बुधवार, 26 दिसंबर 2012

चित्रात्मक--कहानी सोनू चिड़िया


सोनू चिड़िया और रुपहली दोस्त थीं। दोंनों पेड़ों पर फ़ुदक रही थीं।तभी सोनू को एक पेड़ पर एक बहुत सुन्दर रंग बिरंगा फ़ल दिखा।
सोनू बोली,मैं ये फ़ल खाऊंगी।
उसकी प्यारी दोस्त सुनहरी ने बहुत समझाया।मना किया।
प्यारी सोनू,ये फ़ल मत खा।इससे तेरा गला खराब होगा।
पर सोनू ने उसकी बात नहीं सुनी।वह उस रंग बिरंगे फ़ल को चखने का लालच नहीं रोक सकी।बस उसी दिन उसका गला खराब हो गया।गाना,बोलना सब बंद।
        जंगल के सारे जानवर दुखी रहते।सोनू के सुरीले गीत सभी को पसंद थे।सोनू भी उसी दिन से उदास रहने लगी।
     पूरे छः महीनों तक न वह कहीं गा सकी। न बोल सकी। बहुत परेशान रही वह।पता नहीं कहां से उसने वो कसैला फ़ल चख लिया था।
एक दिन सबेरे दोनों दोस्त पेड़ की डाल पर बैठी थीं।आते जाते जानवरों को देख रही
थीं।दूसरी चिड़ियों का चहचहाना सुन उसकी आंखों में आंसू आ गये।
पता नहीं मेरी आवाज कभी ठीक होगी या नहीं। उसने सोचा।
अचानक वहां एक गधा कहीं से भटकता हुआ आ गया।वह उसी पेड़ से अपनी पीठ रगड़ने लगा जिस पर दोनों बैठी थीं।शायद उसकी पीठ खुजला रही थी।
पेड़ पतला था।गधे के पीठ रगड़ने पर वो हिलने लगा।पहले धीरे धीरे फ़िर तेजी से।
रुपहली और सोनू घबरा गईं। उन्हें लगा कहीं ये पेड़ गिर न जाय।
सोनू चीखी,बच के रुपहली,ये गधा हमें गिरा देगा।उसकी आवाज सुन रुपहली चौंक गई।
अरे सोनू,तू तो बोल सकती है।रुपहली चीखी।
अरे सच मेंमैं बोल सकती हूं। अब मैं फ़िर गाऊंगी,चहचहाऊंगी।सोनू जोर से चीखी।
सोनू और रुपहली चहचहाते हुये तेजी से उड़ीं।
दोनों चीख रही थीं। चहचहा रहीं थीं।गा रही थीं।पूरे जंगल में पंख फ़ैलाए उड़ रही थीं।
जंगल के सारे जानवर भी खुशी मना रहे थे।
                  -----
पूनम श्रीवास्तव

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

चाहत




बीते पलों को याद कर
जरा तुम मुस्कुरा लेना
तेरे साथ ही हूं मैं सदा
एहसास यही बस कर लेना।

मेरी जिन्दगी में आना भी
तेरा हुआ कुछ इस तरह से
बाद पतझड़ के ज्यूं
छुप के बसंत का आना ।

जुबां से कोई कुछ भी कहे
उस पर न यकीन करना
सजा रखा है दिल ने
बस तेरा आशियाना।

सागर है कितना गहरा
इससे न हैं हम वाकिफ़
तेरी नजरों में जब से डूबे
मुश्किल उबर भी पाना।

दिल की तो हर धड़कन
मेरी सांसों का शरमाया
जाना तुझी से हमने
जिन्दगी को यूं जी लेना।

दुआ रब से यही है मेरी
बस इतना करम तू करना
निकले जनाजा मेरा
मेरी मांग फ़िर से भरना।
   0000
पूनम



शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

कह दो हर दिल से-----



कह दो दिलों से आज कि इक दिल ने आवाज दी है
बन जाओ सहारे उनके जो कि बेसहारा हैं।

गुलामी की वो जंजीरें जो टूटी नहीं हैं अब तलक
तोड़ दो उन पाबन्दियों को जिन पर हक़ तुम्हारा है।

बड़ी फ़ुरसत से वो इक शै बनाई है खुदा ने
वो तुम इंसान ही तो हो जिसे उसने संवारा है।

वक़्त कब किसका बना है आज तलक हम कदम
करो ना इन्तजार उसका जो कि नहीं तुम्हारा है।

करने से पहले नेकी का अंजाम ना सोचो
समझो कि हर बात में उसका ही इशारा है।
000
पूनम





शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

गज़ल


खाली बोतल जाम है खाली,बन्द पड़े सारे मयखाने
कष्ट बड़ा जीवन में है रब,टूट गये सारे पैमाने।

सबकी देहरी घूम के देखा,सबके अपने हैं अफ़साने
दुख की घड़ियां गिनता कोई,कोई बुनता नये ठिकाने।

तिनका तिनका जोड़ के इक दिन,पूरे हुये थे मेरे सपने
वक्त ने करवट ऐसी कुछ ली,अपने तिनके हुये बेगाने।

हवा यहां कुछ ऐसी बहकी,कोई अपने खून को ना पहचाने
जान चुका था मै भी तब तक,निकले ही थे वो उड़ जाने।

जैसे भटका हुआ मुसाफ़िर,लौट ही आता अपने ठिकाने
अपनी क़िस्मत कब बदलेगी,हम भी देते रब को ताने।
              000
पूनम

सोमवार, 20 अगस्त 2012

आखिर क्यों--------?


अब मेरे बगीचे में
नहीं आता है
चिड़ियों का हुजूम
दाना चुगने के लिये।

अब भोर की बेला में
नहीं सुनाई देती
उनकी चीं चीं चूं चूं
उनकी चहचहाहट।

अब नजरें तरस गयी हैं
उन्हें देखने के लिए
पानी भरे अधफ़ूटे मटके में उनका
फ़ुदक फ़ुदक कर
अपने पर फ़ड़फ़ड़ा नहाना
और अपने पंखों को
फ़ैलाकर सुखाना।

उनका वो लुका छुपी
का खेल
एक रोमांच सा लगता था
जिनको देख हम भी
बन जाते थे बच्चे।
घने पौधों के बीच
उनका घोंसला बनाना
और फ़िर
हर वक्त अपने घोंसले के
चारों ओर
बड़ी सजगता से
निगरानी करना।

घोंसले के पास
किसी को देख
भयातुर स्वरों में चीं चीं
की करुण पुकार
उनकी हरकतें
आज भी बहुत याद आती हैं
पर क्या करें वो भी
हमने ही तो भौतिकता की
अंधी दौड़ में उन्हें
रास्ता बदलने पर
मजबूर कर दिया।

क्या कोई उन्हें
फ़िर से मना कर
हमारे बगीचे में
वापस नहीं ला सकता।
000
पूनम


मंगलवार, 14 अगस्त 2012

आया शुभ दिन

(फ़ोटो गूगल से साभार)

पन्द्रह अगस्त का आया शुभ दिन
हमको आज़ाद कराने का दिन
शहादत और बलिदानों का दिन
हम सबकी खुशहाली का दिन।

सर पे कफ़न बांध थे निकले
वीर युवा सब आज के ही दिन
शीश कटा पर झुका न उनका
भारत मां को मान दिलाने का दिन।

कुर्बानी याद दिलाने का दिन
वीरों पर शीश झुकाने का दिन
गाथाएं उनकी गाने का दिन
राहों पर उनके जाने का दिन।

कसमें सभी निभाने का दिन
पुष्पांजलियां अर्पित करने का दिन
आज़ादी जो वीरों ने दी
सुरक्षित उसे बनाने का दिन।
000
पूनम श्रीवास्तव



शनिवार, 4 अगस्त 2012

गज़ल


आज अपने ही शहर में
बन के मेहमां हम खड़े हैं
देख के हालत ये अपनी
बेकसी से रो पड़े हैं।

हंस के जो मिलते थे पहले
आज परदे में छुपे हैं
एक सिक्के के दो पहलू
सामने मेरे पड़े हैं।

सूर्य के रथ की धुरी सी
चल रही थी ज़िन्दगी
राहु बन कर के वो मेरा
रास्ता रोके खड़े हैं।

पहचान की हर सरहदों को
काट कर मीठी छुरी से
देखते हैं वो तमाशा
किस डगर पर हम खड़े हैं।

आज अपने ही-----।
0000

पूनम

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

प्रकृति के रंग


प्रकृति ने बिखेरी अनुपम छटा
देखने को आंखें बरबस मचल उठीं
सूरज की किरणों ने धरती को चूमा
धरा भी गुनगुनी धूप में नहा उठी।

चांद ने जो रात में चांदनी बिखेरी
पृथ्वी रुपहली चादर में लिपटी
पहाड़ों से झरनों की जो फ़ूटी धार
हर तरफ़ कल-कल निनाद सी गूंज उठी।

बांसों के झुरमुट में सरसराती हवा
बांसुरी के स्वर जैसी लहरा उठी
हरी हरी घास पर ओस की बूंदें
नई नवेली दूल्हन सी मुस्कुरा उठीं।

हरियाली खेतों में झूमती सरसों
मानों खुशी के गीत सी गा उठी
भोर के प्रांगण में पक्षियों की कलरव
वीणा के तारों सी झंकृत हो उठी।
000
पूनम


मंगलवार, 17 जुलाई 2012

सीख

जला जला कर खुद को,खाक करते हो क्यूं।
ज़िन्दगी अनमोल खजाना,जीना तो सीख लो।

देख कर औरों की खुशियां कुढ़ते हो क्यूं
गैरों की खुशी में भी,हंसना तो सीख लो।

रास्ते मंजिलों के,आसान ढूंढ़ते हो क्यूं
मुश्किलों का सामना,करना तो सीख लो।

छूने को आसमान की हद,कोशिश करो जरूर
पहले पांव को जमीं पर,जमाना तो सीख लो।

अपने को गैरों से,ऊंचा समझते हो क्यूं
एक बार खुद को भी कभी,आंकना तो सीख लो।

तक़दीर को ही हर कदम पर,कोसते हो क्यूं
रह गई कमी कहां पे है,जानना तो सीख लो।

कर के भरोसा दूसरों पे,पछताते हो क्यूं
बस हौसला बुलंद करना,खुद का तो सीख लो।

बात सिर्फ़ इतनी सी है,जीवन फ़कत पाना ही क्यूं,
खोना भी पड़ता है बहुत,सब्र करना तो सीख लो।
 000
पूनम


सोमवार, 25 जून 2012

इन्तहां प्यार की---



हद से गुजर जाती है जब इन्तहां प्यार की
इक आह सी निकली इस दिल के गरीब से।

नजरे अंदाज उनके कुछ इस कदर बदले
अनजाने से बन निकलते वो मेरे करीब से।

हाले दिल जो गैरों ने सुना वो लेते तफ़री
अपने भी देखते हमको बड़े अजीब से।

ये दिल दौलत की दुनिया होती जब तक पास
बन जाते हैं सब बड़े हम नसीब से।

ताउम्र  जीने की अब ललक हमको नहीं
बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से।
000
पूनम

शनिवार, 16 जून 2012

गज़ल


तुम्हारी याद मे आंसू आंखों से छलकते हैं,
सावन के बारिश ज्यूं मेघों से बरसते हैं।

तुम जो गये तो बस दिल ही टूट गया,
वो जिगर कहाँ से लाऊँ जो पत्थर के होते हैं।

चौबीस पहर तस्वीर तेरी इन आंखों में बसती हैं,
मिटाऊँ कैसे उनको जो नज़रों से ओझल नही होते हैं।

दिलासा देते तो जाते हो की जल्दी ही आऊँगा,
और हम इन्तज़ार में पल-पल फ़िर गिनने लगते हैं।

बिन तुम्हारे ज़िंदगी अधूरी सी लगती है,
अब के आकर ना जाना वादा इक तुमसे लेते हैं।

आयेगा खत का जवाब यही ख्वाब देखते हैं,
इसी उम्मीद को दामन से लिये हम तो जीते हैं।
000
पूनम

शनिवार, 9 जून 2012

ये बहुरूपिये (व्यंग्य काव्य)


घर घर की ये घण्टी बजाकर
मूक बधिर बन के आते
धर्म का पर्चा दिखा दिखा कर
चंदे की हैं भीख मांगते।

इनसे बढ़कर वो और निराले
जो चंदन तिलक लगा के आते
हाथ लिये थाल आरती का
भगवान के नाम पर लूट मचाते।

ललाट देख देख कर आपका
अपना प्रवचन चालू कर देते
झूठी सच्ची बात बता कर
भूत भविष्य वर्तमान बताते।

अपनी बातों में उलझा कर
लोगों को ये हैं भरमाते
दिमाग न माने बातें इनकी
पर दिल ही दिल में हम डरते।

धन दें इनको मन नहीं करता
न दें तो ईश्वर से डर लगता
शिक्षित हैं पर अंधविश्वास में जकड़े
क्यों हम सब झूठी बातों से डरते।

अपना उल्लू सीधा करके
लोगों पर अपना रंग चढ़ाते
हम भी तो इनकी बातों में आ जाते
कैसे हमको ये पाठ पढ़ाते।


उन पैसों का चंदा लेकर
ये गुटखा देशी ठर्रा पीते
कौन सच्चा कौन है झूठा
ये समझ नहीं हम हैं पाते।

रोज का इनका धंधा है
इसमें इनका क्या है बिगड़ता
हमीं बहकावे में भी आकर
खुद क्यों लुटते और लुटाते।

इनसे तो वो बेहतर होते
जो मेहनत मजदूरी करके
तन का पसीना बहा बहा कर
अपने परिवार का पालन करते।

हृष्ट पुष्ट ये रहते तन से
पर इनको शरम न आती है
नए नए हथकण्डे अपना कर
रोज कमाई ये हैं करते।
0000
पूनम