रविवार, 11 जनवरी 2009

आईना


आईना हमको हकीकत दिखा गया,
पीछे न मुड के देख ये बता गया।

वो झूलती बाहें वो भागता सा मन,
याद आज हमको बचपन दिला गया।

हर चमकती चीज को सोना न समझ,
कोई उस पर पीतल का पानी चढा गया।

चेहरे के बदलते हुए भावों को तो देख,
आँखें भी धोखा देती हैं ये जता गया।

जिंदगी से भागने की कोशिश तू न कर,
कितनी है अनमोल ये कीमत बता गया।

पत्थर पर चोट करने से है शीशा ही टूटता,
आज हमारी हैसियत हमको बता गया।
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पूनम

11 टिप्‍पणियां:

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

पूनम जी बहुत ही सही और सटीक ग़ज़ल है.....
बहुत ही अच्छा लिखा है........


अक्षय-मन

Rajat Yadav ने कहा…

:-)

रश्मि प्रभा... ने कहा…

वो झूलती बाहें वो भागता सा मन,
याद आज हमको बचपन दिला गया।
.........
bachpan ki mithi yaadon ko sakaar kar diya in panktiyon me aur kya kahu,aap bahut achha likhti hain....

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

Poonamji,
Bahut behtareen gazal likh dee hai apne ...Hardik badhai.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

बहुत सुंदर...

निर्मला कपिला ने कहा…

हर चमकती चीज सोना ना समझ कोइ उस पर पीतल का पानी चढा गया-- बहुत ही अच्छा लिखा है बधाई व शुभ कामनायें

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह... पूनम जी वाह.. बेहतरीन...

Udan Tashtari ने कहा…

पत्थर पर चोट करने से है शीशा ही टूटता,
आज हमारी हैसियत हमको बता गया।


-वाह!! खूब कहा!! बधाई.

म्कर संक्रांति की बहुत शुभकामनाऐं.

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ ने कहा…

पूनम जी

बहुत बहुत बधाई...
अच्छी रचना के लिए.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

khoobsurati se sachchai bayan kar di hai..........bahut khoob.