लाला जी की पगड़ी
लाला
जी की पगड़ी गोल
पगड़ी
के अंदर था खोल
पगड़ी
में से निकला देखो
रूपया
एक पचास पैसा।
हंसने
लगे सभी बच्चे
बजा-बजा
के ताली
लाला
जी की पगड़ी
रहती
खाली-खाली।
लाला
जी शरम से
हो
गये पानी-पानी
कंजूसी
की उनकी
खुल
गई थी कहानी।
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पूनम श्रीवास्तव
8 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर शव्दों से सजी है आपकी गजल ,उम्दा पंक्तियाँ ..
लाला जी की पगड़ी गोल
लाला जी की पगड़ी के क्या कहने...
सुंदर रचना ।
बहुत सुन्दर बाल रचना ..
रोचक , सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर रचना......बहुत बहुत बधाई.....
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