सोमवार, 22 अगस्त 2011

ओ रे कन्हैया


उद्धव जाये कहियो कान्हा से सब हाल

राधे संग सखियन बेहाल

जानत रहियो जब जावन तुमको

काहे बढ़ायो मोह का जाल।

नज़रें इत उत डोलत हैं

मन कान्हा-कान्हा बोलत है

थकि थकि गये हम टेरत

टेरत नैना बाट जोहत हैं।

तुम तो बिसरा गयो हमको

पर हम तो अब भी तिहारी हैं

प्रीति की डोर ना टूट सके

ये रीति बनाई भी तुम्हरी है।

बचपन मा हम संग संग बाढ़े

मिलके रास रचायो खूब

बालापन में गोपियन संग

तूने नटखटपन दिखलायो खूब।

सुनने की तान मुरलिया की

तरसे बरसों हमरे कान

अब भी आ के सुर बिखराओ

हे नटवर नागर,हे घनश्याम।

होठों पे तेरे सजे बँसुरिया

अब मोहे तनिक भी भावे ना

वो तो पहिले थी ही वैरन

अब तो सौतन सी लागे न।

पर राधा तो तुम्हरी दीवानी

जो तुझको वो हमको भावे

जिया ना लागे मोरा तुझ बिन

तनिक ना पल कोई रास आवे।

यादों में तुम हमरी बसे

जिया में हूक उठत है श्याम

तुम सारे जग रे पियारे

पर मनवा हमरे बसे तिहारो नाम।

बड़ी देर भई तेरी राह निहारे

अब भी दया दिखावत नाहि

हमरी नगरिया फ़िर कब अइहो

बतला दो अब भी निरमोही कन्हाई।

000

पूनम

मंगलवार, 16 अगस्त 2011

तलाश


निकला था घर से मैं अमन चैन की खोज में,

पर देखा तो जहां भी अमन चैन खुद को ही तलाश रहा।

वारदातों पे वारदात हो रहे बमों के धमाके

चैन अब तो जेहन में किसी इन्सान के ना रहा।

दिल में है हलचल मची घबराये हैं चेहरे सभी,

सिलसिला खतम होगा कब तलक कुछ भी न सूझता।

बन रहे घर श्मशान लुट गये हैं आशियाने,

सबके दिलों का खौफ़ अब तो चेहरों पे दिख रहा।

सरकार कर रही है मुआवजों का झूठा वादा,

पर घाव बन रहे जो इसकी उसको फ़िकर कहां।

नजरें भी अपने लोगों के आने की राह देखतीं,

अबोध बच्चों के भी चेहरों से हंसी कोई छीन ले गया।

बढ़ रहा आतंक दिनों दिन पानी सर से गुजर रहा,

मन इनसे निपटने का कोई रास्ता ढूंढता ही रह गया।

दिलों में बस ये पैगाम भेज दे प्रेम के प्यारे,

बीज नफ़रत का न पनपे बने खुशियों का इक नया जहां।

000

पूनम

बुधवार, 3 अगस्त 2011

मिडिल क्लास लड़की


राह चलते एक मुलाकात हुई

वो फ़िर वो चलते चलते

दोस्ती में बदल गई।

पता नहीं तुमने मुझमें

क्या देखा

जो अचानक ही मेरा हाथ

पकड़ लिया

और मैं भी तुम्हारा हाथ

थाम कर आगे

मंजिल की तरफ़

बढ़ने लगी।

पर

एक दिन हाई सोसायटी

गर्ल से हुयी

तुम्हारी मुलाकात से

न जाने क्यों तुम

मुझसे कतराने लगे

मेरी खूबियां जो तुम्हें

बहुत भाती थीं

वो तुम्हारी नजर

में कमियां नजर आने लगीं।

तुम्हारी नजरों में मैं

अब पुराने संस्कारों के

बंधन में जकड़ी

परंपराओं से जुड़ने वाली

लड़की नहीं

एक मिडिल क्लास की

लड़की लगने लगी

जो तुम्हारे साथ

बियर बार में बैठकर

हाथ में बियर ग्लास लेकर

चियर्स नही कर सकती थी।

न क्लबों में गैरों की

कमर में हाथ डाले

फ़्लोर पर डांस

कर सकती थी

और न ही

देर रात डिनर पर

तुम्हारे दोस्तों के

अश्लील मजाकों का

लुत्फ़ उठा सकती थी।

फ़िर तुमने बीच राह

में ही छोड़ दिया मेरा हाथ

अच्छा ही किया

क्योंकि मैं अपने बुजुर्गों के

संस्कारों में पली बढ़ी

स्वाभिमानी लड़की थी

जो वो सब नहीं कर सकती थी

जैसा तुम चाहते थे।

पर तुमने मुझे

मेरी भावनाओं को

तनिक भी

समझने की कोशिश नहीं की

संस्कारों में पली लड़की

अपने पुराने संस्कारों के

साथ चलते हुये भी

नये जमाने की

विषम परिस्थितियों को

भी बखूबी अपने अनुरूप

ढाल सकती थी।

क्योंकि ये संस्कार ही

हमें आगे परिस्थितियों से

जूझना और आगे बढ़ने की

हिम्मत देते हैं।

मैं भी आगे बढ़ूंगी

जरूर पर अपना आत्मसम्मान

स्वाभिमान बेच कर नहीं

क्योंकि मैं एक

मिडिल क्लास लड़की हूं।

0000

पूनम