आ मुसाफ़िर लौट आ अब भी अपने डेरे पर,
भटकता रहेगा कब तलक,तू यूं ही अब डगर डगर।
दिन ढले सूरज भी देख जा छुपा है आसमां में,
सुरमई शाम आ चुकी है अब अपने वक्त पर।
पेड़ पशु पक्षी भी देख अब तो सोने जा रहे,
कह रहे हैं वो भी अब तू भी तो जा आराम कर।
लुटा दिया जिनकी खातिर तूने जीवन अपना ताउम्र,
क्या तुझे पूछा उन्होंने इक बार भी पलटकर।
तेरे ही लहू के अंश हो गये तितर बितर,
बेगाने हो गए जिन्हें तूने रखा सीने से लगाकर।
जाने वक्त की घड़ी कब किधर रुख बदल ले,
कब तक खड़ा रहेगा तू जिन्दगी के हाशिये पर।
वक्त है अब भी सम्हल जा अपने लिये भी सोच तू,
जी लिया गैरों की खातिर अपने लिये भी जी ले जी भर।
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पूनम