कब कहां किस रूप में ले किसको पता।
उलझनों में इस कदर कर देती है गुमराह
सुलझाते सुलझाते आदमी हो जाता है परेशां।
कभी तो ये जिंदगी लगती रेत का मकां
जो हल्की सी आंधी में भी मिट जाती जाने कहां।
और कभी जिंदगी बन जाती मजबूत पतवार
भंवरों में से भी जूझ बढ़ आगे पा जाती मुकाम।
जिंदगी तो रखती है मौत से भी वास्ता
फ़िर आगे बढ़ा ले जाती है वो अपना कारवां।
जिंदगी को हर तरह से जीना है जिंदादिली का नाम
अजीज मान कर जी लें जिंदगी का हर लम्हां।
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पूनम