बुधवार, 28 अप्रैल 2010

ओम साईं नमः

कल साईं बाबा की तस्वीर देखते देखते मेरे मन में कुछ भाव आते चले गये । उन्हीं भावों को मैंने शब्दों का रूप दिया है। आइये साईं बाबा की शरण में हम सभी कुछ पल बितायें।

ओम साईं नमः

जय जय साईं बाबा
तुमको नित नित प्रणाम
तुमको लाखों प्रणाम
तुमको कोटि कोटि प्रणाम।
जय जय ---------------।

ओम साईं नमः
शिरडी साईं नमः
साईं साईं नमः
जय जय साईं नमः
देखो साईं बाबा तेरो कितने हैं नाम
जय जय ---------------।

साईं की लीला देखो
कैसी अपरम्पार है
जो दुविधा बंधन में फ़ंसे
करते बेड़ा पार हैं
इसीलिये तो रटते हैं सब
साईं साईं राम।
जय जय ---------------।

साईं सुमिरन जो करे
सो साईं का होय
जो साईं को न सुमिरै
वो भी साईं का होय
इसी लिये तो कहते तुमको
भोले साईं नाथ।
जय जय ---------------।

साईं तो सबके लिये
होवे एक समान
दिल में सभी बराबर उनके
चाहे राम हो या रहमान
इसीलिये तो जाते हैं
सब ही उनके धाम
जय जय ---------------।

तन मन और धन से साईं
सबकी करते सच्ची सेवा
छूत अछूत को वो न मानें
खाते जो भी प्रेम से देता
तभी तो कहलाते हैं
वो साईं संत महान
जय जय ---------------।

अरज हमारी साईं इतनी
हम तो हैं अज्ञानी
मद मस्ती में चूर होके
बन जाते अभिमानी
भूल चूक को क्षमा करो
समझो हैं बालक नादान
जय जय ---------------।

क्या है सेवा क्या है भक्ति
इससे हम हैं अंजान
जैसे भी है जो भी है
तुमको है सब अर्पण
जहां पर तुमने जन्म लिया
धन्य वो शिरडी धाम
जय जय साईं बाबा
तुमको बारम्बार प्रणाम।
जय जय ---------------।
000
पूनम








मंगलवार, 20 अप्रैल 2010

साकी


बहुत कुछ सुनने सुनाने को बाकी

मगर पहले थोड़ी पिला दे तू साकी।

सुना है इसमें बहुत है दम

ताकत है इसमें भुलाने को गम

असर मुझपे भी हो जाये ताकि-----।

सुना है इसको जिसने पिया है

वो हर बार मर मर के ही तो जिया है।

निभाता है साथ हर गम में बाकी----।

माना गमे दर्द में काम करता दवा का

मगर बन जाता इक दिन नशा जिन्दगी का

जिगर तो जलाता साथ जां भी जो बाकी---।

नशा तो नशा है किसी किस्म का भी

जहर बन जाता इक दिन दवा भी

फ़िर भी नशा लोग करते हैं बाकी----।

सुना है जहर को मारता जहर है

सब करता इंसान जो चाहे अगर वो

फ़िर इसमें कसर क्यूं अब भी है बाकी---।

रहने दे तू मुझको पिलाने को साकी

रहने दो मुझको पिलाने को साकी-----।

0000

पूनम

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

सागर तट पर


सागर तट पर

खड़ी खड़ी निहार रही थी

मैं उसकी अथाह

गहराई और उफ़नाती लहरों को

जो बीच बीच में

मेरे कदमों को चूम कर

वापस जाती फ़िर लौट आती

मानों आपस में उनमें

होड़ लगी हो।

सागर की सतह पर

पड़ता सूर्य का प्रतिबिंब

अपनी अलग ही

छटा बिखेर रहा था

मानो वो चांदी की

एक बड़ी सी थाल हो

और उसकी किरणें

चारों तरफ़ बिखरी हुयी

डूबती उतराती

ऐसी लग रही थीं

जैसे वो आपस में लुका छिपी

खेल रही हों।

बड़ा ही मनोरम

दृश्य हृदय में

आत्मसात हो रहा था

कि अचानक एक विचार

मस्तिष्क में कौंधा

इसी सागर के गर्भ

में जाने अनजाने

कितने अनगिनत राज

छुपे हुये हैं

हीरे मोती सीप माणिक

जाने किस किस रूप में

कैसे कैसे खजाने

अपने गर्भ में

समाये हुये है।

यही वह सागर है

जो जीवन दाता भी है

और कभी अचानक

विकराल रूप

धारण कर इसमें से

जो लहर फ़ूटती है

सुनामी बनकर

चंद पलों में

अपने साथ जाने कितने

गांव शहर

हजारों जीवन

समेट ले जाती है

और पहले की तरह

ही इठलाती लुभाती रहती है

मानों कुछ हुआ ही नहीं।

बस वह छोड़ जाती है

अपने पीछे

अपनी इन्तहां की निशानियां

जो दिखती हैं

वीरान मरुस्थल के रूप में

गांव शहर के उजड़े रूप में

कितनों का सहारा

कितनों की सांसें

पागलों की तरह भटकते हुये

कदमों के रूप में

जो विस्फ़ारित नेत्रों से

अपनी सुध बुध खोए

डरे लुटे से

शायद आज भी अपने

लोगों के लौट आने की

राह देख रहे हैं।

मन में एक टीस सी उठी

भौतिक आपदाओं से तो

मानव लड़ सकता है

परन्तु क्या उसमें है

हिम्मत

प्राकृतिक आपदाओं के

कोप से भी बचने की।

000

पूनम

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

दोस्ती के नाम


दोस्ती के नाम

नजदीकियां भी बन जाती हैं दूरियां,

जब आपस में यूं ही हो जाती हैं गलतफ़हमियां।

क्यूं मूक सी दीवार खड़ी है आज दिलों के दरमियां,

कल तक जो डाले हाथों में हाथ करते थे खूब बातियां।

भरोसे और विश्वास से ही चलती हैं जिन्दगानियां,

इनके बगैर तो जिन्दगी हो जाती हैं बेमानियां।

कोशिश करके देख लो भूल पुरानी बातियां,

बढ़ा के हाथ दोस्ती का फ़िर से कर लो गलबहियाँ।

दिल से बोझ उतर जायेगा देखना इक दिन साथियां,

वो दोस्ती ही क्या जहां होती नहीं हैं गलतियां।

दोस्ती में अभिमान होता नहीं साथियां,

वो न बढ़े तुम बढ़ जाओ बांध लो प्रेम की डोरियां॥

---

पूनम