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रजनी प्रकाशन
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श्रीमती रजनी सिंह के कहानी
संग्रह “विहंगावलोकन” एवं “मुड़ते हुये मोड़” एवं यात्रा वृत्तांत “आओ चलें सैर करें” तथा एक कविता संग्रह “प्रकृति कृति प्रकृति” मेरे सामने है।कहानी संग्रह की
अधिकांश कहानियां मध्यम वर्गीय परिवारों के ऐसे प्रसंगों को छूती हैं जो अभी तक
अनछुए पड़े हैं।मार्मिक एवं कठोर सत्य को उजागर करने वाले प्रसंग।प्रायःसभी
कहानियां मर्मस्पर्शी एवं प्रेरणादायक हैं।
एक बात जो सबसे अच्छी लगी वह यह
कि कहानियां छोटी एवं अति सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं।आज के पाठक वर्ग की
यही सबसे बड़ी मांग है।अन्यथा आज तो कहानियां क्या सामान्य रचनाएं तक शब्दाडंबर की
अच्छी खासी नुमायश लगाने वाली होती हैं। आज के लेखक शायद इसी में अपनी गरिमा अनुभव
करते होंगे।वे भूल जाते हैं कि सूर,तुलसी,प्रेमचन्द ने कालजयी रचनाएं कैसे
दीं।मेरी कामना है कि लेखिका की ये तथा जो भी लिखी जा रही हों,सभी रचनाएं इसी
प्रकार अनछुए सच का दर्शन कराती रहें।
यात्रा वृत्तान्त “आओ सैर करें”,अच्छे शब्द चित्र प्रस्तुत करता
है।पाठक जैसे स्वयं उन स्थानों को अपनी आंखों से देखता चलता है।यही यात्रा
वृत्तान्त की विशेषता होनी चाहिये।“प्रकृति कृति प्रकृति” मनोरम काव्य रचना है।बोधगम्य तो है ही आज हम जो प्रकृति से
लगभग कट चुके हैं,उसके घावों को भरने वाली हैं।
ठोड़े में बात यह है कि कहानियां
छोटी होने के कारण ही सर्वप्रिय हैं।कुछ दुखती रगों को छूने वाली,कुछ प्रेरणा देने
वाली तो कुछ दिल को भर देने वाली हैं।सभी का निचोड़ यही है कि जीवन सुख-दुख और
निराशाओं घर है।फ़िर भी ये कहानियां हमारे भीतर उम्मीद जगाती हैं।मेरी कामना है कि
श्रीमती रजनी सिंह जीवन के उजाले पक्ष को लेकर ही लेखनी चलाती रहें।इसमें वो सफ़ल
हों।
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प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव
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