इधर चार पांच दिनों से कुछ लिखने का मन नहीं कर रहा था।जापान में हुयी तबाही प्रकृति की विनाशकारी लीला,उस पर उसका भयानक ताण्डव शायद जेहन से उतर ही नहीं रहा है। ऐसा लगता है जैसे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया है। समाचार पत्रों और टी वी पर दिखाये जाने वाले महाविनाश का दृश्य आंखों से हट ही नहीं रहा है। मन बहुत बेबस बेचैन और अपने आप को बहुत लाचार समझ रहा है।
क्या अपने हाथ में कुछ भी नहीं है? हम क्या केवल देखने और सुनने के लिये ही रह गये हैं। जो लाखों लोग सुनामी की लहरों में खो गये,शहर के शहर को प्रकृति ने अपने कोप का भाजन बना लिया जो बचे वो भी अपने अपने प्रिय जनों से बिछड़ बिखर गये। किसी को किसी के बारे में कुछ नहीं पता।
हालां कि प्रकृति के प्रलयंकारी रूप से हम आप भी सुरक्षित नहीं हैं। ये जिन्दगी किसी की अपनी नहीं है। कभी भी कहीं भी कुछ भी हो सकता है पर जब तक सांस है तब तक आस है। इसी उम्मीद पर लोग जीते भी हैं। आज हम अपने अपने घरों में बैठ कर आराम से खाना खा रहे हैं,टी वी पर न्यूज व सीरियल देखने में लगे हैं।
पर हर कौर गले में अटकता हुआ सा महसूस होता है। सच मानिये जब भी खाना सामने आता है वो तबाही का मंजर किसी शूल की भांति दिल में चुभ सा जाता है।और यह तबाही बर्बादी अभी भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। मन इतना अशान्त हो गया है कि कुछ भी अच्छा नहीं लगता । पर मन को कैसे समझाये कि जो हर वक्त वहीं का चक्कर लगाता रहता है। बस आज आपसे मन की व्यथा बांटने का मन हुआ और लिखने बैठ गयी।
सांई नाथ के आगे जब भी हाथ जोड़ती हूं दिल से यही प्रार्थना करती हूं कि हे सांई बाबा जो भूकंप और सुनामी की लहरों में समा गये उनकी अत्मा को शान्ति देना।जो अनाथ बेघर और अपना सब कुछ गंवा कर बच गये हैं उनको भी शान्ति दो। धैर्य के साथ इन विकट परिस्थितियों का सामना करने का संबल दो । हे प्रभु इन सबके साथ हमेशा अपने आशीष के हाथ रखना। इस वक्त तुम्हारे सहारे से बढ़ कर कोई दूसरा नहीं दिखता। हम सबको तुम्हारे सहारे की जरूरत है।
कुछ पंक्तियाँ…
प्रकृति अपना विनाशकारी रूप है दिखला रही
कभी भूकंप,कभी सुनामी बन सब कुछ है निगल रही
कितने शहर,गाँव इसके आगोश में समा गये
अपने दूजे सब बिखर गये कितने…
गिनती कोई रही नहीं।
जुदा हुई आँखें
खोई खोई सी दिख रही…
जीने को अब बचा क्या
शायद साँसें यही हैं कह रहीं।
लेकिन प्रकृति का तो तांडव
अभी भी बरकरार है
कितने कहर और ढायेगी
किसी को कुछ पता नहीं।
फ़िर भी आलम समाज का देखिये
उसपर जैसे असर नहीं
कुछ चेते, फ़िर भी अभी
कुछ की आँखें बन्द पड़ीं।
किसी की सत्ता में जाँ है
तो कोई कुर्सी के है पीछे पड़ा
दुराचार और भ्रष्टाचार में
अब भी कोई कमी नहीं।
हैवानों की हैवानियत में
कोई फ़र्क पड़ा नहीं
एक तरफ़ प्रकृति का प्रकोप
तो,इनका कहर भी कम नहीं।
आँखें नम हैं,दिल है रोता
क्यों नहीं समझता अब भी कोई
आओ सबके लिये दुआ करें
जो गये,जिनकी साँसें बची हुईं।
जीवन का भरोसा नहीं
हँस लो,मुस्कुरा लो
अब भी वक़्त है,बंद करो सब
प्रकृति सबक सिखा रही।
000 पूनम