मंगलवार, 30 दिसंबर 2008

उजाला

सुस्वागतम 2009

नव वर्ष की हार्दिक ………
…………मंगल कामनाओ के साथ ।

मन के अंधेरों में ही कहीं
छिपा होता है उजाला
अंधेरे से बाहर आने के लिए
लड़ते निरंतर लड़ते छट्पटाते।

बेचैन लेकिन कभी कभी
अँधेरा भी हो जाता है जबरदस्त
उजाले की कोशिश भी एकबारगी
हो जाती है पस्त।

फ़िर भी वह कोशिश का
दामन नहीं छोड़ता
निरंतर रहता है प्रयासरत
की कभी तो वो दिन आयेगा।

जब अंधकार को चीरकर
उजाला अपनी रोशनी को
फैलाएगा चारों ओर
सारी बाधाओं को अपने में समेटे हुए
एक विजेता की तरह।
………….
पूनम

बुधवार, 24 दिसंबर 2008

उम्र की दास्तान


उम्र की क्या बात दोस्तों , उम्र बडी चीज़ है ,
कुछ रोकर गुजर जाती है , कुछ हंसकर गुजारी जाती है ।
कभी सपनों को संजोते , कभी खुशियों को बिखराते ,
कभी औरों पे लुटाते , ये यूँ ही गुजर जाती है ।

कभी बीते हुए लम्हे , कभी बीते हुए दिन को ,
अपने अंदर ही समेटे , ये सिमटती ही चली जाती है .
कभी अपनों को बेगानी , तो बेगानों का अपनापन ,
के बीच त्रिशंकु सी , झूलती रह जाती है ।

कभी बचपन के हिंडोले को , झुलाती हुई उम्र ,
कभी डगमगाते हुए कदमों को , सम्भालती हुई उम्र ।
कभी जिन्दगी से खेल , खिलाती हुई उम्र ,
बस बीत जाती है , या बिता दी जाती है ।

पूनम

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

रिश्ते


रिश्तों के बंधन में
न बांधिए मुझको
जब इन रिश्तों का जहाँ में
कोई मोल नहीं है।

हर जगह है मार काट
जगह जगह पर दुश्मनी
बहते हुए रक्त का
कोई मोल नहीं है।

हैवानियत भी बढ़ गयी
इंसानियत कहीं खो गयी
अब प्रेम जैसे शब्द का
कोई मोल नहीं है।

क्या किसी को सीख के
दो शब्द हम बोलें
आज कोई शब्द ही
अनमोल नहीं है।

गांधी जवाहर वीर भगत
याद कर के क्या करें
आज जब दिलों में उनके
काम का कोई मोल नहीं है।
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पूनम

सोमवार, 15 दिसंबर 2008


चंदा सी ठांव हो
पेड़ों की छाँव हो
जहाँ देवों के पाँव हों
घर ऐसा होना चाहिए।

जहाँ कोयल की कूक हो
पायल की रुनझुन हो
सरगम की गुनगुन हो
घर ऐसा होना चाहिए।

जहाँ बुजुर्गों का मान हो
छोटों का सम्मान हो
आपस में विश्वास हो
घर ऐसा होना चाहिए।

जहाँ स्नेह रूपी माल हो
कर्म रूपी चाल हो
मर्म रूपी ज्ञान हो
घर ऐसा होना चाहिए।

जहाँ ईश्वर में आस हो
धर्म में विश्वास हो
फर्ज का अहसास हो
घर ऐसा होना चाहिए।
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पूनम

शनिवार, 13 दिसंबर 2008

वह गुडिया


छोटी सी उम्र में कमाने लग जाती है,
वो नन्हीं सी गुडिया सयानी बन जाती है।

नन्हीं सी जुबान है पर बातें हैं बड़ी बड़ी,
वो नन्हीं सी गुडिया बतियाने लग जाती है।

औरों की उतरन पहन कर भी खुश,
वो नन्हीं सी गुडिया इतराने लग जाती है।

तरेरती हुई आँखों से थोड़ा सा सहम जाती,
वो नन्हीं सी गुडिया फ़िर काम पर लग जाती है।

हाथों में लाडलों के बैग व किताब देख के,
वो नन्हीं सी गुडिया पढाना सीख जाती है।

काम को करते हुए बातें की इधर उधर,
वो नन्हीं सी गुडिया सबकी मुखबिर बन जाती है।

लोगों के देख के रंग ढंग और संग,
वो नन्हीं सी गुडिया सपने सजाने लग जाती है।

खेलने की उम्र में ही सीखने की उम्र में ही ,
वो नन्हीं सी गुडिया दादी अम्मा बन जाती है।
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पूनम


एक कौर


माँ प्यार से बच्चे को
फुसला रही है
बस एक कौर और ये कह कर
खिला रही है.

पास ही हम उम्र बच्चा
झाडू लगाता जाता
मां बेटे के खेल को
अचम्भे से निहारता.

क्योंकि उसे तो याद नहीं आता
कभी उसकी मां ने भी उसे
खिलाया हो ऐसे खाना.

उसे तो याद रहता है हरदम
मां ने एक रोटी को
छः टुकडों में बांटा
और मांगने पर देती है एक चांटा.

और कहती है बस
पेट को ज्यादा न बढ़ा
लगी है पेट में इतनी ही आग
तो जा एक घर और काम पकड़.
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पूनम

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

भूख


भूख ऐसी ही तो होती है,
जो आव देखती है न ताव,


बस झपट ही तो पड़ती है,
कभी गन्दगी के ढेर में


तो कभी छप्पन भोगों की थाल में
तो कभी बाजारों व कोठों की रौनकों में


फर्क सिर्फ़ इतना है भूख मिटने पर कोई कहता है वाह!!!
तो किसी के दिल से निकलती है आह!!!
००००००००००
पूनम

सोचा न था


हम तो तेरे दिल से उतर जाएँगे ऐसे,
जैसे जिल्द पुरानी किताबों से उतर जाती है,
ये तो सोचा ही न था.

थाम के हाथ हम तो चले सीधी डगर,
राह में नागफनियाँ भी बहुत होती हैं,
ये तो सोचा ही न था.

आंख से आंसू जो टपके तो बने मोती,
ऐसी बातें तो ख्वाबों में ही होती हैं हकीकत में नहीं,
ये तो सोचा ही न था.

कल था क्या और आज हुआ क्या है,
पल ही पल में तकदीर बदल जाती है,
ये तो सोचा ही न था.
०००००००००
पूनम

शनिवार, 6 दिसंबर 2008

आग


हर तरफ़ लगी है
ये कैसी आग
जाने इस आग में
क्या है बात.

जो चारों तरफ़ अपना
मुंह लपलपा रही है
हर गली हर नुक्कड़
और हर चौराहे पर
यह अपना विकराल रूप
दिखला रही है
यहाँ तक कि समाज के
पूरे अस्तित्व को ही यह आग
एक फन काढे
भयानक नाग की तरह
अपने अंतहीन पेट में
लीलती ही चली जा रही है.

चाहे पेट में
आग लगाने की आग हो
चाहे पेट की आग
बुझाने की आग हो
चाहे रिश्तों में
नफरत बढ़ाने की आग हो
चाहे इन्सान द्वारा
इन्सान को जलाने की आग हो

आग तो बस आग है
जो सिर्फ़ जलना और जलाना ही जानती है.
००००००

पूनम





मौत के साए में


मौत के साये में
जिंदगी कर रही सफर
जी रही है जिंदगी
हर वक्त डर डर कर.

पल में जाने क्या हो जाए
किसको है ख़बर
गूँज धमाकों की
उठी भी तो सहमकर
कहीं बरसती गोलियां
जवानों पे गरज कर.

जर्रा जर्रा देश का
कांपता थर थर
दहशत से फैलीं ऑंखें
देख ये मंजर.

साँस लेती जिंदगी
बस एक आस पर
ख़त्म होगा इंतजार
जीत होगी मौत पर.

फ़िर चल पड़ेगा कारवां
एक जुट होकर
सपने सजेंगे आंखों में
मुस्कराहट होठों पर.
०००००००००००
पूनम


बुधवार, 3 दिसंबर 2008

तूफानों को .....


समुन्दर में तूफानों को उठते हुए देखा,
नदी तालों को भी उफनाते हुए देखा,
अश्क से दामन को भिगोते हुए देखा,
पर उस पर लगे दाग को मिटते नहीं देखा.

जिंदगी को जिन्दादिली से जीते देखा,
मौत को भी हंस कर गले लगाते देखा,
जिंदगी से मौत की टकराहट देखा,
पर जिंदगी व मौत को साथ निभाते नहीं देखा.

दोस्त को दुश्मन के गले लगते देखा,
पीठ में छुरा उन्हें भोंकते देखा,
गम के अंधेरों में दोनों को सिसकते देखा,
नदी के दो पाटों की तरह दिल को मिलते नहीं देखा.

चाँद तारों को जमीन पर उतरते देखा,
पंख परवाजों को आसमान को छूते देखा ,
धरती में ही स्वर्ग कहीं बनते हुए देखा,
अम्बर को धारा से मिलते नहीं देखा.

हमने बचपन भी देखा पचपन भी देखा,
बीती हुयी जिंदगानी देखा,
बहती हुयी रवानी देखा,
पर कहते हैं जिसे किस्मत उसको ही नहीं देखा.
……………….
पूनम