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सावन में बदरा बरसे
घनन घनन घन घन
बगिया में फ़ुलवा गमके
भीजे तन और मन
प्रियतम प्रियतम फ़िर बोले
दिल का ये आंगन।
पेड़ों पर पड़ गये झूले
सखियां लगी झूलन
पेंग पे पेंग बढ़ावें जैसे
छूलें नील गगन
खिलखिलाती ऐसी जैसे
बातें करें पवन।
भौंरे भी झूमन लगे
पी के फ़ूल परागण
जिन फ़ूलन पर जा बैठे
वो फ़ूल हुये मगन
इतराये वो ऐसे जैसे
बचपन में अल्हड़पन।
जूड़न में गजरे सज गये
खुशबू लिये चमेलन
काले कजरों से भर गये
खंजन जैसे नयन
रंग बिरंगी चूड़ियों संग
सजे हाथ कंगन।
पांवों में बिछुआ सोहे
बाजे संग पाजन
लगा महावर पैरों में
इतराये गोरी मन मन
सजा के टिकुली माथे पे
सखी बनी दुल्हन।
सावन तो होवे ही ऐसे
हो जाये सभी मगन
सजनी को झूला झुलाये साजन
जैसे राधा किशन
सखियन संग मन मेरा भी गाये
जल्दी आना सजन।
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पूनम