शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

हम जिंदा तो हैं


पंच तत्वों से मिलकर मानव का हुआ मानवीकरण,
मानवता तो खो रही फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।

धड़कनें भी चल रही हैं नब्ज भी साथ दे रही,
पर दिल तो भावशून्य है फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।

जमीर अपनी बेच दी आत्मा भी मर चुकी,
अपने को बड़े फ़ख्र से कहते फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।

हर गली चौराहे पर मां बेटी बहन की बोली लगी है,
देख कर अनदेखे हुये फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।

रक्षक ही भक्षक बन बैठे हम हाथ पर हाथ धरे रहे,
आंख का पानी भी मर चुका फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।

रिश्तों के मतलब बदल रहे हर अखबार चीख रहा ,
शर्मसार हो रहे रिश्ते फ़िर भी हम जिंदा तो हैं।

हमारे संस्कारों की नींव अब तो डगमगा रही शायद,
गिरने से पहले इसे संभालें इसीलिये हम जिंदा तो हैं।
०००००००

पूनम

शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

बारिश में

बारिश में माटी की
सोंधी सी खुशबू से
भीज उठा तन
बहक गया मन।

कलियों के होठों पे
नहलाई धूप सा
निथर उठा तन
महक उठा मन।

पक्षियों के कलरव सा
अठखेलती लहरों सा
नाच उठा मन
थिरक उठा तन।

सांझ की झुरमुट में
प्रियतम की आहट पर
गा उठा मन
हुलस उठा तन।
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पूनम

शनिवार, 11 जुलाई 2009

मन


मन भीगा भीगा क्यों है
तन भीगा भीगा क्यों है
लगता है जैसे आने वाला
हरियाली सावन है ।

मंदिर यूं सजने लगे
घंटे यूं बजने लगे
लगता है जैसे शिव शंकर का
हो रहा अर्चन है ।

बिजली यूं चमकने लगी
बादल यूं गरजने लगे
लगता है जैसे सागर का
हो रहा मंथन है ।

कोयलों का कुंजन है
भौरों का गुंजन है
लगता है जैसे सावन का
हो रहा अभिनंदन है ।
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पूनम

बुधवार, 1 जुलाई 2009

ग़ज़ल


दीदारे यार होने का जरा जश्न तो मनाने दो,
यार मेरा फ़िर कहीं पर्दा नशीं न हो जाये।

बड़ी मुद्दत से हमको तो खुदा से ये शिकायत थी,
ये ख्वाब उनकी बेरुखी से फ़िर न खाक हो जाये।

पर खुदा ने भी इनायत की मेहरबां हुआ हम पर,
मोहलत इतनी दे ही दी तमन्ना अधूरी न रह जाये।

कहते हैं खुदा तो लेता इम्तहान घड़ी घड़ी,
बन्दे की सच्ची बन्दगी को जरा वो भी तो आजमाये।
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पूनम