बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

चर्चा


गांव शहर या नुक्कड़ पर,होती है दिन रात अब चर्चा

रहती थी जो खास कभी,बन गई ये आम चर्चा।

कल तक सामने बैठे जो किया करते थे गुफ़्तगू

उनमें है कुछ खटर पटर,बन गई ये आम चर्चा।

किसी की बिटिया सयानी,नहीं ब्याही गई अब तक

निगाहों में लगती अटकलें,बन गई ये आम चर्चा।

कोई मंजिलों से कूदा,तो किसी ने पटरी पे जान दी

कोई मुहब्बत में गया मारा,बन गई वो आम चर्चा।

पैसों के लालच में कोई,कितना हुआ अंधा

ईमान कैसे बिकता है,बन गई ये आम चर्चा।

नहीं बेटा किसी के घर में,सिर्फ़ बेटी हुयी पैदा

जीना उसका मुहाल करके,कर रहे सब आज चर्चा।

कहीं बिन बात के चर्चा,कहीं हर बात पे चर्चा

शगल में हो गया शामिल,सभी के खासो आम चर्चा।

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पूनम

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

आज मैं कविताओं से अलग हट कर अपनी एक बाल कहानी प्रकाशित कर रही हूं। आप भी इसका आनन्द उठाइये।

चित्रात्मक-- कहानी

गिल्लू गिलहरी


गोल मटोल गिल्लू गिलहरी सभी को बहुत प्यारी थी।उसके शरीर पर पड़ी लम्बी धारियां और उसकी लम्बी सी पूंछ देखते ही बनती थीं।वह रोहन के बगीचे में एक पेड़ के कोटर में रहती थी।

रोहन को जब भी मौका मिलता वह उसके पास पहुंच जाता।गिल्लू को आवाज देता तो वह झट से पेड़ से उतर कर आती। और रोहन के चारों ओर चक्कर काटने लगती।

रोहन गिल्लू का सबसे अच्छा दोस्त था।रोहन से गिल्लू जरा भी नहीं डरती थी।वह रोहन की हथेलियों से दाने उठा कर इत्मिनान से कुतरती।और रोहन भी उसे उठा कर प्यार से सहलाता।

एक बार रोहन बीमार पड़ गया।डाक्टर ने उसे बिस्तर से उठने के लिये मना कर दिया।जब दो तीन दिनों तक वह बगीचे में नहीं आया तो गिल्लू परेशान हो गई।वह बार बार पेड़ से उतरती और रोहन के घर के दरवाजे की तरफ़ देखती।फ़िर दुखी होकर वापस पेड़ पर चढ़ जाती।

एक दिन वह बहुत हिम्मत करके रोहन के घर में जा घुसी।वह सीधे रोहन के बिस्तर पर चढ़ गयी। रोहन उसे देखकर बहुत खुश हुआ।वह भी अपनी दोस्त से मिलने के लिये परेशान था।

डाक्टर के इलाज से रोहन की तबीयत सुधरने लगी थी।गिल्लू भी अपने दोस्त का बहुत ध्यान रखती।जब रोहन आराम करता तो वह भी अपने कोटर में चली जाती। रोहन के जागने पर वह अपनी पूंछ हिलाती आती और झट उसके बिस्तर में घुस जाती। फ़िर खूब उछल कूद मचाती।गिल्लू की प्यारी हरकतों से रोहन के मम्मी पापा भी हंसते हंसते लोट पोट हो जाते।

आज रोहन स्कूल जाने लगा तो उसने देखा गिल्लू भी बहुत खुश नजर आ रही थी।उसने आंखें मटका कर रोहन को बाय किया।रोहन हाथ हिलाता अपने स्कूल की तरफ़ बढ़ गया।

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पूनम श्रीवास्तव

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

आ जाओ ना-----


कई दिनों से ढूंढ़ रही हैं

मेरी नजरें उनको

और मन ही मन में

याद कर रही हैं

बहुत ज्यादा

पर वो हैं कि

नजर आते ही नहीं।

माना कि हमने भी

किया उनको

बहुत नजर अन्दाज़

इस बीच कई बार

उन्होंने कोशिश भी की

आने की

पर मैं आगे नहीं बढ़ पाई।

यूं तो कई बार

लगा कि उन्होंने

दिल के दरवाजे पर दस्तक दी और

जब तक

मैं उन्हें पुकारती

वो गायब हो जाते।

हद हैऐसी भी

निठुरता अच्छी नहीं

अब तो

वापस आ भी जाओ ना---

ओ मेरे शब्दों--------।

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पूनम