सोमवार, 7 सितंबर 2015

लाला जी की पगड़ी

लाला जी की पगड़ी गोल
पगड़ी के अंदर था खोल
पगड़ी में से निकला देखो
रूपया एक पचास पैसा।

हंसने लगे सभी बच्चे
बजा-बजा के ताली
लाला जी की पगड़ी
रहती खाली-खाली।


लाला जी शरम से
हो गये पानी-पानी
कंजूसी की उनकी
खुल गई थी कहानी।
0000000000
पूनम श्रीवास्तव


बुधवार, 2 सितंबर 2015

दर्पण

दर्पण जो आज देखा वो मुंह चिढ़ा रहा था
चेहरे की झुर्रियों से बीती उम्र बता रहा था।

कब कैसे कैसे वक्त सारा निकल गया था
कुछ याद कर रहा था मैं कुछ वो दिला रहा था।

नटखट भोला भाला बचपन कितना अच्छा होता था
जब बाहों में मां के झूले झूला करता था।

धमा चौकड़ी संग अल्हड़पन कब पीछे छूट गया था
इस आपाधापी के जीवन में वो भी बिसर गया था।

कब उड़ान भरी हमने कब सपना मीठा देखा था
सच में सब कुछ वो बहुत रुला रहा था।

कब हंसे कब रोया हमने क्या कैसे पाया था
गिनती वो सारी की सारी करा रहा था।

मैं रो रहा था और वो मुझ पर हंस रहा था
क्यों नहीं हमने सबको रक्खा सहेजे था।

पछता के अब क्या वो ये जता रहा था
जो बीता वो ना लौटे वो यही समझा रहा था।

अब समझ रहा था मैं जो वो कहना चाह रहा था
आने वाले पल के लिये वो तैयार करा रहा था।
000
पूनम




बुधवार, 26 अगस्त 2015

पापा ऐसी कुर्ती ला दो

पापा जी ऐसी कुर्ती ला दो
जिसमें कलफ़ लगी कालर हो
झिलमिल झिलमिल तारों वाली
लटकी उसमें झालर हो।

पहन के कुर्ती को जब
मैं निकलूंगा घर से बाहर
देख के मुझको लोग कहेंगे
लगता प्यारा है राजकुवंर।


बैठूंगा मै फ़िर घोड़ी पर
साथ चलेंगे बाजे गाजे
परी लाऊंगा परी लोक से
जो हो सुन्दर सबसे ज्यादा।।
पापा ऐसी कुर्ती ला दो-----------।
000
पूनम श्रीवास्तव





शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

बंदर जी की शादी


चल पड़े बाराती लेकर
अपने बंदर मामा
शेरवानी पहनी थी ऊपर
नीचे था पाजामा।

आगे आगे चले बाराती
पीछे मामा जी की कार
धूम धड़ाका बैण्ड बाजा
बजता रहता बार बार।

नाचते गाते चली बारात
पहुंची बंदरिया के द्वार
स्वागत हुआ सभी लोगों का
पूरा हुआ उनका व्यवहार।


जब आई जयमाल की बारी
बंदरिया थी छोटी गोरी
सोचे कैसे माला डालूं
लाल हुये थे गाल।

मामा ने देखा मामी को
चिंता से थी बेहाल
लगा जम्प बंदर मामा ने
डाल दिया वरमाल।
000

पूनम श्रीवास्तव

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

पन्द्रह अगस्त का दिन

बात न पूछो आजादी के मस्तानों की
दीवानों की नादानों की परवानों की।

जो बचपन में ही कूद पड़े
क्रान्ति की अलख जगाने में
वो टूट पड़े थे फ़ूट पड़े थे
आजाद हिन्द को करने को
जां की परवाह न की
जिन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी
पल पल जीते रहे वो
हरदम आजाद देश को करने को।

फ़ूट पड़ी थी ज्वाला
जब क्रान्ति की पूरी तरह
परवान पे थी।

हर मां के जवानों ने अपनी
जान भारत माता के नाम
कर दी थी।

फ़िर भी सबक न लिया हमने
ना दर्द को हमने जरा भी समझा
जिस दर्द को तिल तिल
सहते हुये उन्होंने अपनी
कुर्बानी दे दी थी।

आओ भारत के सपूतों
सुन लो
अभी समय नहीं बीता है
ये राजनीति ये कूटनीति
ये सामाजिक अत्याचार
से भी हम निपट लें तो
उनको थोड़ी सी सच्ची
श्रद्धांजली हो जाएगी।

हर साल आता है पन्द्रह अगस्त
आ के चला फ़िर जाता है
वो भी देखता पलट पलट कर
भारत माता से
किसका कितना नाता है।
000
पूनम श्रीवास्तव




रविवार, 9 अगस्त 2015

चंदा मामा

चंदा मामा दिन बहुत हुए
बात न तुमसे होती है
आज और कल करते करते
मुलाकात न तुमसे होती है।


मां भी रोज बुलाती तुमको
दूध और भात खिलाने को
लुका छिपी खेलो बदली संग
पर नाम न लेते आने का।

रूठे रूठे क्यों लगते मुझसे
इतना तो बतला ही दो
हो गई हो गर गलती कोई
तो माफ़ी मुझको दे ही दो।

हंस कर बोले चंदा मामा
है सूरज के घर मेरी दावत
साथ साथ खेलेंगे कल हम
धमा चौकड़ी खूब करेंगे।

चंदा मामा दिन बहुत हुए
बात न तुमसे होती है।
000
पूनम श्रीवास्तव


मंगलवार, 21 जुलाई 2015

चार दोस्त अनोखे


   
कानन वन में भालू और बिल्ली की दोस्ती मशहूर  थी।दोनों हमेशा साथ रहते।भालू थोड़ा गंभीर था पर बिल्ली थी नटखट और चुलबुली। साथ ही खेलते और साथ ही स्कूल भी जाते। कभी किसी जानवर ने उन्हें लड़ते हुए नहीं देखा था।
     एक दिन भालू और बिल्ली स्कूल के सामने  वाले मैदान मेँ फुटबाल खेल रहे थे।कहीं से रास्ता भूलकर एक नन्हा चूहा आ गया।चूहे को देखते ही बिल्ली उस पर झपटी और उसे पंजों से पकड़ लिया।चूहा बेचारा चीँ-चीँ चीखने लगा।भालू ने तुरंत बिल्ली को टोका,म्याऊं रानी छोड़ो-----चूहे को छोड़ दो।
   छोड़ क्यूं  दूं?आज मैं इसका नाश्ता करुंगी”—म्याऊं चहक कर बोली।
अरे म्याऊं रानी---नाश्ते के लिये और भी शिकार मिल जायेंगे-----छोड़ो भी उसे।भालू ने उसे समझाने की कोशिश की।
चीं---चीँ-----मैं तो आप लोगों के पास दोस्ती करने आया था।चूहा चीँ-चीं करके बोला।
अच्छा चल तुझे छोड़दूंगी---लेकिन ये तो बता तेरा नाम क्या है?म्याऊं रानी ने चूहे से पूछा।
  मेरा नाम-----तो कुछ है ही नहीं।चूहा रुआंसा होकर बोला।
चलो आज से तुम्हारा नाम गोलू हुआ।तुम एकदम गोल मटोल हो न।अब आज से तुम भी हमारे दोस्त बन गये।भालू बोला।म्याऊं रानी ने गोलू को छोड़ दिया।फ़िर तीनों मिल कर फ़ुटबाल खेलने लगे।
      एक दिन भालू,म्याऊं और गोलू के स्कूल में छुट्टी थी।तीनों नदी के किनारे घूम रहे थे।म्याऊं बोली,भालू भाई मैं तो इस जंगल में रहते-रहते ऊब गयी हूं।क्यों न हम लोग घूमने के लिए कहीं बाहर चलें?
पर चलोगी कहां?ये भी सोचा है म्याऊं?भालू ने पूछा।
  हां ये तो सोचने वाली बात है।क्यों न हम लोग किसी पहाड़ पर चलें?म्याऊं सोचते हुये बोली।
पर कौन से पहाड़ पर ये भी तो बताओ? भालू ने पूछा।
हम लोग हिमालय पहाड़ पर चलें तो कैसा रहे?म्याऊं बोली।
तुम्हें मालूम भी है हिमालय यहां से बहुत दूर है।वहां भला हम कैसे जा सकते हैं?भालू ने प्रश्न किया।
सुनो क्यों न हम चल कर दादी मां से पूछें?वो शायद कोई रास्ता बताएं।गोलू चूहे ने सुझाया।बस फ़िर क्या था तीनों चल पड़े दादी मां से मिलने।
दादी मां ने उनकी बात बहुत ध्यान से सुनी।फिर बोली,----तुम लोगोँ को चीकू खरगोश की सहायता लेनी चाहिये।
चीकू खरगोश----वो हमारी क्या सहायता कर सकता है।म्याऊं बोली।
तुम लोगों को शायद नहीं मालूम चीकू बहुत अच्छा चित्रकार भी है।दादी बोलीं ।
ये तो हमें पता है दादी मां।पर उसके चित्रों से हमें क्या मतलब?भालू ने पूछा।
   अरे भाई,चीकू को वनदेवी का वरदान मिला है।उसके पास एक ऐसी पेंसिल है जिससे वह सुबह वन देवी को याद करके जो भी चित्र बनायेगा वो चीज सचमुच सामने आ जायेगी। दादी समझाते हुए बोलीं।
अरे वाह तब तो  हम  चीकू से कहकर उड़ने वाला हेलीकाप्टर बनवा लें।उसी से हम हिमालय के पहाड़ पर चलेंगे।म्याऊं चहकती हुई बोली।
लेकिन तुम लोग चीकू को भी साथ ले जाना।तभी वो तुम्हारी सहायता करेगा।दादी मां ने तीनों को समझाया ।
  
अगले दिन सुबह ही भालू,गोलू चूहा,म्याऊं बिल्ली पहुंच गये चीकू के पास।चीकू उस समय वन देवी की पूजा कर रहा था।तीनोँ उसके पास हाथ जोड़ कर बैठ गये।पूजा खतम होने पर उसने उन्हें भी प्रसाद खिलाया।फिर उनसे वहां आने का कारण पूछा।
  भालू ने चीकू को पूरी बात साफ़- साफ़ बता दी।उनकी बात सुनकर चीकू कुछ देर तो सोचता रहा फ़िर बोला, हूं---काफ़ी दिनोँ से मैं भी हिमालय पहाड़ पर जाने की सोच रहा था। चलो तुम लोगोँ के साथ तो घूमने में मजा आ जायेगा।
बस चीकू खरगोश  जुट गया हेलीकाप्टर बनाने में।कुछ ही देर में उन लोगों का हेलीकाप्टर बन गया।चारों हेलीकाप्टर पर बैठे और उड़ चले हिमालय पहाड़ की ओर।
               000

पूनम श्रीवास्तव 

गुरुवार, 16 जुलाई 2015

ज़िन्दगी

तुम धीरे-धीरे आना
तुम चुपके चुपके
तुम छइयां छइयां आना
ना धूप लगे डर जाना ।

तुम बन के चंचल हिरनी
वन वन में कुलांचे भरना
मत अंखिया तुम बंद करना
शिकारी बन कर रहना ।

कुछ पांव तले गड़ जाये
ना फ़िकर कोई तुम करना
तुम आगे- आगे चलना
ना पीछे मुड़ते रहना।

तुम अपना पँख फैलाना
बन आजाद परिन्दा
चूमोगी नील गगन को
इक दिन तुम ये तय करना।

खुश रहना तुम हर पल
ना गम के साये में रहना
फूलों के संग संग कांटे
होते फूलों का गहना।
---

पूनम श्रीवास्तव

गुरुवार, 2 जुलाई 2015

हम टीका नहीं लगाते

                  
फ़िलहाल कुछ महीने बीते हो गये इस घटना को।पर मेरे मानस पटल पर वो घटना आज भी अंकित है।जब जब वो वाकया याद आता है दिल में एक बेचैनी सी उठती है।
                            जैसा कि नव रात्रि के दिनों में घर घर में देवी का पूजन भजन कीर्तन की धूम मची रहती है।सारा दिन सारी रात देवी के जागरण से पूरा शहर गुंजायमान रहता है।एक अलग ही खुशी होती है।शाय्यद ये देवी मां के प्रताप के कारण ही होता है।
  नवरात्रि के अन्तिम दिनों में छोटी कन्याओं को देवी व लड़कों को लंगूर के रूप में मानकर उनको भोजन कराया जाता है।इन दिनों इन बच्चों का उत्साह भी देखते बनता है।हां तो इसी नवरात्रि के नवमी वाले दिन मैंने भी बच्चों को भोजन कराया और कुछ उपहार में भी दिया।
      अचानक मेरी निगाह अपनी कालोनी में काम करने वाले सफ़ाई कर्मचारी की लड़की पर पड़ी।वो दूर से ही बड़े ध्यान से ये सब देख रही थी।
        मैंने तुरन्त इशारे से उसे पास बुलाया तो वो खुशी खुशी आ गयी।जैसे ही मैंने उसे टीका लगाने के लिए अपना हाथ उसके माथे की ओर बढ़ाया वो छः साल की छोटी सी बच्ची बोली—“आण्टी,हम टीका नहीं लगाते।”
       मेरे हाथ जहां के तहां रुक गये।मैंने उससे पूछा—“क्यों बेटा,ये तो भगवान का टीका है?”
     तब उस बच्ची ने जो जवाब दिया उसे सुन मैं हतप्रभ रह गयी।वो बोली—“आण्टी हम मुसलमान हैं।हम लोग टीका नहीं लगाते।”
      मेरे हाथ से प्रसाद की प्लेट लेकर वो चली गयी और में किंकर्तव्यविमूढ़ होकर उसे जाता देखती रही।
           0000

पूनम श्रीवास्तव

रविवार, 10 मई 2015

तुम याद बहुत आती हो मां---।

तुम याद बहुत आती हो मां
तुम याद बहुत आती हो मां---।

बचपन में तुम थपकी दे कर
मुझको रोज सुलाती मां
अब नींद नहीं आने पर
तेरी याद बहुत आती है मां।

पग-पग पर तेरी उंगली थाम के
चलना हमने सीखा था मां
थक जाते थे जब चलते चलते
आंचल की छांव बिठाती थी मां।

तन पर कोई घाव लगे जब
झट मलहम बन जाती थी मां
मन की चोट न लगने देती
प्यार इतना बरसाती थी मां।

वो सारी बातें सारी यादें
अक्सर हमें रुलाती हैं मां
जो ज्ञान दिया तुमने हमको
वो हमको राह दिखाता मां।

कोई दिवस विशेष नहीं पर
हर पल तुम संग में रहती मां
हमसाया बन कर साथ हमारे
दिल में हर पल तुम बसती मां।

तुम याद बहुत आती हो मां
तुम याद बहुत आती हो मां---।
000
पूनम श्रीवास्तव





शुक्रवार, 1 मई 2015

अरे ओ मजदूर

(फ़ोटो-गूगल से साभार)
अरे मजदूर, अरे मजदूर
तुम्हीं से है दुनिया का नूर
फ़िर क्यों तुम इतने मजबूर।

अपने हाथों के गट्ठों से
रचते तुम हो सबका बसेरा
पर हाय तुम्हें सोने को तो बस
मिला एक है खुला आसमां
अरे मजदूर, अरे मजदूर।
तुम हो क्यों इतने मजबू्र।

बारिश,धूप कड़ी सर्दी में
तन पर वही पुरानी कथरी
बुन बुन कर दूजों के कपड़े
बुझती है नयनों की ज्योति
अरे मजदूर, अरे मजदूर।
तुम हो क्यों इतने मजबू्र।

अनाज भरे बोरे ढो ढो कर
भरते जाने कितने गोदाम
फ़िर भी दोनो वक्त की रोटी
तुम्हीं को क्यूं ना होती नसीब
अरे मजदूर,अरे मजदूर।
तुम हो क्यों इतने मजबू्र।
0000
पूनम श्रीवास्तव