सोमवार, 25 जून 2012

इन्तहां प्यार की---



हद से गुजर जाती है जब इन्तहां प्यार की
इक आह सी निकली इस दिल के गरीब से।

नजरे अंदाज उनके कुछ इस कदर बदले
अनजाने से बन निकलते वो मेरे करीब से।

हाले दिल जो गैरों ने सुना वो लेते तफ़री
अपने भी देखते हमको बड़े अजीब से।

ये दिल दौलत की दुनिया होती जब तक पास
बन जाते हैं सब बड़े हम नसीब से।

ताउम्र  जीने की अब ललक हमको नहीं
बस एक मुलाकात हो जाए मेरी महजबीं से।
000
पूनम

शनिवार, 16 जून 2012

गज़ल


तुम्हारी याद मे आंसू आंखों से छलकते हैं,
सावन के बारिश ज्यूं मेघों से बरसते हैं।

तुम जो गये तो बस दिल ही टूट गया,
वो जिगर कहाँ से लाऊँ जो पत्थर के होते हैं।

चौबीस पहर तस्वीर तेरी इन आंखों में बसती हैं,
मिटाऊँ कैसे उनको जो नज़रों से ओझल नही होते हैं।

दिलासा देते तो जाते हो की जल्दी ही आऊँगा,
और हम इन्तज़ार में पल-पल फ़िर गिनने लगते हैं।

बिन तुम्हारे ज़िंदगी अधूरी सी लगती है,
अब के आकर ना जाना वादा इक तुमसे लेते हैं।

आयेगा खत का जवाब यही ख्वाब देखते हैं,
इसी उम्मीद को दामन से लिये हम तो जीते हैं।
000
पूनम

शनिवार, 9 जून 2012

ये बहुरूपिये (व्यंग्य काव्य)


घर घर की ये घण्टी बजाकर
मूक बधिर बन के आते
धर्म का पर्चा दिखा दिखा कर
चंदे की हैं भीख मांगते।

इनसे बढ़कर वो और निराले
जो चंदन तिलक लगा के आते
हाथ लिये थाल आरती का
भगवान के नाम पर लूट मचाते।

ललाट देख देख कर आपका
अपना प्रवचन चालू कर देते
झूठी सच्ची बात बता कर
भूत भविष्य वर्तमान बताते।

अपनी बातों में उलझा कर
लोगों को ये हैं भरमाते
दिमाग न माने बातें इनकी
पर दिल ही दिल में हम डरते।

धन दें इनको मन नहीं करता
न दें तो ईश्वर से डर लगता
शिक्षित हैं पर अंधविश्वास में जकड़े
क्यों हम सब झूठी बातों से डरते।

अपना उल्लू सीधा करके
लोगों पर अपना रंग चढ़ाते
हम भी तो इनकी बातों में आ जाते
कैसे हमको ये पाठ पढ़ाते।


उन पैसों का चंदा लेकर
ये गुटखा देशी ठर्रा पीते
कौन सच्चा कौन है झूठा
ये समझ नहीं हम हैं पाते।

रोज का इनका धंधा है
इसमें इनका क्या है बिगड़ता
हमीं बहकावे में भी आकर
खुद क्यों लुटते और लुटाते।

इनसे तो वो बेहतर होते
जो मेहनत मजदूरी करके
तन का पसीना बहा बहा कर
अपने परिवार का पालन करते।

हृष्ट पुष्ट ये रहते तन से
पर इनको शरम न आती है
नए नए हथकण्डे अपना कर
रोज कमाई ये हैं करते।
0000
पूनम




रविवार, 3 जून 2012

रूठा चांद



चांद को देखा कुछ गुमसुम उदास है।
चांदनी भी शायद कुछ रूठी आज है॥

तभी बादलों में उसने मुंह छुपा लिया था॥
कर लिया क्यों उसने अंधेरी रात है॥

टिमटिमाते तारे भी लगे खोये खोये से।
चांद के बिना नहीं चांदनी साथ है॥

मैं भी उदास गुमसुम सी उसको निहारती रही।
वो शायद समझ गया मेरे दिल की बात है॥

दूर से ही सही वो मुझको तसल्ली दे रहा था।
यूं लगा कि कोई अपना अपने पास है॥
000
पूनम श्रीवास्तव