रविवार, 2 नवंबर 2014

राज़दां

उन्हें शक है हम उनके राज़दां बन गये हैं
उन्हें देख कर बेजुबां बन गये हैं।
नहीं है खबर क्या उन्हें आज यारों
कल क्या थे हम आज क्या बन गये हैं।
नहीं याद उनको वो तन्हाई के दिन
इकरारे महफ़िल और इसरार के दिन।
छोटा सा नाटक किया था उन्होंने
छुपाने को इक राजे महफ़िल भी मुझसे।
उन्हें डर था शायद बयां हो न जाये
कहीं राजे महफ़िल भी मेरी जुबां से।
नहीं देखते हैं वो क्या आज लेकिन
कि खुद ही बयां हो रहा राजे महफ़िल।
छुपाने दिखाने का नाटक ये क्यूं है
बयां जब खुदी कर रहे राजे महफ़िल।
उन्हें शक है कि हम उनके राजदां बन गये हैं
उन्हें देख कर बेजुबां बन गये हैं।
00000
पूनम


6 टिप्‍पणियां:

aparna ने कहा…

umda...lekhni se hi aap apne ghavon ko bhriye punam ji...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... आज में आते ही कल को भूल जाते हैं लोग ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Behtreen .... Steek Abhivykti

Himkar Shyam ने कहा…

ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति…

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति.....

Unknown ने कहा…

Bahut hi umda kah diya aaapne ... Steek !!