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लोगों की भीड़ में खो गया है जो कहीं
आज भी मैं ढूँढता हूँ अपने उस मकान को।
अरसे पहले जिसे छोड़ कर चला गया था
आज देखता हूँ मैं शहर में बदले अपने गाँव को।
कुछ निशानियाँ थीं मशहूर जो मेरे घर की
उनकी जगहों पर पाता हूँ लम्बी लम्बी इमारतों को।
पुरवैया बहती थी जो मेरे घर के सामने
ढूँढ रहीं नज़रें मेरी उस नीम की ठंडी छांव को।
गप्प लड़ाया करते थे जहाँ खड़े खड़े यार सभी
आज आ गये आँख में आँसू याद कर उन शामों को।
चच्चा के नाम से थे मशहूर जो मेरे घर के दाहिने
खोजती हैं नज़रें उनकी पान की दुकान को।
देखते ही देखते मानो सब कुछ बदल गया
खड़ा हूँ अचम्भे से देख दुनिया के बदलते रंग को।
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पूनम