रविवार, 16 नवंबर 2014

पुस्तक परिचय

                             
 

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रजनी प्रकाशन
रजनी विला,डिबाई-202393
मोबाइल09412653980,0574-265101

         श्रीमती रजनी सिंह के कहानी संग्रह विहंगावलोकन एवं मुड़ते हुये मोड़ एवं यात्रा वृत्तांत आओ चलें सैर करें तथा एक कविता संग्रह प्रकृति कृति प्रकृति मेरे सामने है।कहानी संग्रह की अधिकांश कहानियां मध्यम वर्गीय परिवारों के ऐसे प्रसंगों को छूती हैं जो अभी तक अनछुए पड़े हैं।मार्मिक एवं कठोर सत्य को उजागर करने वाले प्रसंग।प्रायःसभी कहानियां मर्मस्पर्शी एवं प्रेरणादायक हैं।
       एक बात जो सबसे अच्छी लगी वह यह कि कहानियां छोटी एवं अति सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं।आज के पाठक वर्ग की यही सबसे बड़ी मांग है।अन्यथा आज तो कहानियां क्या सामान्य रचनाएं तक शब्दाडंबर की अच्छी खासी नुमायश लगाने वाली होती हैं। आज के लेखक शायद इसी में अपनी गरिमा अनुभव करते होंगे।वे भूल जाते हैं कि सूर,तुलसी,प्रेमचन्द ने कालजयी रचनाएं कैसे दीं।मेरी कामना है कि लेखिका की ये तथा जो भी लिखी जा रही हों,सभी रचनाएं इसी प्रकार अनछुए सच का दर्शन कराती रहें।
  यात्रा वृत्तान्त आओ सैर करें,अच्छे शब्द चित्र प्रस्तुत करता है।पाठक जैसे स्वयं उन स्थानों को अपनी आंखों से देखता चलता है।यही यात्रा वृत्तान्त की विशेषता होनी चाहिये।प्रकृति कृति प्रकृति मनोरम काव्य रचना है।बोधगम्य तो है ही आज हम जो प्रकृति से लगभग कट चुके हैं,उसके घावों को भरने वाली हैं।
   ठोड़े में बात यह है कि कहानियां छोटी होने के कारण ही सर्वप्रिय हैं।कुछ दुखती रगों को छूने वाली,कुछ प्रेरणा देने वाली तो कुछ दिल को भर देने वाली हैं।सभी का निचोड़ यही है कि जीवन सुख-दुख और निराशाओं घर है।फ़िर भी ये कहानियां हमारे भीतर उम्मीद जगाती हैं।मेरी कामना है कि श्रीमती रजनी सिंह जीवन के उजाले पक्ष को लेकर ही लेखनी चलाती रहें।इसमें वो सफ़ल हों।
                  000
प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव
Mobile no--07376627886

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

फ़रियाद

काली कोट में लाल गुलाब,
चाचा तुमको करते याद,
बाल दिवस हम संग मनायें,
बस इतनी सुन लो फ़रियाद।

बचपन क्यों अब रूठा रहता,
हर बच्चा क्यों रोता रहता,
आओ चाचा नेहरू आओ,
सारे जहां को तुम बतलाओ।

खेल खिलौने साथ छीन कर,
क्यूं सब हमें रुलाते हैं,
भारी बस्तों और किताबों,
में हमको उलझाते हैं।

क्या हमने कुछ गलत किया है,
जिसकी हमको सजा मिली है,
प्यारे थे सब बच्चे तुमको,
सुन लो इनकी ये फ़रियाद।

आओ चाचा नेहरू आओ,
जन्म दिवस हम संग मनाओ।
000

पूनम श्रीवास्तव

रविवार, 2 नवंबर 2014

राज़दां

उन्हें शक है हम उनके राज़दां बन गये हैं
उन्हें देख कर बेजुबां बन गये हैं।
नहीं है खबर क्या उन्हें आज यारों
कल क्या थे हम आज क्या बन गये हैं।
नहीं याद उनको वो तन्हाई के दिन
इकरारे महफ़िल और इसरार के दिन।
छोटा सा नाटक किया था उन्होंने
छुपाने को इक राजे महफ़िल भी मुझसे।
उन्हें डर था शायद बयां हो न जाये
कहीं राजे महफ़िल भी मेरी जुबां से।
नहीं देखते हैं वो क्या आज लेकिन
कि खुद ही बयां हो रहा राजे महफ़िल।
छुपाने दिखाने का नाटक ये क्यूं है
बयां जब खुदी कर रहे राजे महफ़िल।
उन्हें शक है कि हम उनके राजदां बन गये हैं
उन्हें देख कर बेजुबां बन गये हैं।
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पूनम


शनिवार, 10 मई 2014

मां

मां शब्द ही अवर्णनीय,अतुलनीय है।उनके बारे में लिखना किसी के लिये सम्भ्व नहीं है।दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि उनके लिये लिखना सागर की एक बूंद की तरह होगा।
       आज मातृ दिवस पर मैं अपनी एक कविता पुनः प्रकाशित कर रही हूं।

मां

मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां
अंतरिक्ष के इस पार से
उस पार तक का अंतहीन विस्तार है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं--------------------।

शिशु की हर तकलीफ़ों को रोके
ऐसी इक दीवार है मां
शब्दकोश में नहीं मिलेगा
वो कोमल अहसास है मां।
 मां सिर्फ़ शब्द नहीं-------------------।

स्रिजनकर्ता सबकी है मां
प्रक्रिति का अनोखा उपहार है मां
ममता दया की प्रतिमूर्ति
ब्रह्म भी और नाद भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

स्वर लहरी की झंकार है मां
लहरों में भी प्रवाह है मां
बंशी की धुन है तो
रणचण्डी का अवतार भी है मां।
मां सिर्फ़ शब्द नहीं---------------------।

मां सिर्फ़ शब्द नहीं
पूरी दुनिया पूरा संसार है मां।
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पूनम




शुक्रवार, 2 मई 2014

मौसी की चालाकी

बिल्ली ने ये मन में ठाना
चूहों को है सबक सिखाना
खेल चुके घण्टी का खेल
अब मुझको है शंख बजाना।

बहुत विचार किया मौसी ने
शुरू किया फ़िर गाना गाना
जंगल के सारे जीवों को
लगी सिखाने ढोल बजाना।

चूहों को भी शौक लगा फ़िर
क्यूं ना सीखें हम भी गाना
भूल गये मौसी का गुस्सा
लगे सीखने ढोल बजाना।

मौसी मन ही मन मुस्काई
चूहों पर खुब प्यार लुटाई
जितने चूहे आते जाते
मौसी खाके गाती गाना।
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पूनम श्रीवास्तव


शनिवार, 29 मार्च 2014

ये भी तो कुछ कहते हैं-----

पड़ते कुल्हाड़े पेड़ों पर जब
उनके भी  आंसू बहते हैं
सोचो जरा इक बात तो आखिर
क्या वो भी हमसे कुछ कहते हैं?

जो हैं हमारे जीवन रक्षक
क्यूं हम उनके भक्षक बन जायें
जो जीवन को देने वाले हैं
उनके ही दुश्मन कहलायें।

काटने पर हम तुले हैं जिसको
शहर शहर और गांव गांव
आने वाले समय में फ़िर तो
मिलेगी न हमको उनकी छांव।

जो धरती का आंचल लहराये
पर्यावरण को सदा बचाए
धूप ठंढ बारिश को बचा के
मानव जीवन को हरसाए।

प्रकृति है जिससे हरी भरी
जो बादल से बारिश ले आते
जिनके कारण ही तो हम
नव जीवन हैं अपनाते।

आओ हम सब बच्चे मिल जाएं
फ़िर एक पेड़ न कटने पाये
जगह जगह पर पेड़ लगा कर
हरियाली वसुन्धरा पर लायें।
0000

पूनम

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

छुक छुक गाड़ी-----।

छुक छुक चलती रेलगाड़ी
पटरी पे दौड़े रेलगाड़ी।

दुनिया भर की सैर कराती
गांव बगीचे खेत दिखाती
धरती के हर रंग दिखाती
कड़ी धूप बारिश या ठण्ढक
कभी न रुकती रेलगाड़ी।

छुक छुक चलती रेलगाड़ी
पटरी पे दौड़े रेलगाड़ी।।

बच्चों को भाती रेलगाड़ी
सैर कराती रेलगाड़ी
अम्मा,बाबू,दीदी,भैया
गांव शहर के हर तबके का
वजन उठाती रेलगाड़ी।

छुक छुक चलती रेलगाड़ी
पटरी पे दौड़े रेलगाड़ी।।

गर्मी की छुट्टी में सबको
नानी दादी तक ले जाती
देश के हर कोने में दौड़े
नदिया पर्वत पीछे छोड़े
सीटी बजाती रेलगाड़ी।

छुक छुक चलती रेलगाड़ी
पटरी पे दौड़े रेलगाड़ी।।
000

पूनम

शनिवार, 18 जनवरी 2014

जिन्दगी----।

कहते हैं जिसे जिन्दगी उस जिन्दगी को ढूंढते हैं।
पोंछते हैं अश्कों को जीने का बहाना ढूंढ़ते हैं॥

खामोश है जुबान पर दिल ये रोता है।
कांटों भरी डगर पर हंसने का बहाना ढूंढ़ते हैं।।

थाम ले कोई हाथ जिस राह से भी गुजरे हम।
हम सफ़र मिल जाय सफ़र का बहाना ढूंढ़ते हैं॥

चाहत हर किसी की होती नहीं पूरी फ़िर भी
कोशिश का बहाना,खुदा के पास ढूंढ़ते हैं।।
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पूनम