बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

खोया अतीत


लोगों की भीड़ में खो गया है जो कहीं

आज भी मैं ढूँढता हूँ अपने उस मकान को।

अरसे पहले जिसे छोड़ कर चला गया था

आज देखता हूँ मैं शहर में बदले अपने गाँव को।

कुछ निशानियाँ थीं मशहूर जो मेरे घर की

उनकी जगहों पर पाता हूँ लम्बी लम्बी इमारतों को।

पुरवैया बहती थी जो मेरे घर के सामने

ढूँढ रहीं नज़रें मेरी उस नीम की ठंडी छांव को।

गप्प लड़ाया करते थे जहाँ खड़े खड़े यार सभी

आज आ गये आँख में आँसू याद कर उन शामों को।

चच्चा के नाम से थे मशहूर जो मेरे घर के दाहिने

खोजती हैं नज़रें उनकी पान की दुकान को।

देखते ही देखते मानो सब कुछ बदल गया

खड़ा हूँ अचम्भे से देख दुनिया के बदलते रंग को।

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पूनम

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

अन्जाना डर


मां ने लाडले को बतलाया

बड़े जतन से समझाया

बेटा सीधे रास्ते स्कूल जाना

कहीं पर भी न रुकना

स्कूल से सीधे घर आना

किसी अन्जान के साथ

कहीं न जाना

मासूम ने मासूमियत से कहा अच्छा।

बच्चा दिन ढलने पर घर न आया

मां का आशंकित मन घबराया

वह पागलों सी दौड़ी

स्कूल की तरफ़ बढ़ी

दरबान भुनभुनाया

वो तो किसी के साथ गया

कह कर छुटकारा पाया।

किसी ने बतलाया

कहीं कोई लड़का मिला है

शायद बेहोश पड़ा है

विह्वल होकर मां ने बेटे को झकझोरा

कहा था न

किसी अनजान के साथ न जाना

बच्चे ने टूटे फ़ूटे शब्दों में

सिर्फ़ इतना ही कहा मां---

पर वो तो पड़ोस के च-----च्चा थे।

000

पूनम

रविवार, 17 अक्तूबर 2010

सोचा ही न था


हम तो तेरे दिल से उतर जाएँगे ऐसे,
जैसे जिल्द पुरानी किताबों से उतर जाती है,
ये तो सोचा ही न था.

थाम के हाथ हम तो चले सीधी डगर,
राह में नागफनियाँ भी बहुत होती हैं,
ये तो सोचा ही न था.

आंख से आंसू जो टपके तो बने मोती,
ऐसी बातें तो ख्वाबों में ही होती हैं हकीकत में नहीं,
ये तो सोचा ही न था.

कल था क्या और आज हुआ क्या है,
पल ही पल में तकदीर बदल जाती है,
ये तो सोचा ही न था.
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पूनम

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

सीख


जला जला कर खुद को,खाक करते हैं क्यों

ज़िन्दगी अनमोल खज़ाना,जीना तो सीख लें।

देख कर औरों की खुशियाँ,कुढ़ते हैं क्यों

गैरों की खुशी में भी, हँसना तो सीख ले॥

रास्ते मंज़िलों के आसान ढ़ूँढ़ते हैं क्यों

मुश्किलों का सामना करना तो सीख लें।

छूने को ऊँचाई आकाश की कोशिश तो करें ज़रूर

पर पहले पाँव को ज़मीं पे जमाना तो सीख लें।

अपने को गैरों से ऊँचा समझते हैं क्यों

एक बार खुद को भी आँकना तो सीख लें।

तकदीर को ही हर कदम पर कोसते हैं क्यों

रह गई कमी कहाँ जानना तो सीख लें।

करके भरोसा दूसरों पर पछताते हैं क्यों

बस हौसला बुलंद करना खुद का तो सीख लें।

ज़िन्दगी का नाम सिर्फ़ पाना ही क्यों

खोना भी पड़ता है बहुत,सब्र करना तो सीख लें।

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पूनम

बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

बन जाओ अफ़साना


तुम गीत गज़ल बन करके

मेरे सपनों में आना

मैं शब्द शब्द बन जाऊंगी

तुम बनना नया तराना।

मैं सुर संगम बन जाऊंगी

तुम तान सुरीली गाना

मैं मधुर कण्ठ से गाऊंगी

तुम लयबद्ध हो जाना।

मैं प्रेम मग्न हो जाऊंगी

तुम भी साथ निभाना

मैं बनूंगी मीरा राधा

तुम कृष्ण मेरे बन जाना।

मैं बनूंगी शृंगार का प्याला

तुम उसमें डूब जाना

मैं बनूंगी तुम्हारी शमा

तुम बन जाना परवाना।

मैं नहीं बनूंगी ऐसी शमा

अकेले ही जल जाऊं

वादा है इक तुमसे

तुम मेरे संग जल जाना।

तब देखेगी ये दुनिया

जोड़ी ये गीत गज़ल की

हम भी बन जायेंगे फ़िर

एक नया अफ़साना।

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पूनम

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

दंश


कभी कभी जमीन पर

रेंगने वाले

कीड़े के डंक भी

इतने घातक नहीं होते

जितने कि जहरीले

शब्दों के व्यंग्य बाण ।

जो इंसान के मानस पटल

पर इस तरह

अंकित हो कर उसे

अंदर ही अंदर

इस कदर

खोखला बना देते हैं

कि वह

तिल तिल कर

जलने को

मजबूर हो जाता है

एक जलती हुई

चिता के समान ।

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पूनम