“दिल्ली से इंजीनियरिंग करने के बाद अब अर्नव तुंरत ही चालीस हज़ार की नौकरी कर रहा है.”
“तो ठीक है , अपना रिशब भी चार-पांच साल में किसी न्यूज चैनल का प्रोड्यूसर बना बैठा होगा.”
“हाँ हाँ ,और पाएगा बीस पचीस हज़ार …संतुष्ट रहो उसी में.पहले खर्च करो लाखों और फ़िर हजारों पाओ.”
रिशब ये सारी बातें अपनी छोटी बहन मिश्टी के साथ बैठा सुन रहा था.माँ-पापा के इन रोज़ रोज़ के झगड़ों से वह ऊब चुका था और इसके लिए कहीं न कहीं ख़ुद को जिम्मेदार मानता था.कुछ सोच कर वह बाहर चला गया .
दरअसल रिशब ने इसी साल बारहवी की परीक्षा पचासी परसेंट के साथ साइंस में पास की है .उसकी मम्मी उसे इंजीनियर बनाना चाहती थी.रिशब का सपना मीडिया से जुडकर अपना एक एन जी ओ चलाने का था .पर उसके सपनों के आगे है एक दीवार,माँ के सपनों की- – बड़ा बंगला ,लक्जरी कार…..इसीलिये माँ ने उसकी इच्छा के विरुद्ध इंजीनियरिंग के सारे फार्म भरवाए.उसका पुणे के कालेज में सेलेक्शन भी हो गया.अब वे उसे अपने सपने पूरे करने के लिए जबरदस्ती पुणे भेजना चाहती हैं.
सुबह का निकला रिशब रात दस बजे घर लौटा .”माँ मेरा कल रात का रिजर्वेशन हो गया है,आप मेरी तैयारी करवा दीजिये .”कहकर वह सोने चला गया.
मुम्मी ने खुशी में पूरी कालोनी में लड्डू बटवा दिया .पर पापा को अंदाजा था की खुशी का भूत उतरने तक शायद…….
“पापा प्लीज़, अपना आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रखियेगा .”कहते हुए रिशब फफक पड़ा था. पापा ने भरे गले से कुछ कहना चाहा..पर शब्द कहीं अटक कर रह गए थे .वे बस दूर तक जाते हुए आटो को देखते रहे …रिशब के अब तक छपे आर्टिकल्स और मम्मी के ताने ….लक्जरी कार ,सब कुछ उनके आंसुओं में गड्ड-मड्ड होता चला गया.
पुणे पहुँचते ही रिशब एकदम बदल गया. चंचल ,हँसमुख रिशब कहीं खो गया .उसकी जगह ले ली थी गुमसुम किताबों के पीछे छिपे रहने वाले रिशब ने.इस अकेलेपन में बस प्रशांत ही तो था ,जिससे वह सारे दुःख बाँट लेता था .
प्रशांत ने ही तो सबसे पहले रिशब के पापा को ख़बर दी थी की वह ड्रग एडिक्ट हो गया है. प्रशांत ने ही फोन पर उन्हें बताया कि पहले और दूसरे सेमेस्टर्स में बहुत कम नंबर आने के बाद से ही रिशब ड्रग्स लेने लगा था. फाइनल एक्जाम के बाद तो वह पूरी तरह टूट गया.एक तरफ़ माँ के सपने न पूरे कर पाने का दुःख ,दूसरी तरफ़ अपने सपनों के बिखरने का दर्द,सब कुछ सुनने के बाद जब तक रिशब के पापा पुणे पहुंचते तब तक …रिशब ने ख़ुद को सारे दुखों से एक झटके में मुक्त कर लिया था.मम्मी को भी जब तक समझ में आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
आज ….बीस साल बाद ,रिशब के जन्मदिन पर एक पुराने फोटो एल्बम के पन्ने पलटते पलटते मिश्टी की ऑंखें डबडबा आयी.वह आज भारती चैनल में इंग्लिश न्यूज की हेड है.
“माँ, मेरे एन जी ओ का ये प्रोजेक्ट यूनिसेफ वालों को जरूर पसंद आयेगा.”
“हा ,बेटी जा…भाई का सपना पूरा कर .”माँ ने ऑसू पोछते हुए कहा.
और पापा --यही सोच रहे थे कि काश ये आशीर्वाद बीस साल पहले निकला होता तो…………..
०००००००००००००००००
लेखिका--नेहा शेफाली की कहानी झरोखा पर
“तो ठीक है , अपना रिशब भी चार-पांच साल में किसी न्यूज चैनल का प्रोड्यूसर बना बैठा होगा.”
“हाँ हाँ ,और पाएगा बीस पचीस हज़ार …संतुष्ट रहो उसी में.पहले खर्च करो लाखों और फ़िर हजारों पाओ.”
रिशब ये सारी बातें अपनी छोटी बहन मिश्टी के साथ बैठा सुन रहा था.माँ-पापा के इन रोज़ रोज़ के झगड़ों से वह ऊब चुका था और इसके लिए कहीं न कहीं ख़ुद को जिम्मेदार मानता था.कुछ सोच कर वह बाहर चला गया .
दरअसल रिशब ने इसी साल बारहवी की परीक्षा पचासी परसेंट के साथ साइंस में पास की है .उसकी मम्मी उसे इंजीनियर बनाना चाहती थी.रिशब का सपना मीडिया से जुडकर अपना एक एन जी ओ चलाने का था .पर उसके सपनों के आगे है एक दीवार,माँ के सपनों की- – बड़ा बंगला ,लक्जरी कार…..इसीलिये माँ ने उसकी इच्छा के विरुद्ध इंजीनियरिंग के सारे फार्म भरवाए.उसका पुणे के कालेज में सेलेक्शन भी हो गया.अब वे उसे अपने सपने पूरे करने के लिए जबरदस्ती पुणे भेजना चाहती हैं.
सुबह का निकला रिशब रात दस बजे घर लौटा .”माँ मेरा कल रात का रिजर्वेशन हो गया है,आप मेरी तैयारी करवा दीजिये .”कहकर वह सोने चला गया.
मुम्मी ने खुशी में पूरी कालोनी में लड्डू बटवा दिया .पर पापा को अंदाजा था की खुशी का भूत उतरने तक शायद…….
“पापा प्लीज़, अपना आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रखियेगा .”कहते हुए रिशब फफक पड़ा था. पापा ने भरे गले से कुछ कहना चाहा..पर शब्द कहीं अटक कर रह गए थे .वे बस दूर तक जाते हुए आटो को देखते रहे …रिशब के अब तक छपे आर्टिकल्स और मम्मी के ताने ….लक्जरी कार ,सब कुछ उनके आंसुओं में गड्ड-मड्ड होता चला गया.
पुणे पहुँचते ही रिशब एकदम बदल गया. चंचल ,हँसमुख रिशब कहीं खो गया .उसकी जगह ले ली थी गुमसुम किताबों के पीछे छिपे रहने वाले रिशब ने.इस अकेलेपन में बस प्रशांत ही तो था ,जिससे वह सारे दुःख बाँट लेता था .
प्रशांत ने ही तो सबसे पहले रिशब के पापा को ख़बर दी थी की वह ड्रग एडिक्ट हो गया है. प्रशांत ने ही फोन पर उन्हें बताया कि पहले और दूसरे सेमेस्टर्स में बहुत कम नंबर आने के बाद से ही रिशब ड्रग्स लेने लगा था. फाइनल एक्जाम के बाद तो वह पूरी तरह टूट गया.एक तरफ़ माँ के सपने न पूरे कर पाने का दुःख ,दूसरी तरफ़ अपने सपनों के बिखरने का दर्द,सब कुछ सुनने के बाद जब तक रिशब के पापा पुणे पहुंचते तब तक …रिशब ने ख़ुद को सारे दुखों से एक झटके में मुक्त कर लिया था.मम्मी को भी जब तक समझ में आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
आज ….बीस साल बाद ,रिशब के जन्मदिन पर एक पुराने फोटो एल्बम के पन्ने पलटते पलटते मिश्टी की ऑंखें डबडबा आयी.वह आज भारती चैनल में इंग्लिश न्यूज की हेड है.
“माँ, मेरे एन जी ओ का ये प्रोजेक्ट यूनिसेफ वालों को जरूर पसंद आयेगा.”
“हा ,बेटी जा…भाई का सपना पूरा कर .”माँ ने ऑसू पोछते हुए कहा.
और पापा --यही सोच रहे थे कि काश ये आशीर्वाद बीस साल पहले निकला होता तो…………..
०००००००००००००००००
लेखिका--नेहा शेफाली की कहानी झरोखा पर
पूनम--- द्वारा प्रकाशित