था उतारना
पर क्या करें जब पाँव
जमीं पर ही न टिक सके।
………….
पूनम
भर गए सब पन्ने
पर लिखनी थी जो बात
वो ही न लिख सके।
सुन सुन कर औरों की
कान जब्त हो गए
जब कहने की बारी आई
तो ख़ुद कुछ न कह सके।
मन का दिया बना कर
सोचों की आहुति डाली
सूरज की रोशनी में भी
पर वो न जल सके।
तारों को अपने आँचल में
चाहा था उतारना
पर क्या करें जब पाँव
जमीं पर ही न टिक सके।
………….
पूनम